मिशन 2023 को पूरा करने के लिए बीजेपी ने लाड़ली बहना योजना को गेम चेंजर मान कर उसी पर पूरा जोर लगाया था। अब गणना भी यही की जा रही है कि महिलाओं ने क्‍या शिवराज सरकार को बचाने के लिए वोट किया है? हर समीक्षा में चर्चा का केंद्र यही बिंदु है मगर बहनों ने क्‍या चुना उतनी ही जिज्ञासा इस बात पर भी है कि कर्मचारियों और उनके परिवार ने क्‍या किया? 

कर्मचारी इस बात से नाराज हैं कि शिवराज सरकार ने वादे तो बहुत किए लेकिन ये वादे पूरे नहीं हुए। यहां तक कि केंद्र के समान 4 फीसदी डीए बढ़ाने की मांग भी सरकार पूरी नहीं कर पाई। कर्मचारियों को खुश करने के लिए मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने धनतेरस पर जानकारी दी कि डीए बढ़ाने का प्रस्‍ताव चुनाव आयोग को भेजा गया है। लेकिन चुनाव आयोग ने यह प्रस्‍ताव मंजूर वहीं किया। 

कर्मचारी नाराज हैं कि राजस्‍थान सरकार बहुत पहले यह प्रस्‍ताव भेज चुकी थी और चुनाव आयोग से अनुमति भी मिल गई थी। मगर मध्‍यप्रदेश सरकार ने देरी की। इतना ही नहीं, चुनाव आयेाग में भेजे प्रस्‍ताव में पेंशनरों का जिक्र नहीं था। यानि 5 लाख पेंशनर्स तो यूं भी निराश ही थी और चुनाव आयोग के निर्णय ने कर्मचारियों को भी मायूस ही किया। इसी का परिणाम है कि निराश कर्मचारियों ने वोट ही नहीं किया या किया तो सरकार के खिलाफ किया। 

कर्मचारियों के रूख को जानने वाली चुनिंदा सीटों में से एक भोपाल की दक्षिण पश्चिम सीट पर का मतदान प्रतिशत बहुत कुछ बताता है। इस कर्मचारी बहुल 59 फीसदी ही मतदान हुआ। यह 2018 की तुलना में 4 फीसदी कम है। आईएएस-आईपीएस, आईएफएस, प्रोफेसरों की कॉलोनी चार इमली का मतदान 57 प्रतिशत ही रहा है। इसका अर्थ लगाया जा रहा है कि कर्मचारी वोट करने निकले ही नहीं। और जिन कर्मचारियों ने वोट किया वे ओपीएस, पेंशन, डीए, प्रमोशन आदि पर सरकार के रवैए से नाराज हैं। मतलब बीजेपी के कोर वोटर बन चुके कर्मचारियों ने इसबार बीजेपी का साथ छोड़ दिया। इस आकलन के साथ यह दावा किया जा रहा है कि यह नाराजगी बीजेपी की भारी पड़ने वाली है। 

नए-नए कलेक्टर खा गए धोखा

चुनाव निपटे तो राजनीतिक दलों ने ही राहत की सांस नहीं ली बल्कि पहली बार निर्वाचन कार्य कर रहे कलेक्टरों ने भी चैन पाया है। राज्‍य सरकार ने प्रमोटी अफसरों पर भरोसा जताते हुए आधे से ज्‍यादा जिलों की कमान इन्‍हीं आईएएस और आईपीएस को सौंपी है। इनमें से बतौर जिला निर्वाचन अधिकारी दायित्‍व निभाने का अनुभव बहुत कम अफसरों को था। हर कदम फूंक-फूंक पर उठाने के बाद भी ये कलेक्‍टर सत्‍ता पक्ष और विपक्ष के निशाने पर आए। 

पहली बार जिलों की कमान संभाल रहे इन अफसरों ने हर महत्‍वपूर्ण निर्णय के पहले अपने सीनियर और साथी कलेक्‍टरों से परामर्श किया। अधिकांश कलेक्‍टरों ने चुनाव व्‍यवस्‍था के लिए पुरानी तय व्‍यवस्‍था पर ही भरोसा किया। बैरिकेडिंग, ड्यूटी सहित अन्‍य व्‍यवस्‍थाओं को भी पिछले चुनाव के अनुभवों के आधार पर ही तय किया गया। लेकिन इस फार्मूले को अपनाने के बाद भी अतिउत्‍साह में कुछ अधिकारी अपनी किरकिरी करवा बैठे। ऐसे अधिकारियों में एक भिंड कलेक्‍टर भी हैं। 

भिंड कलेक्टर संजीव श्रीवास्‍तव ने मतदान दिवस पर सुबह सात बजे से शाम सात बजे तक निजी वाहनों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस आदेश को तुगलकी फरमान बताते हुए बीजेपी ने चुनाव आयोग में शिकायत कर दी थी। बीजेपी ने कहा था कि इस बेतुके आदेश के चलते वोटिंग में व्यवधान आएगा। 

शिकायत होते ही कलेक्‍टर ने यह आदेश वापस ले लिया था। 2011 बैच के आईएएस संजीव श्रीवास्‍तव ने तर्क दिया कि उन्‍होंने 2018 के आदेश को दोबारा जारी किया था। जबकि याद नहीं बन पड़ता है कि 2018 के चुनाव में ऐसा कोई आदेश जारी हुआ था। बहरहाल, पुराने आदेश और स्‍टाफ की गलती के बहाने किसी तरह कलेक्‍टर ने अपनी नाक बचाई। लेकिन जल्‍दबाजी में वे धोखा तो खा ही गए। 

कांग्रेस ने सागर, टीकमगढ़ और दतिया कलेक्‍टर की शिकायत की। ग्‍वालियर में कांग्रेस उम्‍मीदवार प्रवीण पाठक और कलेक्‍टर अक्षय कुमार के बीच कहासुनी का वीडियो भी वायरल हुआ। कांग्रेस प्रत्‍याशी ने कलेक्‍टर पर बीजेपी के लिए काम करने का आरोप भी लगाया। लेकिन सबसे ज्‍यादा शिकायतें बीजेपी ने की। 

पांच लाख के लिए कलेक्टर ने लगाए फोन

मैं आपके जिले का कलेक्‍टर बोल रहा हूं। आप बताई तारीख पर अपने घर जरूर आएं। यह बात कहने के लिए कलेक्‍टर ने जिले के काम करने गए लोगों को फोन लगाए। पड़ताल की तो पता चला कि कलेक्‍टर ने ये फोन पांच लाख रुपए के लिए किए थे। असल में उनकी नजर अधिक मतदान करवा कर 5 लाख का इनाम पर थी। 

प्रदेश में इस बार मतदान प्रतिशत को बढ़ाने में उत्कृष्ट कार्य करने वाले कलेक्टर एवं जिला निर्वाचन अधिकारी, रिटर्निंग अधिकारी और बूथ लेवल अधिकारी को नकद राशि और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जाएगा। यह नवाचार मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय ने किया है। प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक मतदान प्रतिशत वाले शीर्ष 3-3 बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) को 5-5 हजार रुपये की नकद राशि व प्रशस्ति पत्र भेंट की जाएगी। तीन रिर्टनिंग ऑफिसर को 1-1 और तीन कलेक्‍टर को 5-5 लाख का पुरस्‍कार मिलेगा। 

इस घोषणा के बाद विभिन्‍न जिलों में कलेक्‍टरों ने मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए कई तरह के नवाचार किए। झाबुआ में तन्‍वी हुड्डा ने हाट बाजार में आदिवासी संस्‍कृति के अनुसार मतदान का संदेश देने के लिए भूरा शुभंकर बनाया। छतरपुर के कलेक्टर संदीप आर ने शहर से बाहर रहने वाले लोगों को खुद फोन लगा कर वोट डालने के लिए छतरपुर आने का निमंत्रण दिया। नौकरी कर रहे युवा कलेक्‍टर के फोन के बाद पहली बार वोट देने आए। इंदौर में कलेक्‍टर इलैया राजा ने मतदान ड्यूटी पूरी होने के पहले ही कर्मचारियों के खाते में मानेदय पहुंचा दिया। ऐसा पहली बार हुआ था। ग्‍वालियर कलेक्‍टर ने मतदान दल को रवाना होने के पहले वेलकम किट प्रदान की। 

अफसर रह गए खाली हाथ, न खुदा ही मिला न विसाले सनम 

मिशन 2023 पूरा हो गया है। जनता वोट कर चुकी है, नेताओं का भविष्‍य ईवीएम में कैद हो गया है। 3 दिसंबर को सरकार बन जाएगी लेकिन इसबार प्रदेश के अफसरों के हाथ खाली ही रहे। यह चुनाव अफसरों के राजनीतिक अरमान पूरे न होने के लिए जाना जाएगा। इन अफसरों की हालत अब, ‘न ख़ुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम न इधर के हुए न उधर के हुए’ की तरह हो गई है। 

टिकट वितरण प्रक्रिया शुरू होने के बहुत पहले ही कई रिटायर्ड और पदेन अफसरों ने अपनी राजनीतिक जमावट कर ली थी। वे और उनके समर्थक भरोसे में थे कि उन्‍हें टिकट मिल ही जाएगा। आईएएस बनने के लिए 21 सालों तक इंतजार करने वाले राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर वरदमूर्ति मिश्रा ने आईएएस बनने के बाद दो माह में ही वीआरएस ले लिया और नई पार्टी बना कर चुनाव मैदान में उतर गए। शहडोल के कमिश्‍नर आईएएस राजीव शर्मा ने भी वीआरएस लिया। छतरपुर की डिप्‍टी कलेक्‍टर निशा बांगरे इस्‍तीफा दे कर राजनीति में उतरी। विवादास्‍पद आईपीएस पुरुषोत्‍तम शर्मा ने भी इस्‍तीफा दिया लेकिन सरकार ने स्‍वीकार नहीं किया। रिटायर्ड आईएएस वेदप्रकाश सहित आधा दर्जन आईएएस बीजेपी से टिकट के दावेदार थे मगर इनमें से किसी को भी टिकट नहीं मिला।  

एमपी तो ठीक राजस्थान में भी टिकट की जुगत बैठा रहे प्रदेश के आईपीएस अफसा को निराशा ही हाथ लगी। एडिशनल डीजी पुलिस पवन जैन रिटायर हो कर अपने गृह क्षेत्र राजस्थान के धौलपुर चले गए थे। दावा था कि बीजेपी ने उन्हें राजाखेड़ा सीट से प्रत्याशी बनाने का वादा किया है। मगर टिकट किसी ओर को मिल गया। उनके सहित अब टिकट के आकांक्षी सभी अफसरों के पास समाज सेवा का ही सहारा है