स्‍कूल शिक्षा से उच्‍च शिक्षा मंत्री बने लेकिन नहीं छोड़ा ओएसडी 

टीम वही करती है जो मुखिया चाहता है लेकिन मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री मोहन यादव की कैबिनेट मंत्री इंदरसिंह परमार ने अपने टीम लीडर की राजनीति और उद्देश्‍य दोनों को किनारे कर दिया है। उच्‍च शिक्षा विभाग के कामकाज को प्रभावित कर रहे मंत्री के इस निर्णय का कारण ओएसडी प्रेम है। 

विधानसभा चुनाव के बाद मोहन सरकार ने बीजेपी संगठन की सहमति से तय किया था कि मंत्रियों के साथ पूर्व का स्‍टॉफ काम नहीं करेगा। अधिकांश मंत्रियों को उनकी पसंद के अधिकारी आठ माह के इंतजार के बाद दिए गए लेकिन उच्‍च शिक्षा मंत्री इंदरसिंह परमार ने तो ओएसडी भरत व्‍यास को कभी छोड़ा ही नहीं। स्‍कूल शिक्षक भरत व्‍यास शिवराज सरकार के समय से ही मंत्री इंदरसिंह परमार के ओएसडी हैं। तब इंदर सिंह परमार स्‍कूल शिक्षा मंत्री हुआ करते थे। 

मोहन सरकार में इंदरसिंह परमार को उच्‍च शिक्षा मंत्री बनाया गया। मंत्री इंदरसिंह परमार स्‍कूल शिक्षा से उच्‍च शिक्षा में पदोन्‍नत तो हुए लेकिन अपने ओएसडी को नहीं छोड़ा। वे स्‍कूल शिक्षा विभाग के शिक्षक/प्राचार्य को अपने साथ उच्‍च शिक्षा विभाग में ले आए। अब ओएसडी भरत व्‍यास की देखरेख में ही नई शिक्षा प्रणाली को लागू करने, उच्‍च शिक्षा को रोजगारोन्‍मुखी बनाने जैसे महत्‍वपूर्ण कार्य हो रहे हैं। और जब इन कार्यो में विभाग पिछड़ रहा है तो दोष वाया ओएसडी भरत व्‍यास मंत्री तक भी आ रहा है। बीत दिनों प्रदेश के सभी कॉलेज और यूनिवर्सिटी में सत्र 2024-25 के लिए ड्रेस कोड लागू करने के आदेश हुए लेकिन अब तक ड्रेस कोड की नीति नहीं बन पाई है। मध्यप्रदेश नई शिक्षा प्रणाली को लागू करवाने वाला पहला राज्‍य है लेकिन नई शिक्षा पद्धति से पीजी कैसे होगा इस जैसे महत्‍वपूर्ण मामले पर स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं दिए गए हैं।

आमतौर पर मंत्री के निर्देशों को धरातल पर उतारने का कार्य प्रशासनिक अधिकारियों का होता है मगर उच्च शिक्षा विभाग में गलफलत ज्‍यादा है। मंत्री इंदरसिंह परमार बीजेपी के छात्र संगठन एबीवीपी के उज्‍जैन के संगठन प्रभारी रहे हैं। स्‍कूल शिक्षा मंत्री बनने पर जब ओएसडी बनाने की बारी आई तो उन्‍होंने उज्‍जैन के शिक्षक भरत व्‍यास को चुना था। उच्‍च शिक्षा विभाग संभालने के बाद उज्‍जैन की राजनीति को जानते हुए भी उन्‍होंने भरत व्‍यास पर ही भरोसा जताया। 

ओएसडी भरत व्‍यास उज्‍जैन निवासी पूर्व मंत्री पारस जैन के  नजदीकी हैं। उज्‍जैन की राजनीति में पूर्व मंत्री पारस जैन और मुख्‍यमंत्री मोहन यादव की प्रतिस्‍पर्धा और लड़ाई जगत ख्‍यात है। मोहन यादव के मुख्‍यमंत्री बनने के बाद ही लोकायुक्‍त ने पूर्व मंत्री पारस जैन पर केस भी दर्ज किया है। इसके बाद भी मुख्‍यमंत्री के पसंदीदा विभाग उच्‍च शिक्षा में पूर्व मंत्री पारस जैन के खास व्‍यक्ति भरत व्‍यास की तूती बोल रही है। आलम यह है कि उच्‍च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार पूरी तरह भरत व्‍यास पर निर्भर हैं और विभाग में तालमेल गड़बड़ा रहा है। राजनीति का यह प्रशासनिक आयाम अंदरूनी स्थिति की बानगी है। 

मंत्री शिवराज सिंह चौहान के बाद सीएम मोहन यादव की डिनर पार्टी 

कायदे से तो मुख्‍यमंत्री बनते ही मोहन यादव को दिल्‍ली में प्रतिनियुक्ति पर गए आईएएस तथा अन्‍य कैडर के अधिकारियों के साथ एक भोज आयोजित कर लेना था मगर तमाम व्‍यस्‍तताओं के चलते यह हुआ नहीं। उनके सलाहकारों तो यह काम तब याद आया जब केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिल्‍ली में यह पार्टी दी। शिवराज सिंह चौहान ने केवल आईएएस अफसरों को ही अपने निवास पर भोज के लिए आमंत्रित किया था। 

इस पार्टी की चर्चा के बाद अब गुरुवार को दिल्‍ली पहुंचे मोहन यादव ने प्रतिनियुक्ति पर राजधानी दिल्‍ली गए आईएएस और आईपीएस अफसरों को डिनर पर आमंत्रित किया। अब मुद्दा यह नहीं रह गया कि सीएम ने बाद में भोज दिया बल्कि इस भोज में आईएएस अफसरों की भावभंगिमा पर नजर रही। दिल्ली में पदस्थ मप्र कॉडर के आईएएस व आईपीएस अफसरों से मुख्‍यमंत्री मोहन यादव ने समूह में लंबी चर्चा करते हुए मध्‍यप्रदेश की योजनाओं में सहयोग का आग्रह किया। सीएम ने कुछ अफसरों के साथ एकांत में बात भी की। इस वन टू वन चर्चा के दौरान मुख्यसचिव पद के प्रमुख दावेदार कहे जा रहे आईएएस अनुराग जैन की भी मुख्‍यमंत्री मोहन यादव से बातचीत हुई। इसे मध्‍य प्रदेश के भावी मुख्‍य सचिव से जोड़कर भी देखा जा रहा है। 

आईएएस अनुराग जैन बीते दो साल से सीएस पद के सबसे सशक्‍त दावेदार माने जा रहे हैं लेकिन उनकी दिल्‍ली से वापसी नहीं हो रही है। अब सितंबर अंत में मुख्‍य सचिव वीरा राणा को मिले एक वर्ष के एक्‍सटेंशन की अवधि भी पूरी हो रही है तो अनुराग जैन, एसीएस राजेश राजौरा सहित अन्‍य नाम फिर चर्चा में आ गए हैं। 

चुनौती बन रहे आईएएस पर ईओडब्‍ल्‍यू का अंकुश 

जब कोई व्‍यक्ति सरकार की नाक में दम कर देता है तो उसे हद में समटने के लिए सख्‍ती एक उपाय होता है। ऐसा ही कुछ हुआ रिटायर्ड आईएएस एपी श्रीवास्‍तव के साथ। कभी मुख्‍यसचिव बनने की हसरत देख रहे आईएएस एपी श्रीवास्‍तव को रिटायर होने के बाद मप्र की रियल स्टेट रेग्युलेटरी अथॉरिटी यानी रेरा का चेयरमैन बनाया गया था। अब सरकार उन्‍हें हटाने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। 

रेरा चेयरमैन बनने की कहानी भी दिलचस्‍प है। 1984 बैच के मप्र कैडर के आईएएस एपी श्रीवास्तव जब कमलनाथ सरकार में मुख्य सचिव पद की दौड़ से बाहर हुए तो नाराज हो कर चार महीने की छुट्टी पर चले गए थे। सरकार बदलने पर 2021 में उन्‍हें रेरा का चेयरमैन बना दिया गया। रेरा का चेयरमैन एक तरह से सर्वशक्तिमान पद है जिसपर काबित व्‍यक्ति को न तो समय के पहले हटाया जा सकता है और न उसके निर्णय पर रोक हो सकती है। यही मुख्‍यमंत्री बनते ही मोहन यादव ने सभी निगम-मंडल, संस्‍थाओं के पदाधिकारियों को हटा दिया था। कार्यप्रणाली को देखते हुए रेरा चेयरमैन को भी हटा दिया गया था लेकिन यह निर्णय वापस करना पड़ा क्‍योंकि सरकार को उन्‍हें हटाने का अधिकार ही नहीं है। 

सरकार को यह बात अखरती रही कि ताकतवर पद पर पहुंचने के बाद रेरा चेयरमैन के रूप में एपी श्रीवास्‍तव का रवैया आईएएस जैसा ही रहा। वे किसी की सुनने की तैयार ही नहीं है। इस कारण कई जायज काम भी अटक गए हैं। सरकार की नाराजगी इतनी बढ़ गई कि उनके खिलाफ भ्रष्‍टाचार की शिकायत आते ही तुरंत आर्थिक अपराध अन्‍वेषण ब्‍यूरो यानी ईओडब्‍ल्‍यू ने जांच शुरू कर दी। अब रेरा चेयरमैन कह रहे हैं कि ईओडब्‍ल्‍यू को उनके खिलाफ मामला दर्ज करने का अधिकार नहीं है।

ईओडब्‍ल्‍यू आर्थिक अनियिमितता की शिकायत पर जांच के लिए अड़ा हुआ है जबकि सरकार ने एपी श्रीवास्तव के खिलाफ मिली  सभी शिकायतें हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेज दी है। मतलब ईओडब्‍ल्‍यू की जांच से रेरा चेयरमैन पर अंकुश न हो तो हाईकोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश कार्रवाई कर दें और उन्हें तय समय से दो साल पहले पद से हटना पड़े। जैसे भी हो, सरकार को राहत चाहिए आखिर मामला बिल्‍डर लॉबी के हितों से जुड़ा है। 

मुख्‍यमंत्री बनते ही डॉ. मोहन यादव ने पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार द्वारा ही नियुक्‍त सभी निगम मंडल तथा संस्‍थानों के पदाधिकारियों को हटा दिया था लेकिन निर्माण कार्यों पर नजर रखने वाली संस्‍था रेरा के अध्‍यक्ष रिटायर्ड सीनियर आईएएस को हटाने का फैसला वापस लेना पड़ा था क्‍योंकि नियमानुसार उन्‍हें हटाया नहीं जा सकता है। रिटायर्ड आईएएस एपी श्रीवास्‍तव की कार्यप्रणाली से सरकार इतनी नाराज है कि उनके इस्‍तीफा न देने पर ईओडब्‍ल्‍यू में केस दर्ज कर लिया गया है। रिटायर्ड आईएएस श्रीवास्‍तव नियमों का हवाला दे कर सरकार से लड़ रहे हैं।   

अब तो पद दे दो सरकार 

ऐसा नहीं है कि मध्‍यप्रदेश में बीजेपी के कई कद्दावर नेताओं को ही विभिन्‍न निगम, मंडलों, संस्‍थाओं में नियुक्तियों का इंतजार है। प्रदेश के कई रिटायर्ड अफसर बेसब्री से पुनर्वास का इंतजार कर रहे हैं। वे अपने राजनीतिक और प्रशासनिक संपर्कों को आजमा रहे हैं कि जल्‍द से जल्‍द नियुक्ति हो और उनका रूतबा लौट कर आए। 

मध्य प्रदेश सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के सभी 10 पद मार्च 2024 से रिक्त हैं। अब तक प्रदेश में सभी 10 सूचना आयुक्‍तों की नियुक्ति कभी हुई ही नहीं है। सूचना आयुक्‍तों का कार्यकाल खत्‍म होता रहा और विधानसभा, फिर लोकसभा चुनाव आचार संहिता के कारण सूचना आयुक्तों की नियुक्ति टलती रही। इसके साथ ही मप्र स्टेट इनवायरमेंट इम्पेक्ट असेसमेंट अथॉरिटी यानी सिया में 11 व इसके अधीनस्थ काम करने वाली सैक यानी स्टेट लेवल एक्सपर्ट अप्रेजल कमेटी के 8 पद भी खाली है। इन पदों के लिए तीन दर्जन से अधिक रिटायर्ड अधिकारी कतार में हैं। 

यूं तो राज्‍य निर्वाचन आयुक्‍त के रूप में पूर्व मुख्‍य सचिव बीपी सिंह का कार्यकाल भी खत्‍म हो गया है लेकिन राज्‍य निर्वाचन आयुक्‍त के रूप में पूर्व सीएस बीपी सिंह को सेवावृद्धि दी गई है। इस पद पर रिटायर्ड होते ही मुख्‍य सचिव की नियुक्ति होती है। वर्तमान मुख्‍य सचिव वीरा राणा 30 सितंबर को रिटायर हो रही है। उनके रिटायर होने तक पद भरा रखने के लिए पूर्व मुख्‍यसचिव बीपी सिंह को सेवावृद्धि दी गई है। यदि वीरा राण को और अधिक सेवावृद्धि नहीं मिलती है तो उन्‍हें राज्‍य निर्वासन आयुक्‍त बनाया जाएगा। ऐसा होने पर वर्तमान राज्‍य निर्वाचन आयुक्‍त बीपी सिंह के रूप में पुनर्वास के दावेदार अफसरों की संख्‍या में इजाफा हो जाएगा।