मध्य प्रदेश में राशन की कालाबाजारी इन दिनों सुर्खियों में है। जबलपुर में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गरीबों के लिए मिलने वाले राशन में फ़ूड कमिश्नर की आईडी का दुरुपयोग कर 2.5 करोड़ रुपए का घोटाला किया गया है। इस घोटाले में सरकारी अधिकारी और दुकानदार शामिल थे। शिवपुरी पुलिस ने एक ट्रक से 412 क्विंटल सार्वजनिक वितरण का चावल जब्त किया जिसका कीमत 11.2 लाख रुपए था। यह ट्रक दतिया से गुजरात जा रहा था। इस तरह की कई घटनाएं सामने आई है।
कालाबाजारी में उनके हाथ काले हैं जिनके उपर सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पारदर्शी तरीके से वंचित लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी है। मध्य प्रदेश सार्वजनिक वितरण प्रणाली नियंत्रण आदेश, 2015, यह आदेश सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक पारदर्शी और कुशल बनाने में मदद करता है। यह सुनिश्चित करता है कि खाद्यान्न और अन्य आवश्यक वस्तुएं जरूरतमंदों तक सही मात्रा और समय पर पहुंचे।
यह खाद्यान्न के गबन और कालाबाजारी जैसी गतिविधियों को रोकने में भी सहायक है, क्योंकि अब यह एक आपराधिक अपराध माना जाता है। इन प्रावधानों को दरकिनार करते हुए कालाबाजारी को अंजाम दिया गया है। इसी वर्ष जुलाई माह में राज्य के खाद्य मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने केंद्रीय खाद्य मंत्री प्रह्लाद जोशी से कालाबाजारी को रोकने की मांग की थी। मुलाकात के समय गोविंद सिंह राजपूत ने बताया कि कई बार व्यापारी हितग्राहियों से सस्ते दाम पर चावल खरीदकर उसे खुले बाजार में बेच देते हैं, जिससे गड़बड़ी बढ़ जाती है। उन्होंने खाद्य वितरण प्रणाली और उपार्जन केंद्रों में सुधार की आवश्यकता जताई थी।
भंडारण में लापरवाही के कारण अनाज की बर्बादी भी एक चुनौती बना हुआ है। दूसरी ओर अनाज की बर्बादी और बच्चों का कुपोषित होना एक गंभीर समस्या है। प्रदेश में हजारों टन अनाज खरीदी - भंडारण - उठाव के अव्यवस्था के कारण सङ कर बर्बाद हो गया। कटनी के अलग-अलग वेयर हाउसों में भंडारित करीब 5 हजार टन गेहूं बर्बाद हो चुका है। शहडोल जिले में खरीदी के तीन महीने बाद भी एक लाख क्विंटल से अधिक धान खुले आसमान के नीचे पङी हुईं है। लगातार बारिश से ओपन केप में रखी धान नमी और सीपेज के कारण खराब होने लगी है।
छिंदवाड़ा जिले में वर्ष 2021 में 3 लाख 13 हजार मिट्रिक टन गेहूं खरीदी में से 1732 मिट्रिक टन की क्वालिटी खराब बात कर रोक दिया गया था। 5 साल बाद अब इसकी हालत इतनी खराब हो चुकी है कि करोङो रुपए मुल्य का यह गेहूं कौङीयों के दाम की नहीं रही। जबलपुर जिले में 2020 से लेकर 2024 के बीच किसानों से खरीदा गया 16 हजार मिट्रिक टन गेहूं गोदामों में सर रहा है। इसकी कीमत 30 से 35 करोड़ के बीच है। उठाव में देरी और नियमित देखभाल नहीं होना, इसके खराब होने का प्रमुख कारण हैं। खंडवा के सेंट्रल वेयर हाउस में जमा दो साल से रखा 2600 क्विंटल गेहूं सङ रहा है।
रीवा में सिरमौर के उमरी कैप में रखे 3 करोड़ का अनाज सङने का मामला प्रकाश में आया है। ये तो मात्र कुछ उदाहरण हैं जो जानकारी में आया है। प्रदेश के अन्य जिलों में भी इस तरह के मामले हो सकते हैं। हैरानी की बात यह है कि वेयर हाउस मालिकों को अनाज की सुरक्षा के लिए सरकार हर साल करोड़ों रुपए किराया के रूप में दे रही है, फिर भी अनाज साल दर साल बर्बाद होता चला जा रहा है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार कटनी जिले में 2019-20 में भंडारण पर 3 करोड़ 81 लाख,2020-21 में 4 करोड़ 70 लाख और 2021-22 में 3 करोड़ 61 लाख रुपए से अधिक का भूगतान किया गया था। परन्तु गरीबों के निवाले वाले अनाज की रक्षा नहीं हो सकी। मध्य प्रदेश के सरकारी गोदामों में लगभग 9 लाख क्विंटल अनाज सड़ गया। यह अनाज पूरे प्रदेश को लगभग एक महीने तक खिलाने के लिए पर्याप्त था। यह अनाज अब पशुओं के चारे के लायक भी नहीं है। यह विडम्बना नहीं, उसकी पराकाष्ठा है कि सरकार किसानों से खरीदे गए अनाज को खुले में छोड़कर अपना कर्तव्य पूरा समझ लेती है। जबकि देश के खाद्य प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य किसानों से लाभकारी मूल्य पर खाद्यान्न खरीदना, उपभोक्ताओं को, विशेष रूप से समाज के कमजोर वर्गों को, उचित मूल्य पर खाद्यान्न वितरित करना तथा खाद्य सुरक्षा और मूल्य स्थिरता के लिए बफर स्टॉक बनाए रखना है।
इस लचर व्यवस्था से उपरोक्त लक्ष्य को कैसे हासिल किया जा सकता है। केन्द्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के अन्तर्गत मध्यप्रदेश को 2023- 24 में 16939.27 और 2024- 25( अक्टूबर 24 तक) 3449.05 करोड़ रुपए का सब्सिडी भी दिया गया है। प्रदेश में 8,000 गोदाम हैं जिनमें वेयरहाउसिंग एंड लॉजिस्टिक कॉरपोरेशन किसानों से खरीदे गए अनाज को रखता है। भारत में खाद्यान्न भंडारण अवसंरचना को आधुनिक बनाने और उन्नत बनाने तथा भंडारण क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के अंतर्गत स्टील साइलो का निर्माण किया जा रहा है। अब तक, कुल 23.25 लाख मीट्रिक टन क्षमता के साइलो काम कर रहे हैं और 6.5 लाख मीट्रिक टन निर्माणाधीन हैं।
अनाज बर्बाद होने की घटना ऐसे देश में हो रही है, जिसकी ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 105 वीं रैंक है। लोकसभा में दिए गए एक जवाब के अनुसार मध्य प्रदेश में 5 साल से कम उम्र के 26% से ज्यादा बच्चे कम वजन के हैं, जो देश में सबसे ज़्यादा है। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार प्रदेश में 10 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं, जिनमें से 1.36 लाख गंभीर रूप से कमजोर हैं। केंद्र के न्यूट्रिशन ट्रैकर ऐप के अनुसार, मई 2025 में मध्य प्रदेश के 55 में से 45 जिले 'रेड जोन' में थे जहां 20% से अधिक बच्चे अपनी उम्र के अनुसार बेहद कम वजन के हैं। आदिवासी विकास खंडों में 2020 से 2025 तक 85 हजार से अधिक बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्रों में भर्ती किया गया है।
प्रदेश में कुपोषण से लड़ने के लिए 4895 करोड़ रुपए का बजट दिया गया है लेकिन प्रदेश की 97000 आंगनबाडियों में 38% बच्चे कुपोषण की चपेट में पाए गए। भोपाल के 27%, इंदौर के 45%, उज्जैन के 46% और ग्वालियर चंबल में लगभग 35% बच्चे गंभीर कुपोषण वाली सूची में रजिस्टर्ड हैं। लंबे समय से ऐसा भयंकर कुपोषण जिसके चलते बच्चों के लंबाई रूक जाती है और उम्र के हिसाब से शरीर का विकास नहीं होता। कुपोषण का यह सबसे महत्वपूर्ण संकेत माना जाता है।
विगत जुलाई में एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए जबलपुर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा व जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने राज्य के सभी जिला कलेक्टरों को कुपोषण की वास्तविक स्थिति पर चार सप्ताह में स्टेटस रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं।
विश्व में 'खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति' रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारत में कुपोषित लोगों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है, और 19.5 करोड़ लोग इससे प्रभावित हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट को यूनिसेफ सहित संयुक्त राष्ट्र की पाँच एजेंसियों ने संयुक्त रूप से प्रकाशित किया है। अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान द्वारा हाल ही में जारी वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट और भी चिंताजनक है क्योंकि अनेक प्रयासों के बावजूद, दुनिया भर में एक बड़ी आबादी अभी भी पौष्टिक आहार से वंचित है।
संयुक्त राष्ट्र फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2024 के वैश्विक आंकड़ों को देखें तो सालाना कुल खाद्य उत्पादन का 19 फीसदी बर्बाद हो रहा है, जो करीब 105.2 करोड़ टन के बराबर है। दूसरी ओर दुनिया में 78.3 करोड़ लोग खाली पेट सोने को मजबूर हैं। खाद्य बर्बादी की वैश्विक आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक लागत 2.6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर आंकी गई है। उच्चतम न्यायालय ने सन् 2010 में कहा था कि ऐसे देश में जहां लोग भूख से मर रहे हैं, वहां अन्न का एक दाना भी बर्बाद करना अपराध है। यह एक नैतिक और मानवीय मुद्दा है जो न केवल भोजन के अधिकार का उल्लंघन करता है और कुपोषण को बढ़ाता है, बल्कि संसाधनों का गंभीर दुरुपयोग है, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है, और सामाजिक असंतुलन पैदा करता है।
बताया जाता है कि मिली भगत के चलते अनाज को जान बुझकर सङने दिया जाता है ताकि शराब कंपनियां बीयर व अन्य मादक पेय बनाने के लिए सङे हुए अनाज खासकर गेहूँ को औने - पौने दाम पर खरीद सके। इस अनाज की बर्बादी और कालाबाजारी को रोकना बहुत जरूरी है। अगले 35 वर्षों में जब हमारी आबादी 200 करोड़ बढने वाली है।तब हम सबको अन्न कैसे उपलब्ध करा पाएंगे?
(लेखक राज कुमार सिन्हा बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ से जुड़े हुए हैं।)