करणी सेना राजपूतों का संगठन है और यह अपनी मांगों को लेकर अक्सर दबाव समूह के रूप में कार्य करता है। बीते शनिवार और रविवार को हरदा में करणी सेना और पुलिस तीन बार आमने-सामने आए। बताया जाता है कि मामला करणी सेना के नेता आशीष राजपूत के साथ हुई धोखाधड़ी से जुड़ा है। हीरे के नाम पर कुछ लोगों ने उनसे 18 लाख रुपए ठग लिए। आशीष ने तीन लोगों के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज करवाया था। इनमें विकास लोधी, मोहित वर्मा और उमेश तपानिया मुख्य आरोपी हैं। पुलिस में शिकायत के बाद मोहित वर्मा को पकड़ लिया गया। करणी सैनिक पुलिस पर दबाव बना रहे थे कि आरोपी मोहित वर्मा को उन्हें सौंपने का दबाव बनाने लगे। मामला देखते ही देखते और तनावपूर्ण हो गया। पुलिस ने हालात को काबू में करने के लिए लाठी चार्ज कर दिया।
शनिवार को हुए विवाद के बाद रातभर धरने पर बैठे करणी सैनिकों को रविवार सुबह चक्का जाम समाप्त करने के लिए समझाइश दी गई। वे नहीं माने तो पुलिस ने चेतावनी दे कर बल प्रयोग किया। इसके बाद करणी सेना के कार्यकर्ता महाराणा प्रताप कॉलोनी स्थित राजपूत छात्रावास में एकत्र हो गए। यहां विवाद बढ़ा तो पुलिस ने गेट खुलवाकर बल प्रयोग किया। करणी सेना के कई नेता गिरफ्तार कर लिए गए।
पुलिस की इस कार्रवाई को बर्बर बताते हुए कांग्रेस ने कहा कि छात्रावास में बच्चों और महिलाओं को पीटा गया है। पुलिस अराजक हो गई है और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए। करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष महिपाल सिंह मकराना ने बीजेपी को चेतावनी दी है कि दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती तो राजपूत समाज राज्यव्यापी आंदोलन करेगा। महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव जितवाने का दावा करने वाली करणी सेना ने कहा है कि यदि इस मामले में कार्रवाई नहीं हुई तो बिहार हाथ से निकल जाएगा। करणी सेना मध्य प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में भी आंदोलन कर सकती है।
फिलहाल, करणी सेना के कई नेता पुलिस गिरफ्त में हैं और करणी सेना उनके छूटने का इंतजार कर रही है। मोटे तौर पर बीजेपी का समर्थक मानी जाने वाली करणी सेना इस बार बीजेपी की सरकार में ही पिट गई है और सड़क आक्रोश व्यक्त भी नहीं कर पा रही है। उसका विरोध भी उसकी छवि की तरह आक्रामक नहीं है। संभव है कि हीरे की धोखाधड़ी से उपजा विवाद व्यक्तिगत हित का मामला हो और इसमें करणी सेना का कूद पड़ना उपयुक्त न हो। यह भी संभव है कि सरकार की चमक के आगे करणी सेना की धमक काम नहीं कर रही है और वह मामले को सम्मानजनक ढंग से निपटाना चाहती हो, इसलिए तुरंत आंदोलन नहीं किया जा रहा है। फिलहाल मामला, करणी सेना के इरादे और पुलिस की कार्रवाई के विरोध के बीच अटका हुआ है।
‘खाली’ वीडी शर्मा तलाश रहे सोशल मीडिया पर स्पेस
बीजेपी ने 10 माह इंतजार के बाद बैतूल विधायक हेमंत खंडेलवाल को नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। अब हेमंत खंडेलवाल की कार्यकारिणी का इंतजार है। पद पाने की आतुर कई नेता यहां-वहां संपर्क कर रहे हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि संघ की राह चल कर फिर से संभागीय संगठन महामंत्री नियुक्त किया जाएगा। ऐसा हुआ तो कई नेताओं को काम मिल जाने की उम्मीद बंध गई हैं।
लेकिन इन सारी कवायदों के बीच पूर्व अध्यक्ष और खजुराहो सांसद वीडी शर्मा का बंगला सूनासूना है। जहां कभी भीड़ जुटा करती थी वहां अब कम ही लोग दिखाई देते हैं। वे पोस्टरों से गायब हो चुके हैं। उम्मीद थी कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में प्रदेश में बीजेपी की शानदार जीत का वीडी शर्मा को पुरस्कार मिलेगा और प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद उन्हें केंद्र में मंत्री बनाया जाएगा। प्रदेश अध्यक्ष के रूप में दो कार्यकाल पूरा कर चुके वीडी शर्मा को अभी कोई पद देने की चर्चाएं भी नहीं है। यानी वे केवल खुजराहो सांसद हैं। वीडी शर्मा इस खाली समय का उपयोग परिवार के साथ समय व्यतीत कर और सोशल मीडिया में अधिक ‘स्पेस’ बनाने में कर रहे हैं।
14 जुलाई को उनकी बेटी का जन्मदिन था तो परिवार के साथ भोजपुर मंदिर गए और घर में बच्चों की पार्टी में भी शामिल हुए। इसके फोटो उन्होंने सोशल मीडिया पर शेयर भी किए। इस तरह के ऑफ बीट फोटो अधिक उत्सुकता से देखे जा रहे हैं अन्यथा तो राजनीतिक पोस्ट पर भी कम ही रिस्पांस मिल रहा है।
क्या नेताओं को झोला उठा कर जाना पड़ेगा?
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत अधिकांश बातें सूत्रों में करते हैं। यानी उनका एक वाक्य ही विमर्श के कई पन्नों को खोल देता है। ऐसी हुआ जब दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में डॉ. मोहन भागवत ने उम्र को लेकर बयान दिया। इस बयान ने विमर्श को तो जन्म दिया लेकिन भाजपा की राजनीति में भय की लहरें उठा दी। यदि इस बयान को दिशा निर्देश मान कर काम कर लिया जाए इन लहरों कर सुनामी में कई स्थापित राजनेताओं के अरमान बह जाएंगे।
डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि 75 साल की उम्र का अर्थ मैं जानता हूं। 75 साल की शॉल जब ओढ़ी जाती है, तब उसका अर्थ यह होता है कि अब आप की आयु हो गई, अब जरा बाजू हो जाओ, हमें करने दो। यह एक खास संदर्भ में दिया गया बयान है लेकिन इसका असर चारों दिशाओं में होना था, और हुआ भी। इस बयान को यह विमर्श से जोड़ कर देखा गया कि 75 वर्ष की उम्र के सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया जाना चाहिए। इस बयान पर चर्चा इसलिए भी हुई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सितंबर में 75 वर्ष के हो रहे हैं। स्वयं डॉ. मोहन भागवत भी 75 वर्ष को होने वाले हैं। अब भी बीते कुछ समय से भाजपा की राजनीति की दिशा और प्रधानमंत्री मोदी के विकल्प की चर्चा हो रही है। ऐसे में यह दावा भी विमर्श का ही हिस्सा है कि प्रधानमंत्री मोदी जल्द अपने उत्तराधिकारी को सत्ता सूत्र सौंपने वाले हैं।
यह तो राष्ट्रीय राजनीति की चर्चाएं हैं लेकिन डॉ. मोहन भागवत के बयान ने मध्य प्रदेश के राजनेताओं को फिक्र में डाल दिया है। मध्यप्रदेश में 75 वर्ष पार उम्र के बाद भी राजनीति में सक्रिय करने वाले नेताओं की सूची काफी लंबी है। इस सूची में गोपाल भार्गव, जयंत मलैया, बिसाहूलाल सिंह, अजय विश्नोई, सीतासरन शर्मा, पन्नालाल शाक्य, मधु वर्मा,जगन्नाथ सिंह रघुवंशी, प्रेमशंकर वर्मा, विश्वनाथ सिंह, हजारीलाल दांगी जैसे नेता शामिल हैं। अधिकांश नेताओं ने संघ प्रमुख के बयान पर प्रतिक्रिया देना उचित नहीं समझा लेकिन पूर्व मंत्री रामकृष्ण कुसमारिया ने विरोध में बेबाक राय रखी। रामकृष्ण कुसमारिया ने कहा कि अगर बुजुर्गों को साथ ले जाओ तो काम अच्छे से होता है। क्या बाप-महतारी को कचरे में डाल दोगे? वृद्ध आश्रमों में भेज रहे हैं, सेवा करने से कतरा रहे हैं। हम भी बुजुर्ग हैं, क्या हमें भी फेंक दोगे?
इस आक्रोशित प्रतिक्रिया का कारण मध्यप्रदेश में कुछ वर्ष पहले उम्र का हवाला देकर सक्रिय राजनीति से दूर करने का नियम है। कुछ बरस पहले बाबूलाल गौर और सरताज सिंह जैसे कद्दावर नेताओं को उम्र अधिक होने के कारण ही मंत्री पद से बेदखल कर दिया गया था। उसके बाद पार्टी यह नियम भूल गई और कई उम्र दराज नेताओं को पद नवाज दिए। यह सब राजनीतिक समीकरणों के कारण हुआ। जहां राजनीतिक मजबूरी थी भाजपा ने उम्र का नियम भूला दिया और जहां नेताओं को बाहर करना था वहां उम्र को बाधा मान लिया गया। अब 75 पार के नेताओं को इसीलिए डर लग रहा है कि इस बार भी चुन चुन कर न बाहर किया जाए। ऐसा हुआ तो जाने किन किन को झोला उठा कर चले जाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
पूरी बीजेपी से किला लड़ाती एक अकेली लीला
सीधी जिले की 22 वर्षीय गर्भवती महिला लीला साहू सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं। अपनी इन पोस्ट और इन्हें मिल रही प्रतिक्रियाएं स्थानीय बीजेपी नेताओं को रास नहीं आ रही हैं। मामला ही कुछ ऐसा है। गर्भवती लीला साहू ने जब अस्पताल आने-जाने में आ रही दिक्कतों का जिक्र करते हुए सड़क की मांग रखी तो बीजेपी सांसद राजेश मिश्रा ने उन्हें हल्के में लिया और प्रतिक्रिया दे दी कि प्रसव की संभावित तारीख होती है। तारीख बताओ हम आठ दिन पहले उठवा लेंगे।
इस बयान को असंवेदनशील बताते हुए सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं हुई। खुद लीला साहू भी चुप नहीं बैठीं। उन्होंने दूसरा वीडियो जारी कर कहा कि गांव में छह गर्भवती महिलाएं हैं, किस किस को उठवाएंगे? हमें अस्पताल आने-जाने के लिए सड़क ही दे दो।
लीला साहू के वीडियो तेजी से वायरल हो रहे हैं और बीजेपी नेता घिर रहे हैं। इस राजनीति पर लीला ने स्पष्ट किया कि उन्हें राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है, फिर भी वह अपनी ऑनलाइन मौजूदगी का इस्तेमाल स्थानीय मुद्दों को उठाने के लिए करती रहेंगी। लीला साहू के YouTube, Instagram और Facebook पर 23 लाख से ज्यादा फ़ॉलोअर्स हैं और यह बीजेपी के लिए सिर दर्द बना हुआ है। ऐसे समय में जब विपक्ष विंध्य क्षेत्र में बीजेपी सरकार को घेरने वाले मुद्दे नहीं बना पा रहे है तब अकेली लीला साहू समूची बीजेपी को परेशान किए हुए है। पहले वीडियो के समय तीखी प्रतिक्रिया देने वाले बीजेपी सांसद राजेश मिश्रा के सुर भी ठंडे पड़ गए हैं।