केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अपना काफिला रूकवा कर कार्यकर्ताओं से स्वागत करवा रहे थे कि तभी सड़क पर उड़ती धूल देख कर उन्होंने टिप्पणी की कि ग्वालियर का बहुत बुरा हाल है...। सड़कों की खस्ता हालत पर टिप्पणी वाले इस वीडियो के वायरल होने के बाद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर कलेक्ट्रेट पहुंचे। उन्होंने रेलवे स्टेशन और एलिवेटेड रोड निर्माण कार्य की समीक्षा की। अफसरों को हिदायत दी गई। इस बैठक में समर्थक मंत्री तुलसी सिलावट और प्रद्युम्न सिंह तोमर, विधायक मोहन सिंह और ग्वालियर की महापौर शोभा सिकरवार तो मौजूद थे।
यह सबकुछ सामान्य माना जाता लेकिन बैठक में सांसद भारत सिंह कुशवाह को न देख कर सवाल उठे। यही सवाल कुछ माह पहले भी उठे थे जब गुना-शिवपुरी संसदीय सीट से सांसद बनने के बाद भी ज्योतिरादित्य सिंधिया का ग्वालियर की राजनीति और विकास कार्यों में सीधा दखल बीजेपी नेताओं को पसंद नहीं आया था। विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के समर्थक ग्वालियर सांसद भारत सिंह कुशवाह ने ग्वालियर में सिंधिया की सक्रियता को अपने क्षेत्र में हस्तक्षेप माना था। उन्होंने संगठन को अपनी नाराजगी से अवगत करवा दिया था। इसके बाद केंद्रीय मंत्री सिंधिया ने ग्वालियर संसदीय क्षेत्र में चल रहे विकास कार्यों से दूरी तो बना ली थी।
वे ग्वालियर की राजनीति में सीधे हस्तक्षेप नहीं कर रहे थे लेकिन सार्वजनिक मंचों से गिना रहे थे कि उन्होंने ग्वालियर के लिए क्या-क्या काम किया है। इस पर भी विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने तंज किया था। मुरैना में विकास कार्यों का लोकार्पण करते हुए विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने सिंधिया का नाम लिए बिना कहा था कि कुछ लोग मैं लाया, मैं लाया... की राजनीति कर रहे हैं। जबकि, यह विकास कार्य बीजेपी और सरकार की नीतियों का परिणाम है। किसी एक व्यक्ति को इसका श्रेय नहीं दिया जा सकता है।
इस तंज के बाद साफ हो गया था कि बीजेपी के दो वरिष्ठ नेताओं केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। ग्वालियर की राजनीति से लगभग छह माह की दूरी के बाद सिंधिया फिर सक्रिय हुए तो यह एकाएक नहीं हो गया। सिंधिया के सिपहसालार कहे जाने वाले उनके खास समर्थक ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर और ग्वालियर के प्रभारी मंत्री तुलसी सिलावट ने कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के समक्ष ग्वालियर की सड़कों को लेकर आक्रोश व्यक्त किया था। इसके बाद सिंधिया मैदान में उतर गए। मतलब साफ है पहले कैबिनेट में पहले भूमिका बनाई गई और फिर ग्वालियर से सिंधिया की दूरी खत्म हो गई। लेकिन यह इतना सादा मामला नहीं है। इस तरह, बीजेपी में आपसी संघर्ष का नया अध्याय तो खुल गया है।
किसान सड़क पर, सीएम बयान तक सीमित क्यों?
एक माह के सिंहस्थ के लिए 11 साल तक किसानों की जमीन अधिग्रहित करने तथा स्थाई निर्माण करने की शासन की योजना का विरोध तेज होता जा रहा है। बयानों से आगे जा कर अब सड़क पर ताकत दिखाई जा रही है। मंगलवार को उज्जैन में करीब 5000 किसान 1000 ट्रैक्टर लेकर सड़कों पर उतर गए। यह विरोध भारतीय किसान संघ के नेतृत्व में रहा है तो बात गंभीर हो गई। विपक्ष कांग्रेस ने भी किसानों के मुद्दे पर प्रदर्शन किया है लेकिन उसे सरकार ने उतनी तवज्जो नहीं दी है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आनुषांगिक संगठन भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्रा ने कहा है कि हम कलेक्टर को यह बताने आए हैं कि सिंहस्थ के लिए किसानों की जमीन 1 वर्ष के लिए ले ली जाए। बाकी 11 वर्ष उन्हें खेती करने दिया जाए। इस भूमि पर पक्का निर्माण नहीं करना चाहिए। यदि हमारी मांगे नहीं मानी तो हमारे पास कई तरीके हैं। जिस-जिस सरकार ने किसानों की जमीन लेने की कोशिश की है उनका हाल देख सकते हैं।
इधर, उज्जैन में लैंड पुलिंग को लेकर टकराव के बीच मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि प्रयागराज की तरह उज्जैन में भी श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए स्थाई निर्माण हो रहा है। यह अधिग्रहण किसानों से बात कर होगा। इस प्रतिक्रिया पर किसान संघ के राष्ट्रीय महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्रा ने कहा कि मुख्यमंत्री भोपाल में बैठक कर बातें क्यों कर रहे हैं, यहां किसानों के बीच आकर कहें। यदि आज जमीन अधिग्रहण बंद कर देंगे तो हम आंदोलन खत्म कर देंगे।
बात दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह तक पहुंच गई है लेकिन वहां से भी समाधान नहीं मिला है जबकि सोमवार को अपने बयान में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने यह भी कहा कि सिंहस्थ में स्थाई निर्माण पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी जोर दिया है। यह बयान एक तरह से यह बताता है कि सरकार के निर्णय को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का समर्थन है। किसान संघ ने भी इस मुद्दे को अपनी नाक का सवाल बना लिया है। मामला राजनीतिक पेंच का है। यदि सरकार झुकती है तो किसान संघ का किसानों में दबदबा बढ़ेगा लेकिन सरकार नहीं मानी और जमीन अधिग्रहण किया तो किसानों के बीच किसान संघ की प्रतिष्ठा पर असर होगा।
होर्डिंग-पोस्टर पर बीजेपी विधायक रामेश्वर शर्मा की नसीहत
भोपाल के हुजूर क्षेत्र से बीजेपी विधायक अपने आक्रामक बयानों के कारण चर्चा में रहते हैं। वे चुनरी यात्रा, तिरंगा यात्रा, अपने क्षेत्र की सड़कों के नमो मार्ग, नमो शिवाय मार्ग जैसे नामकरण के कारण भी चर्चा में रहते हैं। इनदिनों में अलग के तरह के बयान के कारण चर्चा में हैं। यह बयान न कट्टर विचार वाला है और न आक्रामक। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन को मनाने के लिए आयोजित कार्यकम में बोल रहे थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर होर्डिंग्स-पोस्टर नहीं लगाने का आदेश हुआ है। विधायक रामेश्वर शर्मा इस कदम की प्रशंसा कर रहे हैं। वीडियो में वे कहते सुनाई दे रहे हैं कि जब किसी नेता का जन्मदिन आता है तो सड़कें होर्डिंग-पोस्टर, बैनर से पट जाती हैं। प्रधानमंत्री मोदी एकमात्र ऐसे नेता हैं जिन्होंने कहा है कि होर्डिंग, बैनर नहीं, गरीबों के कल्याण के काम कीजिए।
इस बयान पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं मिली हैं। भोपाल में विधायकों के जन्मदिन और नेताओं की अगुआई में होने वाले छोटे आयोजनों पर भी उनका क्षेत्र व भोपाल के प्रमुख इलाके होर्डिंग्स-पोस्टर से भर दिए जाते हैं। विधायक रामेश्वर शर्मा द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्णय की प्रशंसा की गई तो प्रतिक्रिया में कहा गया कि प्रधानमंत्री के इस निर्णय का पालन बीजेपी के विधायक व नेता भी करने लगेंगे तो प्राकृतिक सौंदर्य के धनी भोपाल का रूप विकृत ही नहीं हो।
कांग्रेस जिलाध्यक्षों को ताकत या अग्नि परीक्षा
लंबी चयन प्रक्रिया के बाद चुने गए मध्य प्रदेश कांग्रेस के जिलाध्यक्षों के सामने एक मौका आया है जब उनकी ताकत स्थापित हो जाएगी या यह अग्नि परीक्षा उन्हें ‘डिरेल’ कर देगी। मामला ब्लॉक अध्यक्षों की नियुक्ति का है। लोकसभा नेता प्रतिपक्ष और वरिष्ठ कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जिला अध्यक्षों को फ्री हैंड दिया है कि वे ब्लॉक अध्यक्षों की नियुक्ति का निर्णय खुद करें। यह भी साफ किया गया है कि ब्लॉक अध्यक्षों की नियुक्तियां करते समय संगठन सृजन अभियान के माध्यम से रेखांकित हुए क्षेत्रों, जातीय और स्थानीय समीकरणों को ध्यान में रखा जाए।
प्रदेश में जिलाध्यक्षों के चयन के बाद खुला विरोध भी हुआ था और असंतोष अभी भी धधक रहा है। हालांकि, संगठन सृजन अभियान इसलिए चलाया गया था कि लोकसभा और विधान सभा चुनावों में हुई पराजय से सबक लेकर कमजोर होते संगठन को मजबूत किया जाए। जिला इकाइयों को मजबूत बनाने के लिए जिला अध्यक्षों का चयन करीब 40 दिन चली प्रक्रिया द्वारा हुआ। अब इन अध्यक्षों को अब अपने नीचे की इकाइयां स्वयं बनानी हैं।
इन अध्यक्षों और इनकी टीम से संगठन को अनेक उम्मीदें हैं। लेकिन अध्यक्षों को अपनी टीम का गठन करने के दौरान संगठन के क्षेत्रीय और गुटीय समीकरणों को भी साधना होगा। हालांकि, उनकी सहायता के लिए एक समिति होगी लेकिन जिलाध्यक्षों के सामने चुनौती होगी कि वे स्वयं को बड़े नेताओं की छाया से अलग खड़ा कर पाएं। तभी वे अपने नेता राहुल गांधी की अपेक्षा पर खरा उतरने वाली टीम तैयार कर पाएंगे। साफ है कि जिला अध्यक्षों का निर्णय मैदानी स्तर पर असंतोष का हश्र तय करेगा।