सर्वेश्वर सर्व शक्तिमान ईश्वर ने अपने लीला विहार के लिए जिस भूमि का चयन किया वह भूमि सामान्य नहीं हो सकती। वह दिव्य है, अतः श्री वृन्दावन दिव्य वन है। यमुना के पावन पुलिन पर शुभ्र बालुका में प्रभु क्रीड़ा करते हैं। ब्रज में किसी भी जीव को किसी प्रकार का कष्ट नहीं है। ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री महाशक्ति भगवती लक्ष्मी वहां क्रीड़ा करती हैं। श्री शुक जी कहते हैं- 

 रमाकृडमभूनृप

अर्थात् जब से श्री कृष्ण का अवतार हुआ है तब से वृन्दावन लक्ष्मी का क्रीड़ा स्थल बन गया।

गोपांगनाएं भी कहती हैं कि-

श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि

अन्यत्र लक्ष्मी उपास्य हैं किन्तु व्रज में उपासक हैं। यहां आकर उपासिका बन जाती हैं। ऐसा दिव्य धाम है वृन्दावन। यहां के संदर्भ में मैं परम पूज्य गुरुदेव भगवान से सुनी हूं कि वृन्दावन एक कमल है। कमल को पंकज कहते हैं। सामान्य सरोवर का जो पंक हो उससे निकला जो पुष्प है वह सौन्दर्य माधुर्य युक्त कमल है। कवियों ने अपनी कविता को आगे बढ़ाकर कहा कि कल्पना कीजिए कि दूध का सरोवर हो और नवनीत का पंक हो, उससे कोई कमल निकला हो। और आगे बढ़कर बोले कि अमृत का कोई सरोवर हो और अमृत सार सर्वस्व का कोई पंकज हो, अनुराग रस का सरोवर हो और अनुराग सार सर्वस्व का पंक हो उससे उत्पन्न पंकज हो,इसी प्रकार सच्चिदानंद रस का एक सरोवर है, उस सच्चिदानंद सारसर्वस्व का पंक और उस पंक से उत्पन्न पंकज ही श्री वृन्दावन धाम है।

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गोपसखा ही इसकी पंखुड़ियां हैं। पंखुड़ी और कर्णिका के बीच जो मंजरियाँ है वही सखियां हैं और पराग ही श्री कृष्ण तथा पराग के भीतर जो मकरंद है, वह श्री वृषभानु नंदिनी राधा रानी हैं। इस प्रकार यह ब्रज भूमि श्री राधा माधव की विहार स्थली है। इस ब्रजभूमि के चिंतन मात्र से मानव कल्याण का भागी बन जाता है। क्यूंकि यह श्री ठाकुर जी का धाम है। जो महत्व भगवान के नाम, रूप, लीला का है वही महत्व धाम का भी है। हम सभी को ऐसे दिव्य धाम श्री वृन्दावन का ध्यान करते हुए अपने कल्याण का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।