नई दिल्ली। देश में महंगाई के मोर्चे पर मिलीजुली ख़बर है। खुदरा महंगाई दर (Retail Inflation) नवंबर में घटकर 6.93 फीसदी हो गई है। इससे पहले अक्टूबर में खुदरा महंगाई दर 7.61 फीसदी थी। नवंबर में यह गिरावट खाने-पीने की चीजों की महंगाई दर में नरमी के कारण आई है, जो अक्टूबर के 11.07 फीसदी से घटकर नवंबर में 9.43 फीसदी हो गई। हालांकि थोक महंगाई दर (WPI) अक्टूबर के मुकाबले नवंबर में और बढ़कर 9 महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर चली गयी है।

खुदरा महंगाई दर यानी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में नवंबर में आई गिरावट आम कंज्यूमर के लिए कुछ राहत देने वाली बात तो ज़रूर है, लेकिन इस नरमी के बावजूद महंगााई का स्तर अब भी चिंताजनक स्तर पर बना हुआ है। दरअसल खुदरा महंगाई दर मार्च के बाद से लगातार 6 फीसदी से ऊपर चल रही है, जबकि सरकार ने रिज़र्व बैंक को इसे 6 फीसदी से नीचे बनाए रखने का लक्ष्य दिया हुआ है। जब तक खुदरा महंगाई दर 6 फीसदी के नीचे स्थिर नहीं होगी, रिज़र्व बैंक ब्याज दरों में और कटौती नहीं कर सकेगा। आर्थिक मंदी के मौजूदा दौर में विकास दर को बढ़ावा देने के लिए ब्याज़ दरों में कटौती मौद्रिक नीति का अहम उपाय है। लेकिन महंगाई दर के 6 फीसदी से ऊपर रहने के कारण RBI फिलहाल ऐसा कोई कदम नहीं उठा सकता है।   

थोक महंगाई दर में तेज़ी

अक्टूबर में थोक महंगाई दर 8 महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर थी। इसमें नवंबर में और बढ़ोतरी हो गई है। नवंबर में थोक मूल्य सूचकांक (WPI) 1.55 फीसदी रहा है, जबकि अक्टूबर महीने में यह 1.48 फीसदी रहा था। नवंबर में प्राइमरी आर्टिकल्स की WPI अक्टूबर के 4.74 फीसदी से घटकर 2.72 फीसदी रही, जबकि न्युफैक्चर्ड गुड्स की WPI अक्टूबर के 2.12 फीसदी से बढ़कर 2.97 फीसदी हो गई। खाने-पीने की चीज़ों की थोक महंगाई दर अक्टूबर के 5.78 फीसदी से घटकर नवंबर में 4.27 फीसदी हो गई है। सब्जियों की थोक महंगाई दर 25.23 फीसदी के मुक़ाबले 12.24 फीसदी रह गई है। यानी आधी से भी कम।

महंगाई दर का मौजूदा स्तर चिंताजनक इसलिए भी है, क्योंकि यह आर्थिक मंदी के साथ जुड़ा हुआ है। मंदी के दौर में लोगों की औसत आमदनी और रोज़गार की स्थिति कमज़ोर हो जाती है, ऐसे में महंगाई उन्हें और अधिक परेशान करती है।