नई दिल्ली। डॉलर के मुकाबले रुपए में रिकॉर्ड गिरावट देखने को मिल रही है। रुपए ने 91.14 का रिकॉर्ड निचला स्तर छुआ है। एक डॉलर का भाव पहली बार 91 के पार निकला है। पिछले 5 सत्रों में रुपया 1 फीसदी से ज्यादा फिसला है जबकि पिछले 5 सत्रों में यह 1.29 तक कमजोर हुआ। साल 2022 के बाद अब तक रुपए में सबसे ज्यादा गिरावट देखने को मिली है। 2025 में सभी एशियाई करेंसियों में मुकाबले ज्यादा गिरा है। इस साल यह करीब 6% गिरा है।

सुबह 11.45 बजे डॉलर के मुकाबले रुपया 91.14 पर ट्रेड कर रहा था, जो पिछले बंद भाव से 36 पैसे कम था। इस गिरावट का कारण वॉशिंगटन से टैरिफ का दबाव है, जो भारत के व्यापार की संभावनाओं और पूंजी प्रवाह पर लगातार असर डाल रहा है। डॉलर की ज्यादा मांग और विदेशी निवेशकों के लगातार बाहर जाने से भी भारतीय मुद्रा पर दबाव बना हुआ है।

भारत पर अमेरिका के लगाए गए ऊंचे टैरिफ ने रुपए पर दबाव बनाया है। भारत का बढ़ता करंट अकाउंट डेफिसिट, विदेशों में ऊंची दरों से कैपिटल आउटफ्लो और विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली के कारण रुपया औंधे मुंह गिरा है। वहीं दूसरी तरफ RBI द्वारा करेंसी मार्केट में कम दखल देना भी इसमें दबाव का कारण बन रही है।

50 सालों में औसतन 4-5% की सालाना गिरावट देखने को मिलती है। इस बार कमजोरी हाल के सालों से ज्यादा तेज है। 2024 में रुपया ओवरवैल्यूड माना जा रहा था। जबकि 2025 में यह थोड़ा अंडरवैल्यूड हो गया है। रियल इफेक्टिव एक्सचेंज रेट (REER) के 100 से नीचे आने से संकेत मिलता है। 10 सालों में REER चौथी बार 100 के नीचे फिसला।

रुपए में गिरावट का मतलब है कि भारत के लिए चीजों का इम्पोर्ट महंगा होना है। इसके अलावा विदेश में घूमना और पढ़ना भी महंगा हो गया है। मान लीजिए कि जब डॉलर के मुकाबले रुपए की वैल्यू 50 थी, तब अमेरिका में भारतीय छात्रों को 50 रुपए में 1 डॉलर मिल जाता था। अब 1 डॉलर के लिए छात्रों को 89.79 रुपए खर्च करने पड़ेंगे। इससे छात्रों के लिए फीस से लेकर रहना-खाना और अन्य चीजें महंगी हो जाएंगी।