मोदी सरकार के कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ जारी किसान आंदोलन के बीच अमेरिका के भारत समर्थक सांसदों के इंडिया कॉकस में पहली बार किसान आंदोलन की चर्चा हुई है। मीडिया में आई रिपोर्ट्स के मुताबिक़ इस चर्चा के दौरान इंडिया कॉकस में शामिल अमेरिकी सांसदों ने भारत सरकार से माँग की है कि आंदोलनरियों के साथ बर्ताव करते समय लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन किया जाए। साथ ही अमेरिकी सांसदों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वालों के लिए इंटरनेट की सुविधा बहाल करने और पत्रकारों को उन तक पहुंचने से रोके न जाने की मांग भी की है। 

अमेरिकी संसद में इंडिया कॉकस के को-चेयरमैन और अमेरिका के डेमोक्रेटिक सांसद ब्रैड शरमन ने इस बारे में जानकारी दी है। शरमन का कहना है कि हाल ही में इंडिया कॉकस के रिपब्लिकन को-चेयरमैन स्टीव शैबॉट और वाइस-चेयरमैन रो खन्ना ने उनके साथ मिलकर अमेरिका में भारतीय राजदूत तरनजीत सिंह संधू से किसान आंदोलन समेत कई मसलों पर बात की है। अमेरिका में चुनाव के बाद इंडिया कॉकस की यह पहली बैठक थी।

अमेरिकी सांसद शरमन के मुताबिक इस बैठक के दौरान अमेरिकी सांसदों ने भारत सरकार से माँग की है कि वो लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन करे। प्रदर्शनकारियों को इंटरनेट की सुविधा का इस्तेमाल करते हुए शांतिपूर्ण प्रदर्शन की इजाज़त दी जाए। साथ ही उन्हें पत्रकारों से भी बात करने दी जाए। शरमन ने कहा कि भारत के सभी मित्र उम्मीद करते हैं कि दोनों पक्षों के बीच बातचीत के ज़रिए समस्या का समाधान निकल आएगा। अमेरिकी सांसदों के साथ इस बातचीत के बाद भारतीय राजदूत संधू ने भी कहा कि इंडिया कॉकस में शामिल सांसदों के साथ कई मसलों पर विस्तार से बातचीत हुई है। इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि इस बातचीत में किसानों के मुद्दों पर भी विस्तार से चर्चा हुई।

विरोध प्रदर्शन वाली जगहों पर इंटरनेट की सुविधा बंद किए जाने का मसला  अमेरिका पहले भी उठा चुका है। 4 फ़रवरी को अमेरिका की तरफ़ से जारी बयान में गया था कि सूचना की बेरोकटोक उपलब्धता, जिसमें इंटरनेट भी शामिल है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बुनियादी शर्त और जीवंत लोकतंत्र की पहचान है। अमेरिकी सांसद स्टीव कोहेन भी हाल ही में कह चुके हैं कि वे भारत में हो रहे किसानों के आंदोलन पर लगातार बारीकी से नज़र रख रहे हैं। कोहेन ने यह भी कहा था कि आंदोलन वाले इलाक़ों में इंटरनेट बंद किए जाने समेत अभिव्यक्ति की आज़ादी पर होने वाले तमाम संभावित हमलों और राज्य द्वारा की जाने वाली हिंसा से वे चिंतित हैं। अमेरिकी सांसद एरिक स्वालवेल भी छोटे किसानों के लोकतांत्रिक और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित किए जाने की माँग कर चुके हैं।

भारत सरकार का विदेश मंत्रालय हाल ही में किसान आंदोलन के समर्थन में अंतरराष्ट्रीय हस्तियों द्वारा दिए गए बयानों की आलोचना कर चुका है। किसान आंदोलन वाले इलाक़ों में इंटरनेट सुविधा बंद करने के फ़ैसले को भी भारत सरकार ने हिंसा रोकने के लिए अपनाया गया अस्थायी उपाय बताकर जायज ठहराने की कोशिश की है। लेकिन सवाल ये है कि अगर अमेरिका के भारत समर्थक सांसद भी इन मुद्दों पर अपनी राय जाहिर कर रहे हैं तो क्या भारत सरकार उनकी बात को भी उतनी ही आसानी से खारिज कर देगी?

यहाँ यह भी याद रखने की ज़रूरत है कि अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी के कई सांसद जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद इंटरनेट बंद किए जाने की भी आलोचना कर चुके हैं। सीएए-एनआरसी आंदोलन के प्रति मोदी सरकार के रुख़ पर भी उनकी कड़ी प्रतिक्रियाएँ सामने आई थीं। दरअसल, जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट बंद करने और नागरिक स्वतंत्रता पर बंदिशें लगाए जाने का विरोध तो ट्रंप प्रशासन ने भी किया था। इसके बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी संसद की विदेश मामलों की समिति के साथ अपनी बैठक रद्द कर दी थी। तब ये माना गया कि विदेश मंत्री की मुलाक़ात इसलिए रद्द की गई, क्योंकि उन्हें अमेरिका की जिस संसदीय समिति से बात करनी थी उसमें भारतीय मूल की अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल भी शामिल थीं। प्रमिला जयपाल ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद लागू तमाम पाबंदियों को हटाने की माँग करते हुए अमेरिकी संसद में एक प्रस्ताव पेश किया था। ख़ास बात ये है कि उस वक़्त कमला हैरिस ने भी प्रमिला जयपाल का समर्थन किया था। वही कमला हैरिस आज अमेरिका की उप-राष्ट्रपति बन चुकी हैं। ऐसे में इंटरनेट सुविधा की बात हो या अभिव्यक्ति की आज़ादी और नागरिक स्वतंत्रता से जुड़े दूसरे मसले, अमेरिका की नई सरकार के रुख़ पर कमला हैरिस की सोच का असर पड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता।