नागोर्नो-काराबाख। विवादित नागोर्नो कारबाख इलाके को लेकर आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच चल रही लड़ाई अब थम गई है। दोनों देशों के बीच युद्धविराम का समझौता लागू हो गया है। हालांकि, सीजफायर लागू होने के थोड़े देर पहले ही दोनों देशों ने एक दूसरे के नागरिक इलाकों पर मिसाइलें दागीं। सीजफायर का समझौता करीब 10 घंटे की बातचीत के बाद लागू हुआ है। इसमें रूस के विदेश मंत्री सर्जी लावरोव ने भी हिस्सा लिया। 

दोनों देशों के बीच हुए इस नए संघर्ष में अब तक 300 लोग मारे जा चुके हैं, हजारों घायल हो गए हैं। इसे 2016 के बाद से दोनों के बीच सबसे गंभीर संघर्ष बताया जा रहा है। 2016 में हुए संघर्ष में भी दर्जनों लोग मारे गए थे। बताया जा रहा है कि सीजफायर के बाद दोनों ही देशों में रेड क्रॉस समूह राहत और मानवतावादी कार्यक्रम चलाएगा। मीडिया संस्थान अल जजीरा के अनुसार यह सीजफायर भी मानवतावादी आधार पर लागू किया गया है। हालांकि, अभी यह देखना होगा कि सीजफायर का पालन क्या उस तरह से हो होगा, जैसे इसका समझौता हुआ है। 

दोनों देशों के बीच चल रहे संघर्ष के एक बड़े युद्ध में बदलने की आशंका भी है, जिसमें रूस और तुर्की आमने सामने हो सकते हैं। दरअसल, तुर्की अजरबैजान का करीबी सहयोगी है और वहीं आर्मेनिया के साथ रूस ने रक्षा समझौता किया हुआ है। रूस और तुर्की सीरिया और लीबिया में चल रहे संघर्ष में भी आमने सामने हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर दोनों के बीच सीधा युद्ध भी ना हो तो कम से कम छद्म युद्ध की आशंका तो बनी ही हुई है। 

दोनों देशों के बीच हुए युद्ध का प्रमुख कारण विवादित नागोर्नो कारबाख इलाका है। अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक यह अजरबैजान का हिस्सा है लेकिन यहां रहने वाले आर्मेनियाई मूल के लोग अजरबैजान को मान्यता नहीं देते। दरअसल, इस क्षेत्र में वही बहुसंख्यक हैं और आर्मेनिया के समर्थन से अपनी अलग सरकार चला रहे हैं। 1990 में सोवियत संघ के विघटन के बाद हुए युद्ध के समय से ही यहां की यही हालत है। 1990 के बाद शुरू हुए युद्ध में करीब 30 हजार लोगों की जान गई थी। 1994 में दोनों देशों के बीच सीजफायर यानी युद्धविराम का समझौता हुआ था। वह समझौता भी अंतरराष्ट्रीय दखल के बाद संभव हो पाया था।