डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में गिरावट दर्ज की गई है। 2025 की पहली तिमाही में देश की जीडीपी 0.3% घट गई, जो पिछले तीन साल में पहली बार ऐसा हुआ है। जबकि 2024 की आखिरी तिमाही में अर्थव्यवस्था 2.4% की दर से बढ़ रही थी। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार इस गिरावट की सबसे बड़ी वजह आयात में तेज़ी से हुई बढ़ोतरी है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि टैरिफ की संभावनाओं के कारण अमेरिकी कंपनियों ने बड़ी मात्रा में आयात किया, जिससे जीडीपी पर असर पड़ा।

वहीं, उपभोक्ता खर्च में भी गिरावट देखी गई है, जिससे मंदी की आशंका बढ़ गई है। अमेरिका के बढ़ते आयात के कारण आर्थिक विकास दर में लगभग 5% अंक की गिरावट आई है। उपभोक्ता खर्च, जो अमेरिका की GDP का 70% हिस्सा है, उसमें तेज़ गिरावट ने चिंता बढ़ा दी है। अर्थशास्त्री ब्रायन बेथ्यून ने इसकी वजह ट्रंप की नीतियों को बताया है, जबकि जोसेफ ब्रुसुएला के मुताबिक आने वाले 12 महीनों में मंदी की संभावना 55% है।

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ट्रंप ने एक बार फिर चीन के साथ टैरिफ वॉर छेड़ दिया है और चीनी सामानों पर अब तक 125% टैरिफ बढ़ा चुके हैं। इससे चीन में बना 100 डॉलर का उत्पाद अमेरिका में 225 डॉलर में बिकेगा, जिससे उसकी बिक्री प्रभावित होगी। हालांकि ट्रंप ने 75 से ज्यादा देशों को रेसिप्रोकल टैरिफ में 90 दिनों की छूट दी है, ताकि नए व्यापार समझौतों पर बातचीत की जा सके।

अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट के मुताबिक, जिन देशों ने अमेरिका के खिलाफ मोर्चा नहीं खोला, उन्हें टैरिफ से राहत दी गई है। चीन ने हाल ही में अमेरिका पर टैरिफ 34% से बढ़ाकर 84% किया था, जिसके जवाब में ट्रंप ने भी चीनी सामान पर टैरिफ 104% से बढ़ाकर 125% कर दिया।

उधर, चीन भी अपनी तैयारी में जुटा है। उसने इंडस्ट्रियल सेक्टर को 1.9 लाख करोड़ डॉलर का अतिरिक्त लोन दिया है, जिससे फैक्ट्रियों का निर्माण और उन्नयन तेज़ हुआ है। हुआवेई ने शंघाई में 35,000 इंजीनियरों के लिए एक विशाल रिसर्च सेंटर खोला है, जो गूगल के कैलिफोर्निया हेडक्वार्टर से 10 गुना बड़ा है। इससे चीन की तकनीकी और नवाचार क्षमता में तेज़ी आने की उम्मीद है।