भोपाल। मध्यप्रदेश में पिछले महीने लोकायुक्त पुलिस की दो बड़ी कार्रवाइयों ने अफसरशाही के भीतर जड़ जमाए भ्रष्टाचार की गहराई दिखा दी। पहला छापा आबकारी विभाग के रिटायर्ड जिला अधिकारी धर्मेंद्र सिंह भदौरिया के ठिकानों पर पड़ा, जबकि दूसरी कार्रवाई लोक निर्माण विभाग (PWD) के रिटायर्ड चीफ इंजीनियर जीपी मेहरा के यहां हुई। दोनों ही मामलों में अधिकारियों ने वैध आय से कई गुना अधिक संपत्ति जमा की हुई थी।
15 अक्टूबर 2025 को लोकायुक्त पुलिस ने भदौरिया के इंदौर, ग्वालियर और उज्जैन स्थित आठ ठिकानों पर एक साथ छापा मारा। जांच में खुलासा हुआ कि रिटायर्ड आबकारी अधिकारी ने 38 साल की नौकरी में लगभग 2 करोड़ रुपए की वैध आय के मुकाबले 25 करोड़ रुपए से ज्यादा की चल-अचल संपत्ति इकट्ठा की थी। यानी उनकी संपत्ति 829 फीसदी अनुपातहीन पाई गई।
भदौरिया के बेटे सूर्यांश की भी जांच में भूमिका सामने आई। उसने शिवा चाइनीज वॉक रेस्टोरेंट में साझेदारी की थी और अन्नपूर्णा व विजयनगर की दुकानों में 40% हिस्सेदारी ले रखी थी, जिसके बदले 25 लाख रुपए नकद भुगतान किया गया था। लोकायुक्त टीम को भदौरिया के पास से वॉल्वो, फॉर्च्यूनर, दो इनोवा और चार लग्जरी बाइक्स मिलीं। इनमें दो महंगी सुपरबाइक्स को उन्होंने मोडिफाइड करवाया था। दिलचस्प बात यह कि उनकी ज्यादातर गाड़ियों का नंबर 0045 ही था।
छापे के दौरान इंदौर की मालवा काउंटी टाउनशिप में बन रहे उनके शानदार बंगले का भी खुलासा हुआ। द डिजाइन चैरेट नाम की आर्किटेक्चर कंपनी यह बंगला बना रही थी जिसमें उनकी बेटी अपूर्वा सिंह भदौरिया पार्टनर है। भदौरिया ने बंगले को इटालियन डिजाइन में बनवाने की योजना बनाई थी। इंटीरियर में विदेशी फर्नीचर पर 1.5 करोड़, मुख्य हॉल के झूमर पर 22 लाख और होम थिएटर पर 50 लाख रुपए खर्च करने की तैयारी थी। चार बेडरूम वाले इस बंगले के साथ एक लग्जरी गार्डन और फाउंटेन भी तैयार किया जा रहा था।
दूसरा बड़ा छापा 9 अक्टूबर 2025 को PWD के रिटायर्ड चीफ इंजीनियर गोविंद प्रसाद (जीपी) मेहरा के भोपाल और अन्य ठिकानों पर पड़ा। लोकायुक्त को 8.79 लाख नकद, 3.05 करोड़ रुपए का सोना (2.6 किलो), 5.5 किलो चांदी और 56 लाख की फिक्स डिपॉजिट मिले। मेहरा के सोहागपुर के ग्राम सैनी स्थित फार्महाउस से 17 टन शहद, 6 ट्रैक्टर, 32 निर्माणाधीन कॉटेज, 2 मछली पालन केंद्र, 2 गोशालाएं और महंगे कृषि उपकरण बरामद हुए। उनके परिवार के नाम पर 4 लग्जरी कारें भी रजिस्टर्ड थी। इनमें फोर्ड एंडेवर, स्कोडा स्लाविया, किया सोनेट और मारुति सियाज शामिल हैं।
मीडिया से बातचीत में विभाग के रिटायर्ड अधिकारियों ने बताया कि अब भ्रष्टाचार का तरीका पूरी तरह बदल गया है। पहले अधिकारी फिक्स रिश्वत लेते थे लेकिन अब वे ठेकेदारों के साथ पार्टनरशिप मॉडल पर काम करते हैं। अधिकारी अपने रिश्तेदारों के नाम पर ठेकेदार की कंपनी में हिस्सेदारी ले लेते हैं। बदले में ठेकेदार को शराब की बिक्री, अवैध परिवहन और ओवर-रेटिंग की पूरी छूट मिल जाती है। जितनी ठेकेदार की कमाई बढ़ती है उतना ही अधिकारी का हिस्सा भी बढ़ता जाता है।
जानकार बताते हैं कि अब जिलों में पोस्टिंग के लिए भी फिक्स रेट तय है। किसी जिले के शराब ठेके की कुल कीमत का 1 से 1.5 प्रतिशत उस जिले में पदस्थापना की कीमत होती है। उदाहरण के लिए अगर आलीराजपुर जिले के ठेकों का मूल्य 300 करोड़ रुपए है तो वहां जिला आबकारी अधिकारी की कुर्सी की कीमत 3 करोड़ रुपए तक पहुंच जाती है। धार, आलीराजपुर और इंदौर संभाग इस रेटेड सिस्टम में सबसे महंगे माने जाते हैं।
इंदौर संभाग की सीमा गुजरात से लगी है जहां शराबबंदी लागू है। यहां से रोजाना शराब की अवैध तस्करी होती है। हर ट्रक में करीब 10,000 बोतलें होती हैं और हर बोतल पर अफसरों का 1 से 3 रुपए तक का हिस्सा तय है। यानी एक ट्रक से एक अधिकारी को 10 से 20 हजार रुपए तक की कमाई होती है। प्रतिदिन कई ट्रक गुजरते है जिससे यह अवैध कारोबार करोड़ों रुपए में पहुंच जाता है।
PWD को राज्य का सबसे कमाऊ विभाग माना जाता है। अब यहां रिश्वत का तरीका भी संगठित हो गया है। विभागीय अफसरों के मुताबिक, हर छोटी-बड़ी फाइल बिना लेन-देन के आगे नहीं बढ़ती। सबसे बड़ा खेल है प्रोजेक्ट की जानकारी लीक करना होता है। किसी हाईवे या बायपास प्रोजेक्ट की घोषणा से पहले ही अफसर अपने करीबी राजनेताओं और प्रॉपर्टी डीलरों को सूचना दे देते हैं। वे रास्ते की जमीन किसानों से औने-पौने दाम पर खरीद लेते हैं और प्रोजेक्ट घोषित होते ही उन्हें कई गुना कीमत पर बेचते हैं। मुनाफे में अधिकारी की तय हिस्सेदारी होती है।
इस जानकारी कारोबार का बड़ा उदाहरण 41 किलोमीटर का वेस्टर्न बायपास प्रोजेक्ट है। 31 अगस्त 2023 को जब 3000 करोड़ का प्रोजेक्ट मंजूर हुआ तो अधिकारियों और नेताओं ने आसपास की जमीनें खरीदनी शुरू कर दीं। पूर्व मंत्री दीपक जोशी ने यह मामला प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) तक पहुंचाया गया था। जांच में भ्रष्टाचार की पुष्टि हुई और सरकार ने चुनाव से पहले पूरा प्रोजेक्ट ही रद्द कर दिया।
रिटायर्ड अफसरों का कहना है कि भदौरिया और मेहरा जैसे मामलों को सिर्फ एक बानगी समझा जाना चाहिए। अब भ्रष्टाचार किसी व्यक्ति की लालच भर नहीं रहा बल्कि एक संगठित उद्योग बन चुका है। जिसके अपने नियम, रेट और नेटवर्क तय हैं। जब तक इस पूरे इकोसिस्टम को तोड़ा नहीं जाएगा तब तक कुछ अफसरों के पकड़े जाने से फर्क नहीं पड़ेगा। नए धनकुबेर फिर पैदा होते रहेंगे।