बासमती चावल के जीआई टैग पाने के लिए मध्‍य प्रदेशसरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। मद्रास हाई कोर्ट द्वारा जीआई टैग्‍ सूची से प्रदेश को बाहर कर देने के फैसले को चुनौती देने के लिए राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया है। मद्रास उच्च न्यायालय ने 27 फरवरी को बासमती चावल की जीआई टैग सूची से मध्यप्रदेश को बाहर कर दिये दिए जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया था।

कृषि मंत्री कमेल पटेल ने बताय है कि राज्य को बासमती चावल की मान्यता दिलाने के लिए कृषि विभाग ने 27 मई को अधिवक्ता जे साई कौशल को स्पेशल कौंसिल नियुक्त किया था। इसके बाद कौशल ने पूरे प्रकरण की संक्षेपिका तैयार कर कृषि विभाग को हर पहलू पर अवगत कराया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की शरण ली गई है।

क्या होता है जीआई टैग

कॉपीराइट, पेटेंट या ट्रेडमार्क की तरह जीआई एक बौद्धिक संपदा अधिकार है जो किसी उत्पाद को एक खास टैग प्रदान करता है। दरअसल जीआई टैग यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी ख़ास उत्पाद किसी खास क्षेत्र में पाई जाती है। इसके साथ ही इस टैग उद्देश्य उन उत्पादों के किसी दूसरे जगह पर गैर कानूनी उपयोग को रोकना है। जीआई टैग को जियोग्राफिकल इंडेक्स टैग कहते हैं। गौरतलब है कि 1999 में पारित हुए रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ' जियोग्राफिकल इंडेक्स ऑफ गुड्स ' की व्यवस्था लागू जिसके तहत देश के किसी भी राज्य में पाए जाने वाली किसी भी वस्तु का कानूनी हक उस राज्य को दिया जाता है। मध्य प्रदेश में भी बासमती चावल का उत्पादन बड़ी मात्रा में होता है लेकिन मध्य प्रदेश अभी तक जीआई टैग पाने से वंचित है।

लंबे समय से चली आ रही है जीआई टैग पाने की लड़ाई

मध्य प्रदेश में बासमती चावल के लिए जीआई टैग पाने की लड़ाई लंबे अरसे से चली आ रही है। 2010 में कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादन निर्यात विकास प्राधिकरण (एपिडा) ने बासमती चावल के लिए जीआई टैग मांगा था जिसमें मध्य प्रदेश को अनदेखा कर दिया गया था। इसके बाद से ही मध्य प्रदेश को जीआई टैग पाने की लड़ाई जारी है। उत्पादों की गुणवत्ता, उनके विभिन्न मानकों पर खरा उतारने, उत्पादों की पैकिजिंग में सुधार लाने जैसी ज़िम्मेदारी समेत कई अन्य ज़िम्मेदारियां एपिडा के ही कंधों पर होती हैं।