भोपाल। आर्थिक तंगी से जूझ रही मध्य प्रदेश सरकार अपनी पुरानी गलतियों से अब भी सबक लेती नहीं दिख रही है। कर्जखोरी के कारण असंतुलित हो चुके अर्थव्यवस्था के बावजूद मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार 2 हजार करोड़ रुपए कर्ज लेने जा रही है। वित्त विभाग ने इस संबंध में नोटिफिकेशन जारी कर दिया है।

राज्य सरकार यह कर्ज की रकम 1 सितंबर को बाजार से पांच सालों के लिए लेगी। प्रदेश के वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा का कहना है कि प्रदेश में चल रही सरकारी योजनाओं को पूरा करने के लिए कर्ज लेना जरूरी था। हालांकि, सवाल ये उठ रहे हैं कि योजनाओं को पूरा करने के नाम पर कबतक कर्ज लिया जाएगा। और आमदनी से ज्यादा कर्ज लेकर खर्च करने वाली राज्य सरकार इस रकम को चुकता कैसे करेगी।

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बता दें कि कर्जखोरी की वजह से मध्य प्रदेश की कुल बजट का 15 फीसदी ब्याज चुकाने में ही ज़ाया हो जाता है। राज्य सरकार के अत्यधिक खर्चों के कारण मौजूदा समय में मध्य प्रदेश के प्रत्येक नागरिक के सर 30 हजार से अधिक रुपए के कर्ज लदे हुए हैं। सरकार पर अबतक का कुल कर्ज 2.53 लाख करोड़ है, जबकि राज्य का सालाना बजट महज 2.41 लाख करोड़ है।

हैरानी की बात यह है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ गठजोड़ कर सत्ता में वापसी के बाद राज्य सरकार की कर्जखोरी कई गुना बढ़ गई है। बीते डेढ़ साल में शिवराज सरकार ने 32 मर्तबा कर्ज लिया है। इसकी राशि 50 हजार करोड़ रुपए से भी अधिक है। पिछले साल ही कर्ज का ब्याज चुकाने में राजकीय कोष से 16 हजार 500 करोड़ रुपए खर्च हुए। यह रकम भी बढ़ते कर्ज के साथ बढ़ता जा रहा है। 

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यह स्थिति तब है जब पेट्रोल, डीजल एवं शराब पर टैक्स से सरकार की आय में निरन्तर वृद्धि हीं हुई है।  टैक्स के जरिए आय में बढ़ोतरी बाद भी सरकार कर्ज पर कर्ज ले रही हैं। बीते डेढ़ साल के दौरान शिवराज सरकार ने जिस तरह लगातार कर्ज़ लिए हैं, उससे लगता है, प्रदेश की सरकार कर्ज़ के भरोसे ही चलाई जा रही है। अब सवाल यह है कि अगर ऐसे ही आर्थिक हालात बदतर होते रहे तो आने वाली पीढ़ियों का भविष्य कैसे सुरक्षित होगा।