भोपाल। मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार ने इंदौर के डॉ सावित्री पाठक शैक्षणिक एवं सामाजिक संस्थान को माध्यमिक स्कूलों में पढ़ाई का स्तर सुधारने की ज़िम्मेदारी सौंपी है। राज्य शिक्षा केंद्र के संचालक ने सावित्री पाठक संस्थान के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को एक पत्र लिखकर इस फैसले की जानकारी दी है। वैसे तो यह फैसला सरकारी माध्यमिक स्कूलों में शिक्षा के स्तर को सुधारने के मकसद से करने की बात कही जा रही है, लेकिन यह सवाल भी उठने लगे हैं कि कहीं इसका असली मकसद सरकारी स्कूलों को बैकडोर से निजीकरण की राह पर ले जाने का तो नहीं है? 

मध्य प्रदेश के कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष और अतिथि शिक्षक संघ के प्रवक्ता जगदीश शास्त्री का आरोप है कि सरकार का यह कदम सरकारी माध्यमिक स्कूलों में प्राइवेट एजेंसियों का बैकडोर से दखल दिलाने का ही एक तरीक़ा है, जिसका असली मक़सद सरकारी स्कूलों को निजीकरण की राह पर ले जाना है।

राज्य शिक्षा केंद्र के संचालक ने सावित्री पाठक संस्थान को जो पत्र लिखा है, उसमें सावित्री पाठक संस्थान को पहले चरण में प्रदेश के सात जिलों में तीन साल तक यह काम करने का काम दिया गया है। पत्र में कहा गया है कि संस्थान को प्रदेश की माध्यमिक शालाओं में न सिर्फ बच्चों की पढ़ाई-लिखाई में सहयोग देना होगा, बल्कि विभिन्न गतिविधियों का संचालन भी करना होगा। हालांकि सावित्री पाठक संस्थान को प्रदेश के 17 ज़िलों के माध्यमिक स्कूलों में कार्य करने की अनुमति दी गई है। 

पत्र के मुताबिक पहले चरण में संस्थान को प्रदेश के सात ज़िलों भोपाल, विदिशा, होशंगाबाद, रायसेन, पन्ना, सागर और शाजापुर के माध्यमिक विद्यालयों में गतिविधियों के आयोजन की अनुमति दी गई है। पहले चरण की उपलब्धियों के आधार पर संस्थान को दूसरे चरण में अपने काम का विस्तार दस और जिलों में करने की इजाजत दी जाएगी। यह दस जिले होंगे - सतना, इंदौर, उज्जैन, खंडवा, देवास, गुना, शिवपुरी, रीवा, सीहोर और दतिया।

शिक्षा केंद्र ने कहा है कि विद्यालयों में गतिविधियों के आयोजन के लिए शैक्षणिक संस्थान को सामग्रियों का खर्च सरकार नहीं देगी। स्कूलों में गतिविधियों के संचालन के लिए ज़रूरी तमाम खर्च सावित्री पाठक संस्थान खुद करेगा। इस पत्र में सरकारी स्कूलों के निजीकरण का सीधे तौर पर भले ही कोई जिक्र नहीं है, लेकिन कुछ लोग इसे उसी दिशा में उठाया गया कदम मान रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह पूरी तरह साफ नहीं है कि सरकारी स्कूलों के कामकाज में इस निजी संस्था का रोल क्या होगा? क्या यह संस्था सिर्फ सरकारी शिक्षकों और स्टाफ के मददगार के तौर पर काम करेगी या फिर स्कूलों का संचालन उसी के हाथ में चला जाएगा?

यह सवाल इसलिए क्योंकि सरकारी स्कूलों में जब पढ़ाई-लिखाई से लेकर गतिविधियों के आयोजन और इसके लिए जरूरी सामग्री मुहैया कराने का काम एक निजी संस्था करेगी, तो क्या उन स्कूलों के संचालन में भी उस संस्था का दखल नहीं होगा? ऐसा होने पर उन स्कूलों के सरकारी शिक्षक और गैर-शैक्षिक स्टाफ क्या करेंगे? क्या यह कदम सरकारी स्कूलों में और स्टाफ की नियुक्ति नहीं करने के पक्ष में एक दलील का काम नहीं करेगा? सवाल यह भी है कि जब इस संस्था को सरकार की तरफ से कोई भुगतान नहीं किया जाना है, तो इसका खर्च कहां से निकाला जाएगा? ऐसे कई सवाल हैं जो सरकार के इस नए कदम की वजह से उठ रहे हैं। जब तक इस बारे में सरकार की तरफ से विस्तृत स्पष्टीकरण नहीं दिया जाता, नई योजना को लेकर लोगों के मन में आशंकाएं बनी रहेंगी।