भोपाल। कोरोना काल में अपने परिजनों को मौत के आगोश में सोता देखने पर मजबूर महसूस करने वाले लोगों को संबल देने के नाम पर शिवराज सरकार ने एक के बाद एक 5 घोषनाएं तो कर दी। लेकिन जिन लोगों के लिए ये योजनाएं बनाई गईं, वे लोग आज भी सरकारी मदद से महरूम हैं। सरकारी मदद का इंतज़ार अब इतना लंबा हो चला है कि अब लोगों का सब्र भी धीरे धीरे जवाब दे रहा है। सरकार के आसमानी दावे ज़मीन पर इतने खोखले प्रतीत हो रहे हैं कि अब पीड़ितों को अब सरकार से मदद की उम्मीद लगाना भी बेमानी ही लग रहा है। 

ये सरकार 1 लाख तो क्या 50 हज़ार भी नहीं देगी 
भोपाल की रहने वालीं आयशा खान भी शिवराज सरकार के खोखले दावों का शिकार हुई हैं। आयशा की आस अब इस कदर जवाब दे चुकी है कि वे अब सीधे कह रही हैं कि यह सरकार 1 लाख तो क्या 50 हज़ार भी नहीं देने वाली। आयशा का भोपाल में ट्रांसपोर्ट का कारोबार है। कोरोने के कारण स्कूल बंद होने के चलते कारोबार पूरी तरह से ठप हो गया। कोरोना ने जब आयशा की सास को चपेट में लिया, तब सास के इलाज में लाखों खर्च हो गए। तमाम कोशिशों के बावजूद आयशा की सास की जान नहीं बच सकी। 

शिवराज सरकार ने कोरोना काल में अपने सगे संबंधियों को खोने वाले लोगों के लिए जब 1 लाख रुपए की सहायता राशि देने का एलान किया, तब आयशा को थोड़ी उम्मीद जगी थी। आयशा ने एनडीटीवी को अपनी आपबीति सुनाते हुए कहा है कि उसका ट्रांसपोर्ट का कारोबार पूरी तरह से ठप है। पूरी जमा पूंजी भी सास के इलाज में खर्च हो गई। वहीं सरकारी मदद के नाम पर अब तक कोई कार्यवाही तक शुरू नहीं हुई है। 

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कुछ ऐसी ही स्थिति बड़वानी में रहने वाले बाबूलाल भावेल के परिवार का है। बड़वानी ज़िला अस्पताल में चौकी इंचार्ज बाबूलाल भावेल की कोरोना से मौत हो गई। सरकारी सिस्टम ने परिजनों को कोरोना योद्धा का बाबूलाल का सर्टिफिकेट तो दे दिया लेकिन 50 लाख रुपए की सहायता राशि अब तक नहीं मिली। मृतक बाबूलाल का 7 सदस्यीय परिवार इस समय केवल पेंशन पर अपना गुज़र बसर कर रहा है। 

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दरअसल शिवराज सरकार ने कोरोना काल में कोरोना से अपनी जान गंवाने वाले मृतकों के परिजनों की आर्थिक सहायता करने का आश्वासन देते हुए अलग अलग पांच योजनाएं शुरू किए। इन योजनाओं में कोरोना काल में अपनी जान गंवाने वाले सरकारी कर्मचारी, डॉक्टर्स, आम व्यक्ति के परिजनों को शामिल किया गया। यहां तक कि अनाथ होने वाले बच्चों तक सहायता पहुंचाने के दावे कर तो दिए गए, लेकिन मदद की आस लगाए बैठे कई परिजनों को कोरोना सर्टिफिकेट तक के लिए भटकता देखा गया। सरकार के खोखले दावों का खामियाज़ा मृतकों के परिजन उठाने पर मजबूर हैं।