MP पुलिस के 152 जवानों की हुई कोरोना से मौत, केवल 7 के नसीब में आया सरकारी मुआवजा

राजकीय सम्मान के साथ हुआ अंतिम संस्कार, मगर नहीं मिला मुआवज़ा, मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना के तहत लाभार्थियों के चयन में पक्षपात

Updated: Jun 27, 2021, 11:15 AM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने कोरोना के शुरुआती दौर में गाजे-बाजे के साथ 'मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना' लॉन्च किया था। वादा था कि योजना के तहत ड्यूटी में तैनात फ्रंटलाइन वर्कर्स की कोरोना से मौत होने पर पीड़ित परिवार को 50 लाख रुपए अनुग्रह राशि दी जाएगी। हालांकि, इस योजना की हकीकत हैरान करने वाली है। मध्यप्रदेश पुलिस हेडक्वार्टर से मिली जानकारी के अनुसार राज्य में अबतक 152 पुलिसकर्मियों की कोरोना से मौत हुई है। लेकिन इनमें से 145 जवानों के परिजनों को सरकार ने एक पैसा भी नहीं दिया। इतना ही नहीं 27 पीड़ित परिजनों को तो मुआवजा देने से ही मना कर दिया गया।

जानकारी के मुताबिक कोरोनावायरस के फर्स्ट वेव में यानी साल 2020 में पुलिस के 40 जवान शहीद हुए थे। लेकिन दूसरी लहर पुलिसकर्मियों के लिए भी ज्यादा खतरनाक साबित हुई। दूसरी लहर के दौरान महज दो महीनों के भीतर 112 पुलिसकर्मियों की कोरोना के चपेट में आकर असमय मौत हो गई। इनमें 60 की मौत अप्रैल महीने में हुई वहीं मई में 42 लोगों की मृत्यु हुई। इनमें से अधिकांश की मौत प्रदेश के चार बड़े शहरों इंदौर, भोपाल, जबलपुर और सागर में हुई।

प्रदेश की बीजेपी सरकार ने पिछले साल 30 मार्च को 'मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना' को लॉन्च किया था। इस दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने जमकर वाहवाही लूटी थी। मीडिया में सीएम ने कहा कि कोरोना योद्धाओं के परिवार हमारे परिवार हैं। उनके निधन के बाद पीड़ित परिजनों की जिम्मेदारी सरकार की है। हालांकि, तमाम दावों और वादों को पुलिस विभाग के आंकड़ों ने खोखला साबित कर दिया है। 

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रिपोर्ट्स के मुताबिक इन 152 लोगों में अबतक महज 7 पीड़ित परिवार को अनुग्रह राशि मिल पाई है। वहीं बाकी के 145 पीड़ित परिजनों को अबतक सहानुभूति के अलावा कुछ भी हासिल नहीं हुआ। इनमें से 43 मामले पिछले साल के हैं। हैरानी की बात यह है कि 27 जवानों के परिजनों का आवेदन सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया है। हालांकि अधिकांश मामलों में राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार भी किया गया है, साथ ही जिला कलेक्टर भी बता रहे हैं कि ड्यूटी के दौरान कोरोना संक्रमित होने से उनकी मौत हुई।

मामले का खुलासा होने के बाद विपक्ष ने सरकार की मंशा पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष व पूर्व सीएम कमलनाथ ने कहा है कि कोरोना योद्धाओं के साथ ये भेदभाव गलत है। मध्यप्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी ने मुख्यमंत्री से पूछा है कि योद्धाओं का ये अपमान क्यों किया जा रहा है। पटवारी ने मांग की है कि सभी पीड़ित परिवार को तत्काल मुआवजा दिया जाए।

सरकारी क्वार्टर तक छीनने पर आमादा है सरकार

आलम ये है कि अनुग्रह राशि तो दूर क्वाटर के आश्वासन तक नहीं मिल रहे। ऐसा ही एक उदाहरण बड़वानी जिले के पूर्व कांस्टेबल बाबूलाल भवेल की मौत पर सामने आया है। बाबूलाल की पिछले साल 12 जुलाई को कोरोना की चपेट में आकर मृत्यु हो गई थी। घर में अकेल कमाने वाले बाबूलाल अपने पीछे पत्नी, चार बेटियां और बेटे छोड़ गये। लेकिन पीड़ित परिवार अब दर दर आसरे को भटक रहा है। सरकार ने यह कह कर कि उनके पास कोरोना डेथ सर्टिफिकेट नहीं है, पीड़ित परिवार को मुआवजा देने से इनकार कर दिया है।

बाबूलाल की पत्नी भगवती रुंआसी होकर बताती हैं कि उन्हें सांस लेने में तकलीफ थी और कोविड-19 के सारे लक्षण थे। लेकिन अस्पताल में दाखिले के बाद भी कोरोना टेस्ट नहीं हो पाया और टेस्टिंग के इंतजार में ही उनकी जान चली गई। उनके मौत के एक दिन बाद जब कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और टेस्टिंग हुई तो उनके सहकर्मी और घर में चार लोग कोरोना संक्रमित पाए गए। बड़वानी कलेक्टर ने पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर बाबूलाल की पत्नी को कोविड योद्धा सम्मान का सर्टिफिकेट दिया था। तब कहा गया था कि उनके पति ने पुलिस विभाग में रहकर लोगों की सेवा में सराहनीय कार्य किया था और कोरोना से लड़ते हुए जान गंवाई। लेकिन पीड़ित परिवार को मुआवजा तो दूर सरकार तो अब क्वार्टर खाली करने के लिए लगातार नोटिस भेज रही है।

भगवती की तरह ही 26 अन्य परिवार ऐसे हैं, जिनमें किसी के पिता, किसी के पति तो किसी के भाई ने कोरोना ड्यूटी के दौरान जान गंवाई लेकिन अनुग्रह राशि के लिए उनका आवेदन रिजेक्ट कर दिया गया है। बाकी अन्य मामलों पर सरकार अबतक विचार नहीं कर पाई है। सवाल है कि जब सरकार को पुलिसकर्मियों की जरूरत थी तब जवान सभी मोर्चों पर डटे रहे लेकिन जब अपनी जिम्मेदारी निभाने की बात आयी तो सरकार मुकर रही है। 

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सरकार में रेवेन्यू डिपार्टमेंट के मुख्य सचिव मनीष रस्तोगी ने मीडिया से बात करते हुे कहा है कि, 'मध्यप्रदेश सरकार देशभर में सबसे ज्यादा मुआवजा दे रही है। ऐसे में नियम तो स्ट्रिक्ट होंगे ही। योग्य परिजनों के आवदेन रिजेक्ट नहीं कर रहे हैं।'  लेकिन रस्तोगी ने इस तर्क से सरकारी अनदेखी के शिकार परिवारों के जख्मों पर मरहम नहीं लगता बल्कि और कचोट उठती है कि अस्पताल और व्यवस्था की लापरवाही के शिकार होकर उन्होंने अपने परिजन भी खाया और अब हक से भी मारे जा रहे हैं।