24 घंटे के भीतर सिर से उठा मां-बाप का साया, डेथ सर्टिफिकेट के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहा मासूम

कोरोना की वजह से अनाथ हुए बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाएगी सरकार, मिलेगा 1 लाख का मुआवजा और पांच हजार का मासिक पेंशन, परिजनों का सवाल, जब डेथ सर्टिफिकेट नहीं दे रहे तो मुआवजा कहाँ से देंगे

Updated: May 22, 2021, 03:41 AM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने कोरोना से अनाथ हुए बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाने का ऐलान किया है। इन बच्चों के रहन-सहन के लिए पांच हजार रुपए मासिक पेंशन भी दिया जाएगा। सरकार ने यह भी ऐलान किया है कि कोरोना से मरने वालों के परिजनों को 1 लाख रुपए मुआवजा राशि दी जाएगी। कोरोना मृतक यदि सरकारी कर्मचारी हो तो उनके परिजनों को 5 लाख का मुआवजा और एक सदस्य को अनुकंपा नौकरी देने का भी निर्णय लिया गया है। हालांकि, सरकारी दावों की जमीनी हकीकत रूह कंपाने वाली है।

मध्यप्रदेश में 17–वर्षीय हनुशीष डहेरिया के सर से मां–बाप का साया उठे मुश्किल से महीना नहीं हुआ है कि उसके कंधों पर एक बड़ी ज़िम्मेदारी आन पड़ी है। हनुशीष कोविड की गिरफ्त में आए अपने माता–पिता के डेथ सर्टिफिकेट के लिए रोज़ दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। 10वीं कक्षा के छात्र हनुशीष के सिर से पिछले महीने 24 घंटे के भीतर ही मां और बाप दोनों का साया उठ गया था। उनके के जीवन में अप्रैल का महीना ताउम्र न भूलने वाला तूफान लेकर आया। हनुशीष की माता डॉ दिव्या डहेरिया सिवनी के शासकीय पीजी कॉलेज में प्रोफेसर थीं, और पिता गिरीश डहेरिया एलआईसी में काम करते थे। बीते 14 अप्रैल को उनके परिवार के सभी सदस्य कोरोना वायरस की चपेट में आ गए थे।

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बकौल हनुशीष उनके पिता की हालात बिगड़ने लगी और सिवनी में इलाज की व्यवस्था नहीं होने के कारण उन्हें एम्बुलेंस से भोपाल लाया गया। इसके लिए एम्बुलेंस वाले में उनके परिजनों से 50 हजार की मोटी रकम भी वसूली। घर में कोई अन्य पुरुष सदस्य न होने की वजह से हनुशीष अपनी मां के साथ नाना-नानी के घर बैतूल चले गए। गिरीश को भोपाल के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां अगले ही दिन यानी 18 अप्रैल को उनकी मौत हो गई। उधर बैतूल में हनुशीष और उनकी मां दिव्या की भी तबियत बिगड़ने लगी थी। 

पिता की मौत से टूटा हुआ किशोर अगले ही दिन यानी 19 अप्रैल को अपनी मां को भी खो देता है। स्वयं कोरोना संक्रमित होने की वजह से हनुशीष की भी हालत बिगड़ने लगी। इसके बाद हनुशीष के चाचा उन्हें भोपाल लेकर आए। भोपाल के एक निजी अस्पताल में उन्हें भर्ती कराया गया। माता–पिता दोनों को खो देने के बाद, हनुशीष की ज़िंदगी मानो बेपटरी हो चुकी थी। उनके सपने और अरमान अब उनके लिए कोई मायने नहीं रखते थे। उम्मीद छोड़ देने के बावजूद, हानुशीष ने अपने परिजनों की मदद से कोरोनावायरस को हरा दिया और अस्पताल से 28 अप्रैल को वह रिकवर होकर घर लौटे। हनुशीष के इलाज में करीब 4 से पांच लाख रुपए खर्च हुए।

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कोरोना से ठीक होने के कुछ ही दिन बाद वे अपने माँ-बाप के डेथ सर्टिफिकेट के लिए भटकने लगे। हनुशीष के पिता की डेथ सर्टिफिकेट में अस्पताल और विश्रामघाट ने कोरोना को कारण बताया है। लेकिन इसके बावजूद नगर निगम ने उन्हें सामान्य मौत का डेथ सर्टिफिकेट दिया है। उधर मां का डेथ सर्टिफिकेट 4-5 बार चक्कर काटने के बाद भी बैतूल सीएमएचओ ने देने से मना कर दिया है।

हनुशीष फिलहाल भोपाल में अपने दादा-दादी के साथ रह रहे हैं। हनुशीष के घर वालों का आरोप है कि दलित होने की वजह से सरकारी अधिकारी उनकी गुहार को नहीं सुन रहे हैं, और 17 वर्षीय बच्चे को डेथ-सर्टिफिकेट के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही है। सरकार द्वारा मुआवजा की घोषणा के बारे में पूछे जाने के पर हनुशीष के परिजनों का कहना है कि जब बच्चे को डेथ सर्टिफिकेट नहीं दिया जा रहा है तो मुआवजा और पढ़ाई का खर्च सरकार कैसे देगी। यह कहानी अकेले हनुशीष की नहीं है, बल्कि राज्य भर में कई हनुशीष अपने अभिभावकों को खो चुके हैं, लेकिन मुआवजा तो दूर सरकार उन्हें कोरोना मृतक तक नहीं मान रही है।