आगर-मालवा। मध्यप्रदेश के विधानसभा उपचुनाव 2020 के लिए आरक्षित सीट आगर-मालवा से कांग्रेस ने दूसरी बार अपने 'युवा तुर्क' विपिन वानखेड़े पर भरोसा जताया है। कांग्रेस उम्मीदवार विपिन ने प्रदेश के युवाओं के बीच अपनी लोकप्रियता और उनके समर्थन के बदौलत मध्यप्रदेश की राजनीति में बेहद तेजी से अपनी पहचान बना ली है। 

छात्र राजनीति के दम पर प्रदेश की राजनीति में अपनी अलग पहचान बना चुके विपिन की राजनीतिक यात्रा साल 2005 में तब शुरू हुई थी जब वह अपने कॉलेज के छात्र संगठन में सांस्कृतिक अध्यक्ष बनाए गए थे। महज 17 साल की कच्ची उम्र मे विपिन ने अपनी नेतृत्व क्षमता से इस दावित्व के निर्वहन में अपना लोहा मनवाया और अगले ही साल उन्हें कॉलेज का सचिव बनाया गया।

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महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के विचारों से प्रभावित होकर विपिन ने कांग्रेस पार्टी की छात्र संगठन एनएसयूआई से जुड़ गए थे। उनके जीवन में पूर्व पीएम दिवंगत राजीव गांधी के आदर्शों और मूल्यों का भी खासा प्रभाव रहा है। वह साल 2007 से लेकर 2009 तक इंदौर एनएसयूआई के सचिव रहे वहीं साल 2010 में उन्हें इंदौर एनएसयूआई का जिलाध्यक्ष बनाया गया।

विपिन को प्रदेश भर में पहचान तब मिली जब संगठन के प्रति निष्ठा और अद्भुत नेतृत्व क्षमता को देखते हुए उन्हें साल 2012 में भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन का प्रदेश अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद वह छात्र-छात्राओं के मुद्दे को लेकर मुखर रहे। एक वक्त ऐसा आया जब साल 2015 में दुबारा एनएसयूआई प्रदेश अध्यक्ष बनने के उन्हें मध्यप्रदेश के छात्र-छात्राओं की आवाज के रूप में पहचाना जाने लगा। छात्रों के लिए संघर्ष के दौरान वह कई बार जेल भी गए लेकिन छात्र आंदोलनों से उनका नाता नहीं टूटा।

अपनी कार्यक्षमता और संघर्ष से विपिन ने पार्टी का भरोसा जीत लिया था। साल 2018 विधानसभा चुनाव के दौरान विपिन को कांग्रेस ने आगर-मालवा विधानसभा क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाकर चौंका दिया। यह वह दिन था जब विपिन छात्र आंदोलन के लिए जेल से छूटे थे और बाहर आते ही पार्टी ने उन्हें आगर-मालवा का टिकट थमाकर क्षेत्र में जनता के बीच जाने का निर्देश दिया।

विपिन के लिए अब राहें और मुश्किल होने वाली थी। युवाओं के विपिन भैया अब क्षेत्र में जनता के बेटे के रूप में आ गए थे। यहां भी विपिन अपने छात्र राजनीति के अनुभव और वाक्पटुता के बदौलत कम समय में जनता के विश्वास जितने में सफल रहे। इस दौरान उनके सामने बीजेपी के दिग्गज नेता मनोहर ऊंटवाल थे। सांसद और विधायक रहे ऊंटवाल के पास कई बार के चुनाव लड़ने और जितने की अनुभव थी वहीं युवा विपिन ने पहली बार आम चुनावों में हिस्सा लिया था। बावजूद इसके विपिन ने ऊंटवाल को कड़ी चुनौती दी नतीजतन दिग्गज नेता ऊंटवाल मात्र ढाई हजार वोटों से चुनाव जीत पाने में सफल रहे।

ऊंटवाल के आकस्मिक निधन के बाद यह सीट खाली हो गई है वहीं कांग्रेस ने दूसरी बार वानखेड़े पर भरोसा जताया है। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि एक बार चुनाव लड़ने का अनुभव विपिन के लिए कितना फायदेमंद साबित होता है।