नई दिल्ली। कोरोना महामारी के बीच अब ब्लैक फंगस ने देश में कहर बरपाना शुरू कर दिया है। देशभर में हजारों लोग इस जानलेवा काली फफूंद के चपेट में आ गए हैं। अचानक ब्लैक फंगल इंफेक्शन के मामलों हुई बढ़ोतरी के बीच इसके इलाज में इस्तेमाल होने वाली एंटी फंगल दवा का शॉर्टेज हो गया है। समय पर दवा न मिलने की वजह से संक्रमितों के मरने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। केंद्र सरकार ने कहा है इस दवा को ढूंढने मेंं हम जमीन आसमान एक कर देंगे।



केंद्रीय रसायन व उर्वरक मंत्री मनसुख मंडाविया ने ट्वीट किया, 'म्यूकोरमाइकोसिस (ब्लैक फंगल इंफेक्शन) के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा एम्फोटेरिसिन बी की आवश्यकता और आपूर्ति की समीक्षा की गई है। हमने देश में इसका उत्पादन बढ़ाने और विदेशों से आयात करने के लिए विशेष रणनीति बनाई है। हमने पहले ही इस दवा की आपूर्ति कई गुना बढ़ा दी है, लेकिन इसकी मांग अचानक से बढ़ गई है। मैं सभी को आश्वस्त करना चाहता हूं कि मरीजों तक दवा पहुंचाने के लिए हम जमीन-आसमान जहां भी जाना पड़े उसके लिए प्रतिबद्ध हैं।' 





मंडाविया ने आगे कहा की दवा की कमी को जल्द से जल्द दूर कर लिया जाएगा। उन्होंने कहा, 'हमने दवा वितरण के लिए सक्षम वितरण और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन की पूरी तैयारी कर ली है। कमी को जल्द पूरा कर लिया जाएगा। मैं राज्यों से आग्रह करता हूं कि दवा की पूरी किफायत के साथ गाइडलाइंस के अनुरूप इस्तेमाल करें। आपूर्ति की व्यवस्था पर राष्ट्रीय दवा मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) नजर रखेगा।'



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देश में ब्लैक फंगल इंफेक्शन से महाराष्ट्र, गुजरात और मध्यप्रदेश बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। महाराष्ट्र में इस फंगल इंफेक्शन के दो हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं। गुजरात मे 1,163 मरीज सामने आए हैं। वहीं मध्यप्रदेश में अबतक इस घातक बीमारी के चपेट में 537 लोग आ चुके हैं। मध्यप्रदेश में इस संक्रमण से 31 लोगों की मौत भी हो चुकी है। उधर उत्तरप्रदेश में 73 मामले दर्ज किए गए हैं, वहीं दो की मौत हुई है। तेलंगाना में भी 60 मरीन ब्लैक फंगस से इंफेक्टेड मिले हैं।



ब्लैक फंगस को पोस्ट कोरोना इफेक्ट कहा जा रहा है। चूंकि, कोविड-19 से ठीक होने वालों में ही यह फंगल इंफेक्शन देखा जा रहा है। हालांकि, यह कोई नई बीमारी नहीं है, बावजूद कोरोना वायरस के आने के बाद इस फंगल इंफेक्शन ने पांव पसारना शुरू किया है। डॉक्टरों के मुताबिक यह इंफेक्शन छुआ-छूत की बीमारी नहीं है। यह इंफेक्शन ज्यादातर उन्हीं मरीजों में देखा जाता है जो डायबिटीज, किडनी या ह्रदय रोग से पीड़ित होते हैं। अथवा जिन्होंने कोई अंग ट्रांसप्लांट कराया हो या फिर कोविड-19 इलाज के दौरान स्टेरॉयड दवा लिया हो।



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यह फंगल इंफेक्शन इतना खतरनाक है कि इससे आखों की रोशनी जाने अथवा नाक और जबड़े की हड्डी गलने का खतरा होता है। यह इंफेक्शन यदि दिमाग तक चढ़ जाए तो मरीजों के बचने की चांस नहीं होती है। आंखों तक संक्रमण पहुंचने की स्थिति में आंखें निकालनी पड़ती है। देशभर में अधिकांश केस में यही देखा जा रहा है कि मरीजों को जीवित बचाने के लिए उनकी आंखें निकालनी पड़ रही है। इस खतरनाक बीमारी से लड़ाई में सबसे ज्यादा दिक्कत एंटी फंगल दवाओं की कमी से उत्पन्न हो रही है।



देश की राजधानी दिल्ली के सबसे बड़े फार्मा विक्रेताओं तक के पास भी इस बीमारी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा एम्फोटेरिसिन बी उपलब्ध नहीं है। फार्मा सेक्टर के लोगों के मुताबिक पिछले हफ्ते तक यब दवा आसानी से उपलब्ध थी। लेकिन देशभर में संक्रमितों की संख्या में एकाएक इतनी बढ़ोतरी हुई कि अब इसे उपलब्ध करा पाना घरेलू बाजार के लिए बेहद मुश्किल है।