नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने अपने वैक्सीनेशन पॉलिसी का बचाव करते हुए सुप्रीम कोर्ट में 218 पन्ने का हलफनामा दायर किया है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि राष्ट्रीय टीकाकरण नीति पर न्यायालय को हस्तक्षेप करने की कोई जरूरत नहीं है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने वैक्सीन की कीमतों को लेकर केंद्र सरकार से दुबारा विचार करने के लिए कहा था। शीर्ष न्यायालय ने वैक्सीन के लिए वसूले जा रहे कीमतों को राइट टू हेल्थ यानी नागरिकों के जीवन के अधिकार के खिलाफ बताया था।

राइट टू हेल्थ और वैक्सीन पॉलिसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज अहम सुनवाई होनी है। सुनवाई के पहले ही केंद्र ने कल रात ही न्यायालय में 218 पन्ने का हलफनामा दायर कर अपनी नीतियों का बचाव किया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक इसमें केंद्र ने न्यायालय के सभी सवालों के बिंदुवार जवाब दिए हैं। केंद्र ने अपनी नीतियों का बचाव करते हुए कहा कि आज देश का कोई भी नागरिक कहीं भी इलाज करवा सकता है। हॉस्पिटल में दाखिले के लिए आरटी-पीसीआर पॉजिटिव रिपोर्ट या उस शहर के होने का आधार कार्ड की जरूरत नहीं है।

केंद्र ने यह भी दावा किया है हॉस्पिटल्स में कोविड-19 बेड्स, डॉक्टर, नर्स और मेडिकल स्टाफ की संख्या बढ़ाई गई है। वैक्सीन की उत्पादन से लेकर उपलब्धता बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। राज्य सरकारें सीधे उत्पादकों से वैक्सीन प्राप्त कर रही है। वैक्सीन निर्माताओं से बात कर यह तय किया गया है कि सभी राज्यों को एक दर पर वैक्सीन दिया जाएगा। केंद्र को वैक्सीन कम दाम पर इसलिए मिल रही है क्योंकि हमने बड़े ऑर्डर और उसके पैसे दिए हैं।

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केंद्र सरकार ने शीर्ष न्यायालय से गुहार लगाया है कि जनहित में ये फैसला हम पर छोड़ दिया जाए और कोर्ट इसमें हस्तक्षेप न करे। केंद्र का तर्क है कि विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों से मिले सलाह के आधार पर वैक्सीन नीति बनाई गई है। गौरतलब है कि इन दिनों भारत में कोरोना से उत्पन्न हुए हालातों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट आक्रामक है। न्यायालय ने केंद्र को कई बार फटकार लगाया है। इतना ही नहीं राज्यों में ऑक्सीजन की किल्लत को देखते हुए कोर्ट ने 12 सदस्यीय टास्क फोर्स का भी गठन कर दिया है जिन्हें ऑक्सीजन की उपलब्धता और वितरण पर नजर रखने को कहा गया है।