नई दिल्ली/ लखनऊ। एक तरफ दिल्ली के विज्ञान भवन में केंद्र की बीजेपी सरकार किसानों के साथ कृषि कानूनों को लेकर चर्चा कर रही है, तो वहीं दूसरी तरफ राज्यों में उसके नेता और मंत्री किसानों के आंदोलन पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं। किसी को किसानों की जगह खालिस्तानी नज़र आते हैं, तो कोई कहता कि तस्वीरों में उसे किसान नहीं दिख रहे और कुछ नेताओं को तो किसानों की तकलीफ, उनके आंदोलन में सिर्फ कांग्रेस पार्टी की साजिश नज़र आती है। 

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इस तरह का सबसे ताज़ा बयान यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने दिया है। केशव प्रसाद मौर्य ने आरोप लगाया है कि कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का पूरा आंदोलन और कुछ नहीं सिर्फ कांग्रेस की साज़िश है। योगी सरकार में नंबर दो के नेता केशव प्रसाद मौर्य ने आज अपने एक बयान में कहा कि यह पूरा आंदोलन कांग्रेस की साजिश की सिवा कुछ भी नहीं है। केशव प्रसाद मौर्य ने तो यहां तक कह डाला कि उनके गृह राज्य उत्तर प्रदेश को तो छोड़िए बल्कि पूरे देश में कहीं भी कोई किसान कृषि कानूनों के खिलाफ है ही नहीं। 

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केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, 'यूपी या देश के किसान आंदोलित नहीं हैं। किसान जानते हैं कि 6000 रुपये उनके खाते में कांग्रेस ने नहीं मोदी जी के नेतृत्व वाली सरकार ने पहुंचाए हैं। किसानों से अपील है कि इन कांग्रेसियों के चक्कर में न पड़ें। ये कांग्रेस किसान, कृषि और देश के विकास की विरोधी है।' 

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उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस बयान के क्या मायने निकालें जाएं ? अगर सच में देश भर का किसान आंदोलित नहीं है तो विज्ञान भवन में सरकार कृषि कानूनों पर किन लोगों से और क्यों चर्चा कर रही है ? अगर इस पूरे आंदोलन के पीछे कांग्रेस की साजिश है तो सरकार किसानों से बातचीत करने के लिए क्यों राज़ी हुई है ? इतना ही नहीं, यह कहना कि देश के लाखों किसान दरअसल नए कानून से परेशान नहीं हैं, बल्कि वे सिर्फ कांग्रेस के बरगलाने की वजह से ठंड के मौसम में कई दिनों से सड़कों पर डटे हुए हैं और पुलिस की आंसू गैस, वॉटर कैनन और लाठियों का सामना कर रहे हैं, क्या उन किसानों की समझदारी का अपमान नहीं है?

दरअसल एक तरफ सरकार की तरफ से किसानों से वार्ता करना और दूसरी तरफ उसके नेताओं का इस पूरे आंदोलन पर सवाल खड़े करना, खुद सरकार और बीजेपी की नीयत पर संदेह पैदा कर रहा है। क्या बीजेपी नेताओं के विरोधाभासी बयान से यह समझा जाए कि सरकार खुले मन से किसानों से बातचीत ही नहीं करना चाहती और न ही कर रही है ? ऐसा क्यों है कि बीजेपी जैसी अनुशासित कही जाने वाली पार्टी के मंत्रियों का रुख केंद्र और राज्यों में बिलकुल अलग-अलग नज़र आ रहा है? इस दोहरे रवैये के कारण ही बीजेपी किसानों और उनके समर्थकों का भरोसा लगातार खोती हुई नज़र आ रही है।