दिल्ली। केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसान पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। रविवार को किसानों ने एक बड़ा ऐलान किया है। पंजाब के 30 किसान संघों की रविवार सुबह मीटिंग हुई। जिसके बाद किसानों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ऐलान किया कि वे अब बुराड़ी में खुली जेल जाने की बजाय दिल्‍ली के 5 मेन एंट्री प्‍वाइंट को अवरुद्ध करके दिल्ली का घेराव करेंगे। किसानों का कहना है कि वे अपने साथ चार महीने का राशन लेकर आए हैं, इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है।



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किसानों ने बुराड़ी जाने की अपील ठुकराते हुए कहा कि सरकार उनसे बिना किसी शर्त के बात करे। भारतीय किसान यूनियन क्रांतिक्रारी के अध्यक्ष सुरजीत एस फुल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा, 'हम किसी भी राजनीतिक दल के नेता को अपने मंच पर बोलने की अनुमति नहीं देंगे।  चाहे फिर वह बीजेपी का नेता हो, कांग्रेस, आप या अन्य किसी दल का हो.. हम केवल उन संगठनों को बोलने की अनुमति देंगे जो हमारा समर्थन करते हैं और उन्‍हें हमारे नियम के मुताबिक बोलना होगा'



 





 



मीडिया से माफी मांगते हुए सुरजीत एस फुल ने कहा कि कुछ प्रदर्शनकारियों ने अनजाने में मीडिया के साथ दुर्व्यवहार किया, ऐसी स्थिति से हम आगे बचेंगे। इसलिए हमने तय किया है कि हर मीटिंग के बाद मीडिया के लिए एक आधिकारिक प्रेस नोट जारी किया जाएगा।



गौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को किसानों से बुराड़ी के संत निरंकारी मैदान में चले जाने की अपील की थी। अमित शाह ने कहा था कि संत निरंकारी मैदान में जाने के बाद सरकार किसानों से बात करने के लिए तैयार है। जिसके बाद किसानों ने गृह मंत्री की पेशकश को ठुकरा दिया। किसानों का कहना है कि बुराड़ी मैदान एक ओपन जेल है और हम वहां जाने के बजाय 5 मेन मार्ग जाम कर दिल्ली का घेराबंदी करेंगे।



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बता दें कि हजारों की संख्या में किसानों ने आज लगातार चौथे दिन सिंधु और टिकरी बॉर्डर पर अपना प्रदर्शन जारी रखा। नए कृषि कानूनों को वापस लेने और अपनी फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे किसान आर-पार की तैयारी में हैं। अगर किसानों ने दिल्ली का घेराव किया तो दिल्ली पहुंचने के सभी रास्ते बंद हो सकते हैं। 



संसद के मॉनसून सत्र में सरकार के कृषि कानूनों के पास कराने के बाद से ही किसान आक्रोशित हैं। उनका कहना है कि सरकार ने किसान की बजाय पूंजीपतियों के हित के हिसाब से ये कानून बनाया। इसमें किसानों को अपना फायदा नहीं नज़र आ रहा है, इसलिए लगातार आंदोलन बढ़ रहा है।