कोलकाता। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने प्रचंड जीत हासिल की है। तृणमूल कांग्रेस के खाते में 213 सीट गए जबकि बीजेपी को महज 77 से संतोष करना पड़ा। हालांकि, इस प्रचंड जीत के बावजूद नंदीग्राम से ममता की हार में रंग में भंग डालने का काम कर दिया। हालांकि, ममता भले ही चुनाव हार गईं हैं लेकिन सीएम बनने के लिए उनके समक्ष फिलहाल कोई रोड़ा नहीं है।

कानूनी रूप से देखा जाए तो ममता फिलहाल 6 महीनों तक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री पद पर बने रह सकती हैं। इस दौरान उन्हें किसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना होगा। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164 के मुताबिक, 'एक मंत्री जो लगातार छह महीने तक राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं है, उसे पद छोड़ना पड़ेगा।' यानी सीएम बने रहने के लिए ममता को किसी भी तरह पश्चिम बंगाल विधानसभा का सदस्य बनना होगा।

इससे पहले साल 2011 में भी यही हुआ था जब ममता बनर्जी पव्हली बार मुख्यमंत्री बनी थीं। उस दौरान वह लोकसभा सांसद थीं। पहली बार बंगाल की सीएम पद की शपथ लेने के बाद उन्होंने सांसद की सदस्यता से इस्तीफा दिया था और भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर सीएम की कुर्सी बचाने में कामयाब हुईं थीं। 

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कांग्रेस के दिग्गज नेता और कानूनी विश्लेषक अभिषेक मनु सिंघवी ने इस बारे में कहा, 'कानूनी रूप से और नैतिक रूप से किसी को भी ममता बनर्जी के सीएम बनने और छह महीने के भीतर चुने जाने पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए। यदि कोई भी पार्टी इसे मुद्दा बनाती है, तो यह उसके भारतीय संविधान के ज्ञान की कमी को दर्शाएगा।' बता दें कि ममता बनर्जी ने लगातार तीसरी बार बंगाल में प्रचंड जीत हासिल किया है। हालांकि, नंदीग्राम से उनके सहयोगी रहे शुभेंदु ने उन्हें 1700 वोट से हराया।