नई दिल्ली। सरकारी योजनाओं के नाम बदलने की कड़ी में केंद्र की मोदी सरकार ने एक और विवादास्पद फैसला लिया है। केंद्र सरकार ने ऐतिहासिक मिड डे मील योजना का नाम बदल दिया है। राष्ट्रीय मध्याह्न भोजन योजना यानी मिड डे मील योजना अब पीएम पोषण योजना के नाम से जानी जाएगी। कांग्रेस ने मोदी सरकार के इस फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि इस फैसले से बच्चों के पोषण के बजाए पीएम मोदी के पीआर का पोषण होगा।



राज्य सभा मे नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ट्वीट कर कहा कि मध्याह्न भोजन योजना का नाम बदलकर 'पीएम पोशन' करके, पीएम अपने पीआर में पोषण तो जोड़ सकते हैं, लेकिन इससे योजना में बच्चों के लिए जरूरी पोषण नहीं जुड़ेगा। क्योंकि मोदी सरकार साल 2014 से ही इस योजना के लिए बजट लगातार कम करती आ रही है। खड़गे ने प्रधानमंत्री को नसीहत देते हुए कहा है की, 'मोदी जी, अपने पीआर का नहीं, बच्चों के पोषण का सोचिए।' 





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दरअसल, केंद्र सरकार ने बुधवार को आर्थिक मामलों के मंत्रिमंडल समिति की बैठक के दौरान मिड डे मील योजना का नाम बदलने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। पीएम मोदी ने इस बात की जानकारी देते हुए ट्वीट कर कह था कि, 'कुपोषण के खतरे से निपटने के लिए हम हरसंभव काम करने को प्रतिबद्ध हैं। पीएम-पोषण को लेकर केंद्रीय मंत्रिमंडल का निर्णय बहुत अहम है और इससे भारत के युवाओं का फायदा होगा।'





शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस संबंध में मीडिया को बताया कि यह योजना पांच वर्षों 2021-22 से 2025-26 तक के लिए है, जिस पर 1.31 लाख करोड़ रुपये खर्च आएगा। केंद्र सरकार के मुताबिक इस योजना का लक्ष्य तकरीबन 11.20 लाख स्कूलों के 11.80 करोड़ बच्चों को शामिल करना है। सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा एक से आठ तक के सभी छात्र इस योजना का लाभ उठाने के पात्र हैं।



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बता दें, मिड डे मील योजना का शुभारंभ साल 1995 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने किया था। कुपोषण के खिलाफ जंग में इसे ऐतिहासिक योजना माना गया है। इसका उद्देश्य देशभर के बच्चों में पोषण के स्तर को सुधार करना और दिन में कम से कम एख बार उन्हें पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना था। इस योजना ने न सिर्फ गरीब तबकों के बच्चों को कुपोषण से बचाया बल्कि स्कूलों में बच्चों के एडमिशन और कक्षाओं में उनकी मौजूदगी में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई। 



भारत सरकार के इस योजना और इसके नतीजों की विश्वभर में प्रशंसा हुई और देश कुपोषित की श्रेणी से बाहर निकला। हालांकि, अब यह योजना के नाम में परिवर्तन कर दिया गया है। जानकारों का मानना है कि समय की मांग इस योजना का नाम बदलने की नहीं बल्कि इसे बढ़ाने और जन-जन तक पहुंचाने की है। जबकि इसके उलट केंद्र सरकार योजना के फंड्स में कटौती करती जा रही है।