नई दिल्ली। लॉकडाउन के दौरान भारत के 84 फ़ीसदी परिवारों की आमदनी पहले से कम हो गई, जबकि इसी दौरान देश के अरबपतियों की संपत्ति में औसतन 35 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ। अप्रैल 2020 के दौरान हर घंटे 1 लाख 70 हज़ार लोगों ने रोज़गार गँवाया। देश की 62 फीसदी शहरी आबादी एक या दो कमरे के घर में रहती है। देश के सबसे अमीर शख्स ने महामारी के दौर में एक घंटे में जितनी दौलत कमाई, उतनी कमाने में एक मज़दूर के सौ जन्म भी कम पड़ेंगे। सरकार के बड़े-बड़े दावों के बावजूद सच ये है कि स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च के लिहाज से भारत दुनिया के देशों में नीचे से चौथे नंबर पर पड़ा है। 

ये डराने, चौंकाने और दिल-दुखाने वाले आँकड़े  दुनिया की प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफैम (Oxfam) की एक रिपोर्ट में सामने आए हैं। इस रिपोर्ट को ऑक्सफैम ने नाम दिया है - 'द इनइक्वैलिटी वायरस' (The Inequality Virus), यानी विषमता का वायरस। रिपोर्ट को पढ़कर एहसास होता है कि यह नाम मौजूदा दौर की सबसे कड़वी हक़ीक़त को बयान करता है।

आज ही जारी की गई ये रिपोर्ट बताती है कि मार्च 2020 में लॉकडाउन लगाए जाने के बाद भारत के 100 सबसे बड़े अरबपतियों की कमाई में जितना इज़ाफ़ा हुआ है, वो देश के 13 करोड़ 80 लाख सबसे गरीब लोगों में से हर एक को 94,045 रुपये देने के लिए काफ़ी है। इस बात पर ध्यान दीजिएगा कि यहां सौ सबसे अमीर अरबपतियों की कुल कमाई की नहीं  बात नहीं हो रही। सिर्फ़ मार्च 2020 के बाद उन्होंने जितनी अतिरिक्त कमाई की है, वही क़रीब 13 करोड़ 80 लाख लोगों को फ़ौरी राहत देने के लिए काफ़ी है। ऑक्सफैम की रिपोर्ट में इसी बात को ज़रा अलग तरीक़े से भी समझाया गया है। रिपोर्ट बताती है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने महामारी के दौरान एक घंटे में जितने पैसे कमाए, उतना कमाने में एक सामान्य मज़दूर को 10 हज़ार साल लग जाएंगे।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत के 11 सबसे अमीर अरबपतियों की संपत्ति में महामारी के दौरान जितना इज़ाफ़ा हुआ, उस पर सरकार अगर महज़ एक फ़ीसदी भी टैक्स लगा दे, तो इससे आम लोगों को सस्ती दवाएँ देने की जन औषधि स्कीम का बजट 140 गुना बढ़ाया जा सकता है। लेकिन हक़ीक़त इस सुझाव से बिलकुल अलग है। रिपोर्ट के मुताबिक़ सच ये है कि स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च के लिहाज़ भारत दुनिया का चौथा सबसे कम हेल्थ बज़ट वाला देश है। यानी नीचे से चौथे नंबर पर।

ऑक्सफैम की रिपोर्ट हमें यह भी बताती है कि मोदी सरकार ने पिछले साल चार घंटे के नोटिस पर दुनिया का सबसे भयानक लॉकडाउन लगाने से बर्बाद हुई इकॉनमी को उबारने के लिए जिस पैकेज का एलान किया था, उसकी सच्चाई क्या है। रिपोर्ट के मुताबिक़ मोदी सरकार ने भले ही 20 लाख करोड़ के पैकेज का एलान किया हो, लेकिन डिफ़ेंस और अंतरिक्ष अनुसंधान जैसे सेक्टर्स को सीधे विदेशी निवेश (FDI) के लिए खोलने जैसी घोषणाओं से भरे पड़े इस पैकेज में सरकारी ख़ज़ाने का सीधा योगदान बमुश्किल 2 लाख करोड़ रुपये या GDP का महज़ एक फ़ीसदी रहा। रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत के शहरों में क़रीब 32 फ़ीसदी परिवार एक कमरे के घर में और 30 फ़ीसदी परिवार दो कमरे के घर में रहने को मज़बूर हैं। ऐसे में कोरोना महामारी से बचाव के लिए बताए जाने वाले सोशल डिस्टेंसिंग जैसे उपाय उनके लिए किसी लग्ज़री से कम नहीं हैं।

ऑक्सफैम की रिपोर्ट में अपने नाम के अनुरूप ग़ैर-बराबरी यानी विषमता के वायरस की बात को दुनिया के पैमाने पर भी पेश किया गया है। रिपोर्ट बताती है कि कोरोना महामारी के दौर में अमीर लोगों के और अमीर होने का ट्रेंड सिर्फ़ भारत में ही नहीं सारी दुनिया के पैमाने पर देखने को मिलता है। रिपोर्ट के मुताबिक़ महामारी के दौरान दुनिया के दस सबसे अमीर लोगों की संपत्ति में इतनी बढ़ोतरी हुई है कि वो रक़म दुनिया के हरेक व्यक्ति को मुफ़्त में वैक्सीन लगाने और वायरस की वजह से ग़रीबी के दुष्चक्र में फँसने से रोकने के लिए काफ़ी है। शायद यही वजह है कि ऑक्सफैम ने भारत सरकार को सलाह दी है कि महामारी के दौरान बेहिसाब मुनाफ़ा कमाने वाली कंपनियों पर अस्थायी टैक्स लगा दिया जाए। संस्था ने मंदी की वजह से बढ़ रही ग़रीबी को दूर करने के लिए न्यूनतम मज़दूरी की समीक्षा करके उसमें समय-समय पर इज़ाफ़ा करने की सलाह दी है। संस्था का कहना है कि भारत सरकार को स्पष्ट और ठोस कदम उठाने होंगे, तभी देश के आम लोगों का भविष्य सुधर पाएगा।