नई दिल्ली। हिंदी के प्रसिद्ध कवि मंगलेश डबराल नहीं रहे। बुधवार की शाम उन्होंने दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में आखिरी सांस ली। मंगलेश डबराल कोरोना वायरस और निमोनिया की चपेट में आने के बाद अस्पताल में भर्ती हुए थे। उनकी उम्र 72 वर्ष थी। सांस लेने में परेशानी के चलते उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था।

उनके निधन की जानकारी उनके कवि मित्र असद जैदी ने फेसबुक पर साझा की। साहित्य अकादमी से पुरस्कृत कवि मंगलेश डबराल नवंबर के आखिरी हफ्ते से बीमार चल रहे थे। पहले उनका गाजियाबाद के एक अस्पताल में इलाज कराया जा रहा था। सांस लेने में परेशानी के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनकी हालत नाजुक बनी हुई थी। बीच में उनकी हालत में कुछ सुधार देखा गया था लेकिन वह पूरी तरह रिकवर नहीं कर सके। 

इसके बाद उन्हें उनकी सहमति से एम्स में भर्ती कराया गया, जहां उनकी तबीयत स्थिर बनी रही। बीच में उनकी तबीयत में कुछ सुधार देखा गया था, लेकिन रविवार शाम से उन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ा। धीरे-धीरे उनके शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। बुधवार की शाम उन्हें डायलिसिस के लिए ले जाया जा रहा था, तभी उनको दिल के दो दौरे पड़े। उन्हें बचाने की आखिरी समय तक कोशिश की गई, लेकिन बचाया नहीं जा सका।

मंगलेश डबराल समकालीन हिंदी कवियों में सबसे चर्चित नाम थे। उनका जन्म 14 मई 1948 को टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड के काफलपानी गांव में हुआ था। इसके बाद, उनकी शिक्षा देहरादून में हुई। मंगलेश डबराल के 5 काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं। पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है और नये युग में शत्रु। इसके अतिरिक्त उनके दो गद्य संग्रह लेखक की रोटी और कवि का अकेलापन के साथ ही एक यात्रावृत्त एक बार आयोवा भी प्रकाशित हो चुके हैं। मंगलेश जी की कविताओं का दुनिया भर की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।