भोपाल। आंदोलन कर रहे किसानों को बीजेपी के नेताओं-मंत्रियों द्वारा कभी खालिस्तानी तो कभी माओवादी बताए जाने पर शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कड़ा एतराज़ जाहिर किया है। उन्होंने कहा कि सरकार अपनी सोच से सहमति न रखने वाले हर व्यक्ति को देशद्रोही बताने लगती है जो बिलकुल गलत है। उन्होंने कहा कि आंदोलन के खिलाफ उल्टे-सीधे बयान देकर देश के किसानों का अपमान करने वाले मंत्रियों को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए। सबसे ज्यादा वक्त तक बीजेपी के सहयोगी रहे शिरोमणि अकाली दल ने कृषि कानूनों के विरोध में ही मोदी सरकार और एनडीए से अलग होने का फैसला किया था।

सुखबीर सिंह बादल ने अपनी पार्टी के स्थापना दिवस पर श्री हरमंदिर साहिब में श्री गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ शुरू करवाने के बाद पत्रकारों से बातचीत के दौरान ये बातें कहीं। इस दौरान उन्होंने कहा कि बड़े दुख की बात है कि केंद्र सरकार किसानों के आंदोलन को खालिस्तानियों और चरमपंथियों का आंदोलन कहकर बदनाम कर रही है।  सरकार के मंत्री खुद से असहमति रखने वाले लोगों सीधे देशद्रोही करार देते हैं। ऐसे बयान देने वालों को सबके सामने माफी मांगनी चाहिए।

बादल ने कहा कि शिरोमणि अकाली दल केंद्र के इस रवैये और ऐसे बयानों की निंदा करता है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार किसानों की बात सुनने की जगह उनकी आवाज को दबाने की कोशिश कर रही है। जब किसान कृषि कानून नहीं चाहते तो केंद्र सरकार उन्हें जबरन क्यों थोपना चाहती है। बादल ने कहा कि मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध करता हूं कि देश के वे किसानों की बात सुनें।

किसानों के बारे में क्या कहते रहे हैं बीजेपी के नेता-मंत्री 

खाद्य, रेलवे और उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल ने किसान आंदोलन पर निशाना साधते हुए कहा था कि लगता है कुछ माओवादी और चरम-वामपंथी तत्वों ने किसान आंदोलन का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है और किसानों के मुद्दे पर चर्चा करने की जगह कुछ और एजेंडा चला रहे हैं। ऐसे लोग किसान आंदोलन को हाईजैक करके इस मंच का इस्तेमाल अपने एजेंडे के लिए करना चाहते हैं। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी कहा था कि असामाजिक तत्व किसानों का वेश धारण करके उनके आंदोलन का माहौल बिगाड़ने का षड्यंत्र कर रहे हैं। इससे पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी किसानों के आंदोलन में खालिस्तानी हाथ होने की बात कह चुके हैं। जबकि यूपी सरकार के मंत्री अनिल शर्मा इसे गुंडों का प्रदर्शन बता चुके हैं। बीजेपी के मशहूर आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय किसानों के इस आंदोलन को कांग्रेस और उग्रवादियों के मेलजोल का नतीजा बता चुके हैं। 

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बता दें कि केंद्र सरकार और आंदोलन कर रहे किसानों के बीच जल्द किसी समझौते की उम्मीद कमज़ोर पड़ती जा रही है। इसी बीच अब सरकार के सूत्रों के हवाले से मीडिया में दावा किया जा रहा है कि किसान आंदोलन में अतिवादी हिंसक ताकतों और माओवादीयों का कब्ज़ा होता जा रहा है। सरकार के इंटेलिजेंस को किसानों के आंदोलन और भीमा कोरे गांव में समानता दिख रही है। खबर यह भी है कि गृह मंत्री अमित शाह ने हिंसा की आशंका से निपटने के लिए अधिकारियों के साथ बैठक भी कर ली है।

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किसान नेता अपने आंदोलन को देश विरोधी, उग्रवादी और हिंसक तत्वों से जोड़े जाने से बेहद खफा हैं। उनका आरोप है कि यह सब किसानों को बदनाम करने की सरकारी साज़िश का हिस्सा है। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत का कहना है कि अगर खुफिया एजेंसियों को लगता है कि कोई प्रतिबंधित लोग हमारे बीच हैं, तो उन्हें गिरफ्तार करें। हमारी जानकारी में ऐसा कोई व्यक्ति यहां नहीं है।  कीर्ति किसान संगठन के प्रमुख रमिंदर सिंह पटियाल ने कहा, 'हमारा आंदोलन शांतिपूर्ण और गैर राजनीतिक है। यह सब केंद्र सरकार का दुष्प्रचार है ताकि हमें बदनाम किया जा सके। हमारे सारे फैसले संयुक्त किसान यूनियन के जरिये लिए जाते हैं। सरकार अपना प्रोपेगैंडा बंद करे।'