नई दिल्ली। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल सरकार को जमकर फटकार लगाई है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि दिल्ली सरकार के पास पॉपुलेरिटी स्लोगन पर खर्च के लिए पैसे हैं, लेकिन MCD को देने के लिए नहीं हैं? आप हमें ऑडिट कराने के लिए मजबूर न करें। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा है कि पराली जलाने को लेकर हो-हल्ला मचाने का कोई आधार नहीं है, क्योंकि 10 फीसदी से भी कम प्रदूषण उससे होता है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि प्रदूषण को रोकने के लिए आपने क्या कदम उठाए हैं। इस पर दिल्ली सरकार का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता राहुल मेहरा ने कहा कि हमने हलफनामा दिया है। इसपर CJI रमन्ना ने कहा कि आप हलफनामे को भूल जाइए, उपायों के बारे में बताएं। मेहरा ने कहा कि नगर निगमों को कदम उठाने होंगे। CJI ने तल्खी से पूछा की क्या आप नगर निगमों पर दोष मढ़ने की कोशिश कर रहे हैं?

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इस दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि दिल्ली सरकार ने MCD के कर्मचारियों को वेतन का पैसा नहीं दिया। ऐसे में हम मजबूर हो जाएंगे कि आपकी कमाई और पॉपुलेरिटी स्लोगन पर खर्च होने वाले पैसे का ऑडिट कराने का आदेश दें। CJI एनवी रमना ने कहा कि सरकार के पास 69 रोड साफ करने वाली मशीनें हैं। क्या इतना काफी है? मेहरा ने कहा कि MCD से यह पूछा जाए। इसपर जस्टिस चद्रचूड़ ने कहा कि आप हमें बताएं कि 24 घंटे के भीतर मशीनों की संख्या कैसे बढाएंगे?

सर्वोच्च न्यायालय ने पराली जलाने को लेकर कहा कि इसपर हो-हल्ला मचाने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। क्योंकि 10 फीसदी से भी कम प्रदूषण पराली जलाने से हुआ है। केंद्र सरकार के हलफनामे के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय ने प्रदूषण के किए इंडस्ट्री, वाहनों और कंस्ट्रक्शन को जिम्मेदार माना है।

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इसके पहले दिल्ली सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए हम कंप्लीट लॉकडाउन जैसे लगाने के लिए तैयार है। लेकिन यह कदम तभी सार्थक होगा, जब इसे पड़ोसी राज्य एनसीआर क्षेत्रों में भी लॉकडाउन लागू करेंगे। दिल्ली के कॉम्पैक्ट आकार को कारण सिर्फ दिल्ली में लॉकडाउन का वायु प्रदूषण पर बेहद सीमित प्रभाव होगा।