मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर अक्सर आरोप लगते रहते हैं कि उनके शासन में ब्यूरोक्रेसी हावी है। कई बार मंत्रियों व विधायकों ने खुल कर तो कभी दबे स्वर में आरोप लगाए हैं कि अफसर उनकी सुनते नहीं है। सारे संचालन सूत्र सीएम सचिवालय में केंद्रित हैं। कद्दावर मंत्रियों के साथ अफसरों का तालमेल न होने को यही कारण बताया जाता है। मुख्यमंत्री भी अफसरों के प्रति सख्त, कभी नरम रूख अपनाते आए हैं। वे अफसरों को टीम मध्य प्रदेश कह कर उनके महत्व को रेखांकित करते रहे हैं। तो अब क्या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपनी टीम मध्य प्रदेश यानी अफसरों पर विश्वास नहीं रहा है?
यह सवाल इन दिनों चर्चा में है क्योंकि मंत्रियों के कामकाज में सुधार के लिए एक नया 'आर' (रिसर्चर) सिस्टम विकसित किया जा रहा है। कहने को यह सिस्टम व्यवस्था सुधारने के लिए लागू किया जा रहा है मगर इसे मंत्रियों के काम पर नजर रखने की नई जुगत माना जा रहा है। मंत्रियों को इस सिस्टम की जानकारी खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दी है। मंत्रियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम में सीएम चौहान ने बताया कि मंत्रियों के दौरों के दौरान उनके कार्यक्रमों और सरकार की योजनाओं के कार्यक्रमों की ताजी स्थिति जानने के लिए उनके साथ एक-एक रिसर्चर भेजा जाएगा। इतना ही नहीं हर जिले में एक सीएम फैलो को भेजा जाएगा जो जिले के प्रभारी मंत्री को ‘सहयोग’ प्रदान करेगा। ये फेलो योजनाओं के मैदानी असर का फीडबैक भी लेंगे।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राजनीति और प्रशासनिक तंत्र से अलग युवाओं को साथ लेकर एक नया सिस्टम खड़ा किया है। अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन संस्थान तथा निजी एजेंसियों के साथ मिल कर युवाओं को सीएम फेलो के रूप में तैयार किया गया है। ये युवा फेलो सीधे सीएम सचिवालय को रिपोर्ट करते हैं। अब तक ये योजनाओं की जरूरत का आकलन, उनके क्रियान्वयन की स्थिति का आकलन व सरकार के कामकाज का फीडबैक लिया करते थे।
अब मंत्रियों के साथ इन युवाओं को अटैच करने का अर्थ होगा मंत्रियों के तंत्र में अपने एक व्यक्ति को शामिल कर देना। यह रिसर्चर या फेलो कामकाज को सुधारने के टिप्स देने के साथ काम पर नजर रखेगा। जाहिर है, जरा भी मनमाफिक काम नहीं होगा तो मंत्री की रिपोर्ट सीधे सीएम सचिवालय पहुंचेंगी। फिलहाल तो मंत्रियों ने इसे सुशासन की ओर एक कदम माना है लेकिन इसके मंतव्य की आहट से कोई अनजान नहीं है।
आईएएस केसरी मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार, माजरा क्या है
मध्य प्रदेश के प्रशासनिक जगत में पिछले दिनों यह खबर भी चर्चा में रही है कि एक और आईएएस का पुनर्वास हो गया। खासबात यह रही कि ये आईएएस किसी तरह अपने मनचाहे पुनर्वास में कामयाब हुए है। बस चर्चा पदनाम को लेकर जरूर वे सवालों से घिर गए हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रिटायर्ड आईएएस आईसीपी केसरी को दिल्ली और अजय कुमार पांडेय को मुंबई में मीडिया सलाहकार नियुक्त किया है। आईएएस आईसीपी केशरी की सेवा का अधिकांश समय दिल्ली में बीता है। वे मध्यप्रदेश आईएएस एसोसिएशन के अध्यक्ष के साथ नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण, नर्मदा घाटी विकास विभाग, नर्मदा बेसिन प्रोजेक्ट, विशेष आयुक्त नई दिल्ली, प्रमुख सचिव ऊर्जा सहित कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का निर्वहन कर चुके हैं।
उन्होंने विशेष आयुक्त दिल्ली रहते हुए मध्य प्रदेश और केंद्र सरकार के बीच समन्वय का कार्य किया है। मगर मीडिया के साथ सीधे उनका सम्पर्क नहीं रहा। इसलिए बतौर मीडिया सलाहकार उनकी नियुक्ति पर अचरज हुआ। मीडिया के साथ उनके संबंधों की पड़ताल की जाने लगी। मगर ऐसा कोई नाता मिला नहीं। असल में, यह रिटायरमेंट के बाद पुनर्वास का मामला है। चूंकि उन्हें रहना दिल्ली में है इसलिए पद के मामले मे कोई समझौता तो बनता है।
दूसरे सलाहाकार अजय पांडेय के बारे में पता चला है कि वे उद्योग जगत में अच्छे संपर्क रखते हैं। उनकी नियुक्ति इंवेस्टर्स समिट तथा इसके बाद फालोअप की दृष्टि से अहम् मानी गई है। यानी उद्योग विभाग की अफसरों के भारी भरकम टीम के बाद भी 'बाहरी' सपोर्ट की आवश्यकता तो हो ही गई
निवाड़ी कलेक्टर को आननफानन में हटाने का राज क्या है
गढ़कुंडार महोत्सव में शामिल होने निवाड़ी पहुंचे सीएम शिवराज सिंह ने मंच से ही निवाड़ी जिला कलेक्टर तरुण भटनागर को हटाने का आदेश दे दिया। मुख्यमंत्री चौहान की इस घोषणा से प्रशासनिक जगत चौंक पड़ा क्योंकि एक महीने पहले ही खुद सीएम चौहान ने उत्कृष्ट कार्य करने के लिए कलेक्टर तरुण भटनागर को सम्मानित किया था।
पड़ताल की तो पता चला कि सबसे छोड़ा जिला होने के बाद भी निवाड़ी की राजनीति का पारा बहुत हाई है। निवाड़ी जिले में दो विधानसभा सीट है। बीजेपी की अंदरूनी राजनीति में भी विधायक अनिल जैन और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर गुट में वर्चस्व का संघर्ष चलता रहता है। छोटा जिला होने और बड़ी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण अधिकारियों के लिए नेताओं के साथ तालमेल बैठाना मुश्किल होता है।
यही तरुण भटनागर के साथ भी हुआ। विधायक अनिल जैन उनके काम से खुश नहीं थे। कभी तोमर गुट नाराज हो जाता था। शिकायतें भोपाल पहुंच चुकी थी। भोपाल से तय कर गए जब मुख्यमंत्री चौहान ने कलेक्टर को हटाने की घोषणा की मंच पर मौजूद बीजेपी नेता खुशी के मारे उछल पड़े। सभी ने तालियां बजा कर प्रसन्नता व्यक्त की।
कलेक्टर तरुण भटनागर को भी हटाए जाने का अंदेशा था तभी वे इस घोषणा के बाद सामान्य बने रहे। वे पूरे दौरे के समय सीएम के साथ तो रहे ही, बाद में कमिश्नर के साथ बैठक में शामिल भी हुए। यूं भी भटनागर अकेले कलेक्टर नहीं है जिन्हें निवाड़ी से सिर्फ सात माह में ही जाना पड़ा है। उनके पहले कलेक्टर आशीष भार्गव और शैलबाला मार्टिन भी ज्यादा दिन टिक नहीं पाए। बहरहाल, राजनीतिक बलि के बाद अब तरुण भटनागर को बेहतर पोस्टिंग का इंतजार है।
इस बार भी 2 जनवरी अफसरों पर भारी
हर बार की तरह ही मध्य प्रदेश में नीति निर्माण से जुड़े आईएएस सहित अन्य अफसरों के लिए नए साल का जश्न फीका रहा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नए साल पर तीर्थ स्थल जाते हैं। इस बार वे सपरिवार पुडुचेरी पहुंचे तथा शिर्डी में सांईं बाबा के दर्शन करते हुए दो जनवरी को भोपाल आएंगे। कुछ मंत्री भी धार्मिक स्थलों पर पहुंचे हैं कुछ ने अपने क्षेत्र में जनता के बीच नए साल का स्वागत किया है।
कुछ अफसरों ने जरूर नए साल का जश्न मनाया लेकिन मुख्य सचिव सहित अधिकांश अफसरों का फोकस दो जनवरी को होने वाली बैठक का एजेंडा था। असल में मुख्यमंत्री 2 जनवरी को बैठक कर मंत्रियों और अफसरों को साल भर के काम का रोडमैप सौंपते हैं। इस बार 2 जनवरी को यह बैठक होगी और सभी मंत्री व अफसर इस बैठक में शामिल होंगे। जो भोपाल नहीं आ पाएंगे वे ऑनलाइन जुडेंगे।
चुनावी साल के लिहाज से यह रोडमैप बेहद अहम् है। इस कारण अफसरों ने सारे राजनीतिक कोण को ध्यान में रखते हुए इसे तैयार करने का प्रयास किया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मंत्रियों को उनके विभाग का लक्ष्य दे कर जल्द ही समीक्षा बैठक भी शुरू करेंगे।