कुछ दिनों में मध्‍य प्रदेश विधानसभा चुनाव की आचार संहित लागू होने वाली है। आचार संहिता तो लागू हो जाएगी लेकिन नई सरकार बनने के पहले मुख्‍य सचिव के बारे में फैसला होना है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केंद्र से आगह कर मुख्‍य सचिव इकबाल सिंह बैस को दो बार सेवावृद्धि दिलवाई है। वरना तो सीएम चौहान के पसंदीदा अफसर इकबाल सिंह बैस नवंबर 2022 में ही रिटायर्ड हो जाते। अब प्रशासनिक हलकों में चर्चा है कि 30 नवंबर को उनकी सेवावृद्धि की अवधि खत्‍म हो रही है। सीएम चौहान उन्‍हें तीसरी बार कार्यकाल वृद्धि देने की पैरवी कर चुके हैं। लेकिन कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं कि क्‍या प्रदेश में योग्‍य अधिकारियों का टोटा है जो एक ही अधिकारी को रिटायर होने के बाद भी सेवावृद्धि दी जा रही है। 

कांग्रेस ने शंका जताई है कि सीएम इकबाल सिंह बैस के नेतृत्‍व में प्रदेश में निष्‍पक्ष चुनाव नहीं हो सकते हैं। इसलिए चुनाव आयोग को उन्‍हें हटाया जाना चाहिए। अब तक तो मामला केवल राजनीतिक आरोप तक ही सीमित था लेकिन अब अपनी ही बिरादरी ने ही सीएस इकबाल सिंह बैस पर आरोप लगा दिए हैं। सभी जानते हैं कि सीएस इकबाल सिंह बैस की कार्यप्रणाली विवादों में रही है और वे अपने अधीनस्‍थों के साथ सख्‍ती से पेश आते हैं। उनके इस व्‍यवहार से तंग आईएएस खुल कर कुछ नहीं कहते लेकिन अनौपचारिक चर्चाओं में दर्द उभर आता है। 

इस पीड़ा को अब एक रिटायर्ड आईएएस आर.बी. प्रजापति ने आवाज दी है। उन्‍होंने सीएस इकबाल सिंह चौहान पर पक्षपाती होने के आरोप लगाए हैं। मुख्यनिर्वाचन अधिकारी को पत्र लिखकर पूर्व आईएएस आरबी प्रजापति ने आरोप लगाया है कि इकबाल सिंह बैंस चुनावी प्रक्रिया से जुड़े हुए रिर्टनिंग अधिकारियों को डिक्टेट करते है, इसलिए उनके रहते निष्पक्षता बनाये रखने में संभव नहीं है। उन्‍हें हटाया जाना चाहिए। 

रिटायर्ड आईएएस आरबी प्रजापति ने 2014 के अशोक नगर कलेक्‍टर के रूप में अपने कार्यकाल को याद किया करते हुए कहा है कि इकबाल सिंह बैंस 2014 में शिवराज सिंह चौहान के प्रमुख सचिव थे। उस समय निर्वाचन पदाधिकारियों को प्रमुख सचिव इकबाल सिंह बैस द्वारा नियंत्रित किया जाता था। 
यह पहला मौका है जब प्रदेश में मुख्‍य सचिव को तीसरी बार सेवावृद्धि देने की बात चल रही है और आईएएस बिरादरी में असंतोष है। इस मामले में चुनाव आयोग भी फिलहाल चुप है। भोपाल आए आयोग से जब मीडिया ने सीएस को हटाने के बारे में पत्रकारों से सवाल किया था तब भी आयोग चुप्‍पी साध गया था। 

विपक्ष और अपनी ही बिरादरी के अफसर द्वारा उठाए सवाल के बाद अब गेंद केंद्र सरकार के पाले में है कि वह आईएएस इकबाल सिंह बैस को तीसरी बार सेवावृद्धि देती है या नहीं। और यदि सेवावृद्धि की जाती है तो चुनाव आयोग क्‍या निर्णय लेता है।

बैस पिता पुत्र की भी मनमर्जियां, मैदान में डिप्‍टी कलेक्‍टर 

मध्‍य प्रदेश में इनदिनों पिता-पुत्र आईएएस की मनमर्जियां चर्चा में हैं। जहां एक ओर पूर्व आईएएस आरबी प्रजापति ने सीएस इकबाल सिंह बैस पर डिक्‍टेटर होने का आरोप लगाया है तो सीएस बैस और उनके बेटे बैतूल कलेक्‍टर अमन सिंह बैस पर मनमर्जियां चलाने का आरोप लगाते हुए डिप्‍टी कलेक्‍टर निशा बांगरे सड़क पर उतर गई है। 

अपने पद से इस्‍तीफा दे कर निशा बांगरे साफ कर चुकी हैं कि वे बैतूल के आमला से चुनाव लड़ना चाहती है लेकिन बैस पिता-पुत्र उनकी राह में बाधा बन रहे हैं। निशा बांगरे का आरोप है कि उनका इस्‍तीफा स्‍वीकार नहीं किया जा रहा है और उन्‍हें नोटिस देकर परेशान किया जा रहा है। इन आरोपों के साथ डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे ने लोकायुक्त में शिकायत की है। निशा बांगरे का कहना है कि प्रावधान है कि 30 दिन के भीतर इस्तीफा स्वीकार किया जाना चाहिए, लेकिन आईएएस पिता-पुत्र बैस पद का दुरुपयोग कर प्रताड़ित कर रहे हैं।]

आमला में अपने नए मकान में गृह प्रवेश के लिए बौद्ध समागम आयोजित करने वाली डिप्‍टी कलेक्‍टर को नियमों का हवाला देर धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने की अनुमति मांगी थी, लेकिन बांगरे को मकान के शुभारंभ में शामिल होने अनुमति नहीं दी गई थी। उनका कहना है कि पद से इस्तीफा देने के बाद भी विभागीय जांच बैठाई जा रही है और नोटिस दिए जा रहे हैं। वेतन भी रोक दिया गया है। 

चुनाव लड़ने के निर्णय पर अडिग निशा बांगरे ने 28 सितंबर से भोपाल तक की पदयात्रा शुरू की है जो 12 वें दिन नौ अक्टूबर को भोपाल पहुंचेंगी। निशा बांगरे का कहना है कि यदि उनके त्याग-पत्र पर निर्णय नहीं लिया गया तो मुख्यमंत्री निवास के सामने आमरण अनशन करेंगी। उधर आमला के जनपद चौक पर निशा बांगरे के समर्थकों ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल भी शुरू कर दी हैं। 

पुलिस महकमे क्‍यों बढ़ रहा है असंतोष 

देशभक्ति जन सेवा के लक्ष्‍य के साथ काम कर रही मध्‍य प्रदेश पुलिस में अंदरूपी असंतोष का स्‍तर बढ़ता जा रहा है। पुलिस सिस्‍टम के अंदर अफसरों के रवैये से परेशान अधीनस्‍थों का नाराज होना, डिप्रेशन में जाना नई बात नहीं है अब तो वरिष्‍ठ अफसरों के बर्ताव से असंतुष्‍ट पुलिस अफसरों का असंतोष खुल कर सामने आ रहा है। 

जुलाई अंत की बात है जब अलीराजपुर जिले के सोंडवा थाने के टीआई और चार पुलिसकर्मियों पर आदिवासियों के घर से सोने के 240 सिक्‍के (कीमत करीब 2 करोड़ रुपए) चुराने के आरोप लगे थे। सस्‍पेंड हुए टीआई ने रोते हुए एक वीडियो पोस्‍ट किया था कि अफसरों ने उन्हें गलत तरीके से फसाया है। प्रदेश में हर माह अपने की सिस्‍टम से नाराज पुलिस अफसरों के मामले सामने आते हैं। कई बार असंतोष का खुलासा होता है, कई बार बात दबी रह जाती है। 

मगर इस बार तो दो अफसरों की पीड़ा इस स्‍तर तक पहुंच गई कि उन्‍होंने पद से इस्‍तीफा ही दे दिया। पहला मामला नीमच जिले का है। यहां पदस्‍थ 40 वें बैच में ओवरऑल टॉपर रही डीएसपी यशस्वी शिंदे ने यह कहते हुए इस्तीफा दिया कि वे ‘वर्तमान परिस्थितियों में में अपनी सेवाएं विभाग को देने में सक्षम नहीं हूं।’  यशस्वी शिंदे का तबादला दो दिन पहले ही एसडीओपी मनासा से डीएसपी अजाक के पद पर हुआ था। माना जा रहा है कि वे इस ट्रांसफर से खुश नहीं थीं। पढ़ाई और परफॉर्मेंस में टॉप पर रहने वाली यशस्वी शिंदे डिपार्टमेंट की पॉलिटिक्स में सरवाइव नहीं कर पा रही थीं और इस कारण इस्‍तीफा दे दिया। हालांकि, बाद में समझाइश पर उन्‍होंने इस्‍तीफा वापस ले लिया लेकिन पुलिस विभाग में फैल रहे असंतोष का खुलासा तो हो ही गया।  

असंतोष के फैलने का दूसरा मामला इंदौर का है। इंदौर के हीरा नगर थाना क्षेत्र के एसीपी धैर्यशील येवले ने भी इस्तीफा दे दिया है। इसका कारण बीमारी बताया गया मगर असली मामला अफसरों बर्ताव है। बताया जाता है कि एक मामले में लापरवाही पर पुलिस कमिश्‍नर मकरंद देऊस्‍कर ने एसीपी धैर्यशील येवले को फटकारा था। इस बात से आहत एसीपी येवले ने सेवानिवृत्ति के दो साल पहले ही इस्‍तीफा दे दिया। 

ये और इन जैसे सभी मामलों में पुलिस अधिकारी कर्मचारी अपने वरिष्‍ठ अधिकारियों पर बुरे व्‍यवहार और पक्षपात का आरोप लगा रहे हैं। इस तरह के आरोप समूचे सिस्‍टम के लिए अलार्म है। ऐसे ही असंतोष फैलता रहा तो यह उचित नहीं होगा। 

प्रमोटी अफसरों पर ही जताया भरोसा 

सरकार ने प्रशासनिक जमावट में नए-नए आईएएस बने प्रमोटी अफसरों पर ही अधिक भरोसा जताया गया है। मऊगंज के बाद बनाए गए दो नए जिलों में भी सरकार ने प्रमोटी अफसरों पर भरोसा जताते हुए उन्‍हें कलेक्‍टर बनाया है। इन निर्णयों से एक बार फिर साबित हुआ है कि राजनीतिक समीकरणों में अपने लचीलेपन के कारण प्रमोटी आईएएस अफसर डायरेक्‍ट आईएएस के बदले सरकार की पसंद रहते हैं।  

वर्ष 2022 का आंकड़ा बताता है कि 52 जिलों में 18 में प्रमोटी आईएएस कलेक्‍टर तथा करीब 24 जिलों में प्रमोटी आईपीएस पुलिस अधीक्षक बनाए गए थे। एक वर्ष बाद अब प्रदेश में 55 जिले हो गए हैं और आधे से ज्‍यादा जिलों की कमान प्रमोटी अफसरों के पास है। चुनाव के पहले गठित तीन नए जिलों में सरकार ने डायरेक्‍ट आईएएस नहीं भेजे हैं। मऊगंज में पहले डायरेक्‍ट आईएएस सोनिया मीना को कलेक्‍टर बनाया गया था मगर चार घंटे में ही आदेश बदल कर प्रमोटी आईएएस अजय श्रीवास्‍तव को कलेक्‍टर बना दिया गया।

अब आचार संहित लागू होने के पहले गठित दो जिलों मैहर और पांढुर्णा के लिए भी सरकार ने कलेक्टरों के रूप में प्रमोटी अफसरों की ही नियुक्ति की है। प्रमोटी आईएएस रानी बाटड को मैहर तथा अजय देव शर्मा को पांढुर्णा जिले का कलेक्टर नियुक्त किया गया है। 

प्रशासनिक जगत में इस निर्णय पर बहुत अचरज व्‍यक्‍त नहीं किया गया है क्‍योंकि प्रमोटी अफसर अपने लचीले व्‍यवहार तथा हर तरह के आदेश मानने के स्‍वभाव के कारण सरकार की पहली पसंद होते हैं जबकि डायरेक्‍ट आईएएस में एक खास तरह का एटीट्यूड होता है जो राजनीतिक समीकरणों और इरादों के अनुकूल नहीं होता है।