मुख्‍यमंत्री सचिवालय का काम होता है कि वह मुख्‍यमंत्री की मंशा, घोषणा और निर्देशों का पालन करें। यह पहली बार हो रहा है कि मुख्‍यमंत्री सचिवालय तय करेगा कि सार्वजनिक रूप से मुख्‍यमंत्री द्वारा सार्वजनिक मंच से कही गई बात घोषणा मानी जाएगी या नहीं। मतलब मुख्‍यमंत्री यदि किसी मंच से कोई बात कहते हैं और जब सीएम सचिवालय इसे घोषणा मानेगा तभी इसका क्रियान्‍यवन होगा। अन्‍यथा वह बात केवल एक जुमला बन कर रह जाएगी।

मुख्‍यमंत्री के कहे को खारिज करने का अधिकार उनके सचिवालय को देने का प्रोटोकॉल कलेक्टर-कमिश्नर कॉन्फ्रेंस के अंतिम दिन जारी हुआ। प्रदेश के सभी कलेक्‍टरों को दिए गए इस नए प्रोटोकॉल में कहा गया है कि मंच से की गई बातें मुख्यमंत्री की घोषणा तब तक नहीं मानी जाएगी जब तक सीएम सचिवालय उसे मंजूर न कर दें। नीतिगत और भारत सरकार से जुड़े मसलों को भी घोषणा में नहीं जोड़ा जा सकेगा। मुख्‍यमंत्री की घोषणाओं में तकनीकी शब्‍द तथा योजना की राशि को लेकर होने वाली गफलत पर भी इस प्रोटोकॉल में स्‍पष्‍ट निर्देश जोड़े गए हैं। इसमें कहा गया है कि मुख्‍यमंत्री की घोषणा में तकनीकी शब्दों को जोड़ने में सावधनी रखी जाए। जैसे, पुल की घोषणा में उसकी लागत का जिक्र नहीं करना। यह नहीं कहना कि 5 किलोमीटर लंबी सड़क बनाई जाएगी या सौ करोड़ का पुल बनेगा।

यूं तो यह कवायद मुख्‍यमंत्री की घोषणा को अधिक वास्‍तविक बनाने की गरज से की जा रही है लेकिन एक तरह से यह मुख्‍यमंत्री के भाषणों का प्रभाव भी कम कर सकता है। मुख्‍यमंत्री जनता के बीच चाहे जो कह कर आ जाएं, होगा वही जो सचिवालय में बैठे अफसर चाहेंगे। मतलब मंच से मुख्‍यमंत्री का कहा कलेक्‍टर के लिए निर्देश नहीं होगा बल्कि अफसर उस आदेश पर काम करेंगे जो सचिवालय में बैठे आईएएस तय करेंगे।

इस तरह मुख्‍यमंत्री की बात का वजन कुछ कम होने का अंदेशा है। जनता कैसे भरोसा करेगी कि मुख्‍यमंत्री उनके बीच जो कह रहे हैं वह कोरा भाषण है या उस पर अमल भी होगा। अभी यह आरोप लगता है कि मुख्‍य सचिव अनुरागज जैन दिल्‍ली की पसंद है और उनके जरिए दिल्‍ली का मध्‍य प्रदेश की सरकार पर सीधा नियंत्रण है। अब इस प्रोटोकॉल से यही आरोप पुष्‍ट हो रहा है कि दिल्‍ली अफसरों के जरिए मध्‍य प्रदेश की राजनीति पर शिकंजा कस रही है।

एमपी की पुलिस हत्या और लूट करती है...

एमपी पुलिस की अतीत में चाहे जैसी भी छवि रही हो अब उसे हत्या और डकैती के लिए जाना जा रहा है। अपराधों पर नियंत्रण न होने से अपराधियों के बढ़ते हौसले और राजनीति से प्रेरित होकर काम करना मध्‍य प्रदेश की पुलिस के लिए पुराने आरोप हो गए हैं। अब तो पुलिसकर्मियों पर हत्‍या के मामले दर्ज हो रहा है।

हॉक फोर्स के डीएसपी केतन अडलक के इंजीनियर साले उदित गायकी की राजधानी भोपाल में लाठी से पीट-पीटकर हत्‍या कर दी गई। यह काम अपराधियों ने नहीं किया बल्कि दो पुलिस आरक्षकों ने किया है। उदित गायकी के साथ गुरूवार रात इंद्रपुरी क्षेत्र में चार्ली पर तैनात आरक्षक संतोष बामनिया और आरक्षक सौरभ आर्या ने मारपीट की थी। इसके बाद उदित की मौत हो गई। आरोप है कि इस दौरान दोनों पुलिसकर्मियों ने पहले उदित के कपड़े उतरवाए और फिर डंडे पिटाई की थी। मारपीट के बाद आरोपी पुलिसकर्मियों ने दस हजार रुपए की डिमांड भी की थी।

सिवनी में तो पुलिस अफसरों ने हवाला के तीन करोड़ में से डेढ़ करोड़ लूट लिए। एसडीओपी पूजा पांडेय को मुखबिर से जानकारी मिली थी कि कटनी से महाराष्ट्र के जालना जा रही कार में 3 करोड़ रुपये हैं। एसडीओपी पूजा पाण्डेय अपने गनमैन, स्टाफ और पास के बंडोल थाने के टीआई अर्पित भैरम को लेकर सड़क पर पहुंच गई। रात करीब 1:30 बजे सीलादेही में दोनों टीमों ने गाड़ी को रोक लिया और कार में रखे रुपये पुलिस की गाड़ियों में ट्रांसफर कर लिए। हवाला कारोबारी पहुंचे तो मोलभाव का पुलिस ने 1.5 करोड़ रुपए अपने पास रख लिए। व्यापारी को दिए गए पैसे में 25.60 लाख रुपए कम पाए गए तो बात बिगड़ गई। नाराज कारोबारी ने थाने पहुंच कर हंगामा कर दिया। बात मीडिया तक पहुंच गई और पुलिस की लूट उजागर हो गई। इस 'बंदरबांट' के आरोप में सीएसपी पूजा पांडे समेत कुल 10 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया है। साफ है कि राशि कम नहीं निकलती और मीडिया में हंगामा नहीं होता तो यह मामला भी दर्ज नहीं होता।

फिलहाल निलंबन और मुकदमे दर्ज कर पुलिस की साख बचाने का प्रयास किया गया है लेकिन मुखिया को पुलिस की साख पर लगातार लग रहे बट्टे पर गंभीरता से सोचना पड़ेगा।

कर्ज ले कर दिवाली मनाएगी सागर नपा, दोष अफसरों पर

किसी से छिपा नहीं है कि मध्य प्रदेश सरकार कर्ज लेकर काम कर रही है लेकिन अब नगरीय निकायों की आर्थिक हालत भी गड़बड़ाने लगी है। वे भी कर्ज ले कर काम चला रहे हैं। सागर नगर निगम ने दो माह से कर्मचारियों को वेतन नहीं दिया है। अब जब दबाव बढ़ा तो दिवाली पर कर्मचारियों को वेतन देने के लिए 5 करोड़ का कर्ज लेने का फैसला किया गया है।

नगरीय निकाय में काफी पहले से आर्थिक हालात बिगड़ गए हैं लेकिन दिवाली करीब आने से कर्मचारियों की नाराजगी बढ़ गई है। अर्थ व्‍यवस्‍था गड़बड़ाने पर महापौर संगीता सुशील तिवारी ने कहा है कि जिम्मेदार अफसरों को सोचना चाहिए कि कर्ज लेने की नौबत क्यों आई? निगमायुक्त राजकुमार खत्री ने कहा है कि स्मार्ट सिटी, सीवर और टाटा प्रोजेक्ट के बाद बिजली बिलों में भारी बढ़ोतरी हुई है। कर्ज चुकाने के तरीके पर निगम अफसरों ने तर्क दिया है कि इस कर्ज को संपत्ति कर,जल कर, कचरा संग्रहण आदि कार्यों के कर सहित अन्य टैक्स के रूप में वसूले गए पैसे से चुकाया जाएगा। टैक्‍स वसूली में उन कर्मचारियों को लगाया जाएगा जो अभी कोई काम नहीं कर रहे हैं।

गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के कई नगरीय निकाय कर्ज लेकर काम चला रहे हैं। राज्य की 13 नगर निगमों पर लगभग 320 करोड़ रुपए का ऋण बकाया है। नगरीय निकाय आर्थिक संसाधन बढ़ाने की जगह कर्ज की राह चुनेंगे तो यह उन्‍हें नए टैक्‍स लगाने या वर्तमान के टैक्‍स की राशि बढ़ाने को मजबूर करेगा। ऐसा करना अंतत: जनता पर आर्थिक बोझ बढ़ाएगा ही।

सरकारी जमीन बेच दी, नप गए जूनियर, बच गए अफसर

छतरपुर के बीचों-बीच पीडब्ल्यूडी की करोड़ों रुपए की सरकारी जमीन को फर्जी दस्तावेजों के सहारे निजी नामों पर बेच देने के मामले में कार्रवाई हुई तो लेकिन आरोप है कि इसमें छोटे कर्मचारियों को तो सजा दे दी गई लेकिन बड़ी मछलियां मौज में है।

शहर के बीचों-बीच पीडब्ल्यूडी की करोड़ों की सरकारी जमीन को फर्जी दस्तावेजों के सहारे निजी नामों पर बेच देने का मामला लंबे समय से चर्चा में था। मामला कुछ यूं है कि महल रोड बालाजी मंदिर के सामने स्थित जमीन नजूल शीट में लोक निर्माण विभाग के नाम दर्ज थी। आरोप है कि नगर पालिका के रिकॉर्ड में फर्जी तरीके से इस जमीन को राकेश उपाध्याय, निशा, गोपाल और विजया उपाध्याय के नाम दर्ज कर दिया गया। इस नाम बदलने में सक्षम अधिकारी से स्वीकृति भी नहीं ली गई। महीनों बाद कलेक्टर पार्थ जैसवाल ने नगरपालिका के तत्कालीन राजस्व प्रभारी दयाराम कुशवाहा और वर्तमान प्रभारी राजेंद्र नापित को निलंबित कर दिया है।

सवाल यह है कि क्या यह कार्रवाई दिखाने भर की है क्योंकि बड़े अफसर और जमीन के दलालों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है? सिर्फ निचले स्तर के अफसरों को बलि का बकरा बनाया गया है जबकि जमीन खरीदने-बेचने वालों पर कोई मामला दर्ज नहीं हुआ है। उन पर धारा 420 के तहत अपराध दर्ज होना था लेकिन क्‍या मामला रफादफा कर दिया गया है?