इस समय मध्‍य प्रदेश की राजनीतिक सुर्खी है कि सागर के दो बड़े नेता मंत्री गोविन्द सिंह राजपूत और पूर्व गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह अब साथ-साथ हैं। दोनों नेताओं में सुलह हो गई है। दोनों से साथ खाना खाया, चाय पी और ठहाके लगाए। इस तरह दो सालों से खींच हुई तलवारें म्‍यान में पहुंच गई है। जुबान पर जहर नहीं, मीठे बोल छा गए हैं। ऐसा जैसा कुछ हुआ ही नहीं था।

बुंदलेखंड की पॉवर पॉलिटिक्‍स का यह चेहरा कार्यकर्ताओं को लुभा रहा है लेकिन अंदर ही अंदर सवाल है वाकई मन मिले हैं या यह मतलब की राजनीति का एक चेहरा है। अवसरवादिता के चलते हुई दोस्‍ती?

इस सवाल के पीछे की भी वजह है। वर्चस्‍व के जिस आपसी संघर्ष को तत्‍कालीन प्रदेश अध्‍यक्ष वीडी शर्मा और मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव खत्‍म नहीं करवा पाए थे वह संघर्ष प्रदेश अध्‍यक्ष हेमंत खंडेलवाल की पहली सागर यात्रा में कपूर की हवा हो गया। पूरा घटनाक्रम यूं हुआ कि प्रदेश अध्‍यक्ष हेमंत खंडेलवाल की पहली सागर यात्रा तय हुई। किसी भी नेता के सागर आने पर पहला सवाल पार्टी की गुटबाजी पर होता है। जब हेमंत खंडेलवाल से सवाल हुआ तो जवाब मिला पार्टी में सब ठीक चल रहा है। कोई गुटबाजी नहीं है। कल आप खुद बात करना और फिर मुझसे बात करना।

पर्दे के पीछे नेता सक्रिय हो गए थे। आपस में बयानों और कार्यों से एक दूसरे पर तीखे हमले कर रहे दोनों नेताओं मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और पूर्व मंत्री-विधायक भूपेंद्र सिंह को संदेश दिया गया कि पार्टी की बात मानने में ही भलाई है। संदेश काम कर गया। प्रदेश अध्‍यक्ष हेमंत खंडेलवाल की यात्रा में दोनों नेता साथ दिखाई दिए। साथ खाना खाया, चाय पी। इस अवसर पर वरिष्‍ठतम विधायक पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव भी मौजूद थे।

आज सागर में बीजेपी की राजनीति का यह उजला चेहरा है। कार्यकर्ता खुश हैं लेकिन उनके मन में संशय है। पूर्णिमा का यह उजास कब अमावस की काली छाया में बदल जाएगा कहा नहीं जा सकता है। आगे विवाद नहीं होगा यह संभव है लेकिन गुजरे विवादास्‍पद मामलों का क्‍या होगा? जैसीनगर के नाम बदलने का क्‍या होगा? कोर्ट में चल रहे मामलों का क्‍या होगा? कट्टर कार्यकर्ता अपने नेता को झुकते नहीं देखना चाहते हैं। बात अना की है और पार्टी ने फिलहाल अपनी ताकत दिखा कर दोनों विरोधी नेताओं को मुस्‍कुराने पर मजबूर कर दिया है। यह मजबूरी कब तक असर दिखाएगी, कहा नहीं जा सकता है।

जयदीप धनखड़ के इस्तीफे का राज, फ्लाइट के लिए कर्तव्य नहीं छोड़ा

नाटकीय घटनाक्रम में उपराष्‍ट्रपति से इस्‍तीफा देने के बाद बीजेपी नेता जगदीप धनखड़ पहले सार्वजनिक कार्यक्रम में भोपाल आए तो यही उम्‍मीद थी कि उनकी यात्रा से उनके इस्‍तीफे के मामले पर कुछ संकेत मिलेंगे। यूं तो जयदीप धनखड़ ने साफ-साफ कुछ नहीं कहा लेकिन दो तीन बातों में एक इशारा तो मिलता ही है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक डॉ. मनमोहन वैद्य की पुस्तक ‘हम और यह विश्व’ के विमोचन समारोह में बोलत हुए पूर्व उपराष्‍ट्रपति जयदीप धनखड़ ने कहा कि भगवान करे कोई नैरेटिव में न फंस जाए। नैरेटिव से व्यक्तिगत तो लड़ नहीं सकते, लेकिन संस्था लड़ सकती है। इशारा समझा जा सकता है कि इस्‍तीफे के दौरान एक नेरेशन बना और वे मानते हैं कि व्‍यक्तिगत रूप से वे नेरेशन से लड़ नहीं पाए। संस्‍था के रूप में पार्टी या सरकार तो लड़ गई।

पूर्व उपराष्‍ट्रपति जयदीप धनखड़ जब बोल रहे थे, इसी बीच एक युवक वहां पर एक पर्ची लेकर आया जिसमें उनके फ्लाइट की टाइमिंग लिखी हुई थी। उसे देखते ही धनखड़ ने कहा, "मैसेज आ गया। समय सीमा है। मैं फ्लाइट पकड़ने की चिंता से अपने कर्तव्य को नहीं छोड़ सकता।"

पूर्व उपराष्ट्रपति ने मुस्कुराते हुए कहा, दोस्तो, मेरा हाल का अतीत इसका सबूत है। उनके इतना कहता ही पूरा परिसर तालियों और ठहाकों से गूंज उठा। कहा गया था कि सरकार के साथ तालमेल नहीं बैठने के कारण उन्‍हें उपराष्‍ट्रपति के पद से इस्‍तीफा देने के लिए कहा गया था। इस वाक्‍य का अर्थ यही निकलता है कि अपने कर्तव्‍य पालन करते हुए जयदीप धनखड़ ने फ्लाइट यानी कुर्सी छोड़ना ही सही समझा। इस तरह उन्होंने खुल कर कुछ नहीं कहा मगर संकेत दिए। यही संकेत की यदि उनका स्‍वतंत्र रूप से काम करना सरकार को रास नहीं आया तो उन्‍होंने झुकने की जगह पद छोड़ दिया।

तीन बच्चे, तोगड़िया की सक्रियता और नीति परिवर्तन

राजनीति की मुख्य धारा से पिछले कुछ समय से ओझल हिंदू वादी नेता अंतरराष्ट्रीय हिंदू परिषद के संस्थापक डॉ. प्रवीण तोगड़िया एक नया फार्मूला लेकर आए है। मध्‍य प्रदेश के छिंदवाड़ा, सिवनी मंडला क्षेत्र में प्रवास के दौरान डॉ. प्रवीण तोगड़िया ने कहा कि मैं सभी हिंदुओं से अपील करता हूं कि तीन बच्चे अवश्य पैदा करें। दो बच्चों की शिक्षा आप संभालें, जबकि तीसरे बच्चे की पढ़ाई का पूरा खर्च मैं उठाऊंगा। इससे देश में हिंदू राष्ट्र बनने से कोई रोक नहीं सकेगा।”

अब तक सारे नेता हिंदुओं को दो से ज्‍यादा बच्‍चे पैदा करने की सीख देते रहे हैं। लेकिन वे यह नहीं बताते थे कि ज्‍यादा बच्‍चे का भरण पोषण कैसे होगा? क्‍योंकि मध्‍य प्रदेश में प्रावधान है कि दो से ज्‍यादा बच्‍चे होने पर सरकारी नौकरी की पात्रता नहीं रहेगी। परिवार नियोजन के लिए यह नियम लागू किया गया था। जबकि जातीय राजनीति में हमेशा यह कहा जाता है कि सत्‍ता में वर्चस्‍व के लिए आबादी बढ़ाना आवश्‍यक है। इसी फार्मूले के तहत समय-समय पर बीजेपी और संघ नेता परिवार बढ़ाने पर जोर देते रहे हैं।

अब राजनीति में सक्रिय हुए डॉ. प्रवीण तोगड़िया जब यह कह रहे हैं कि तीसरे बच्‍चे की पढ़ाई का खर्च वे खुद उठाएंगे तो यह केवल राजनीतिक जुमला भर नहीं है। यह तो सभी जानते हैं केवल डॉ. तोगड़िया के पढ़ाई का जिम्‍मा उठोन की बात कहने पर ही तीसरे बच्‍चे के बारे में नहीं सोचा जाएगा। इसके लिए नीति में बदलाव की आवश्‍यकता होगी।

असल में डॉ. तोगड़िया का यह बयान बासी कढ़ी में उबाल जैसा ही होता अगर सरकार तीन बच्चों पर सरकारी नौकरी न मिलने का नियम बदलने की तैयारी न कर रही होती। मध्‍य प्रदेश की प्रशासनिक गतिविधियों को देखें तो खबर है कि छत्तीसगढ़ और राजस्थान के बाद अब एमपी में भी नियम बदलने की तैयारी है। यह नियम 26 जनवरी 2001 से लागू था, यानी लगभग 24 साल बाद इस नीति में संशोधन किया जा रहा है। मोहन सरकार ने इसे बदलने पर अंतिम स्तर की तैयारी पूरी कर ली है, और जल्द ही यह प्रस्ताव कैबिनेट में प्रस्तुत किया जाएगा। संभव है जल्‍द यह नियम बदल जाए और तीसरे बच्‍चे की आह्वान तेज हो जाए।

नेताओं से ज्यादा अफसर की सियासत की चर्चा

जाति और आरक्षण पर आमतौर पर राजनेताओं के बयान चर्चा में रहते हैं। इसबार एक आईएएस अजाक्स के प्रदेशाध्यक्ष संतोष वर्मा के बयान ने राजनीतिक पारा चढ़ा दिया है। क्या कर्मचारी संगठन और क्या नेता हर कोई निंदा कर रहा है। मगर विवादित बोल पर निंदा के अलावा कोई कार्रवाई होना नहीं है क्योंकि यह सीधे-सीधे दलित राजनीति से जुड़ गया है।

हालांकि, आईएएस संतोष वर्मा ने अपने बयान को लेकर माफी मांग ली है ओर सामान्‍य प्रशासन विभाग ने भी उन्‍हें कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है। लेकिन बात इतने से थमने वाली नहीं है।

अनुसूचित जाति/जनजाति, अधिकारी एवं कर्मचारी संघ (अजाक्स) के नए प्रांताध्यक्ष बने आईएएस अफसर संतोष वर्मा ने संगठन के एक कार्यक्रम में कहा कि जब तक मेरे बेटे को कोई ब्राह्मण अपनी बेटी दान नहीं देता या उससे संबंध नहीं बनता, तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए। इन बयान पर सियासी उबाल आ गया। ब्राह्मण समाज ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग रख दी। विवाद बड़ा तो आईएएस संतोष वर्मा मीडिया से रूबरू हुए। उन्होंने कहा कि संगठन के अंदर के लोगों ने ही इस वीडियो को वायरल किया है। संगठन में असली-नकली की भी लड़ाई है। ये सारी बातें वही लोग फैला रहे हैं। मैंने अपनी बात में कन्यादान शब्द का इस्तेमाल किया था। वह दान नहीं था। मैंने किसी समाज विशेष पर कोई गलत टिप्पणी नहीं की है।

गौरतलब है कि अजाक्‍स की कमान लंबे समय तक आईएएस जेएन कंसोटिया के हाथ में रही है। वे पूरी ताकत से संगठन को मजबूत करने में जुटे रहे। संगठन के मामले में उनका दबदबा किसी राजनेता से कम नहीं है। अब वे रिटायर हो चुके हैं लेकिन संगठन के संरक्षक बने हुए। आईएएस संतोष वर्मा को हाल ही में प्रांताध्‍यक्ष बनाया गया है। ऐसे में बयान से उपजे राजनीतिक बवाल ने वह काम किया है जैसा आमतौर पर राजनीतिज्ञों के बयान पर होता है। आईएएस संतोष वर्मा के बयान का यह अंतिम पैरा बेहद महत्‍वपूर्ण है। वे कह रहे हैं कि विवाद खड़ा करना अजाक्‍स के नेताओं का ही मकसद था ताकि संगठन में फूट पड़े। बयान के वायरल होने के बाद बात संगठन की गुटबाजी तक ही सीमित नहीं रही है बल्कि उसके बाहर दलीय राजनीतिक को झकझोर चुकी है।