कहते हैं राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं रहता - न दोस्त और न दुश्मन। कभी एनडीए का हिस्सा रही तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रिश्ते प्रगाढ़ थे। फिर राजनीतिक हितों के टकराव में ये रिश्ते दुश्मनी की हद तक बिगड़े। बीते दिनों जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कहने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अम्फान तूफान से हुए नुकसान का आकलन करने पश्चिम बंगाल के दौरे पर गए तो इस जाने में ‘दोस्ती’ का तार महसूस हुआ मगर बाहर जो दिख रहा था अंदर उसके एकदम उलट था। विमान में बैठे दो नेताओं की यह तस्वीर पीडि़त जनता को राहत देने निकले दो राही के जुदा रंग और जुदा अंदाज को बता रही है।
एक-दूसरे के कट्टर विरोधी समझे जाने वाले दो बड़े नेता एक-दूसरे से एकांत में मिलते हैं तो संवाद कैसा होता होगा? बहुप्रतीक्षित मुलाकातों में अभिवादन की औपचारिकता और इस इवेंट को कैमरों में कैद करने की कवायद में कैमरों के फ्लेश चमकना बंद होने के बाद दो कद्दावर नेता कैसा व्यवहार करते होंगे? वे जितना आक्रामक सार्वजनिक रूप से होते हैं क्या व्यक्तिगत मुलाकातों में भी ऐसे ही होते हैं या कुछ अलग? इन दिलचस्प सवालों के जवाब प्रधानमंत्री मोदी और ममता बनर्जी की ताजा मुलाकात में मिलते हैं।
ममता बनर्जी ने कहा और प्रधानमंत्री मोदी तुरंत बंगाल जाने को राजी हो गए। मीडिया के लिए यह एक बड़ा इवेंट था क्योंकि दोनों के बीच दोस्ती और दूरी का लंबा इतिहास रहा है। दोनों ने इसे अपने व्यवहार से इसे कई बार बताया है। अभिनेता अक्षय कुमार के साथ इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को विपक्ष में अपने दोस्त कहा था। मोदी ने एएनआई द्वारा प्रसारित एक इंटरव्यू में कहा था कि आज भी ममता दीदी खुद मेरे लिए एक-दो कुर्तों का चयन करती हैं। यहां तक कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी मुझे खासतौर पर ढाका से एक साल में तीन-चार बार मिठाई भेजी। जब ममता को यह पता चला, तो वह मेरे लिए साल में एक या दो बार मिठाई भेजती है।
रिश्तों में उतार चढ़ाव के ये स्याह-धवल रंग प्रधानमंत्री मोदी की इस बार की पश्चिम बंगाल यात्रा में भी दिखाई दिए। एयरपोर्ट पर ममता बनर्जी तनिक तनी हुई जरूर दिखाई दी मगर उन्होंने प्रधानमंत्री की अगवानी गर्मजोशी से की। इस मुलाकात के बाद हर सावर्जनिक मंच पर दोनों एक दूसरे को स्पेस देते हुए मगर साथ दिखाई दिए। लेकिन प्लेन की यह तस्वीर एकांत के असल भाव बता रही है। दोनों करीब बैठ कर एक दूसरे के विपरित दिशा में रहे। उनकी बॉडी लेग्वेज मन की दूरी को साफ साफ बता रही है। .. और गौर से देखें तो पाएंगे कि दोनों ने भले ही सफेद कपड़े पहने हो लेकिन मोदी के गले में केसरिया दुपट्टा है तो ममता ने नीला दुपट्टा पहन रखा है। ये रंग दोनों की विचारधारा का प्रतीक है। वह विचारधारा जो बंगाल में टकराव का कारण बनी है।
इस यात्रा के तुरंत बाद पीएम मोदी ने पश्चिम बंगाल के लिए 1000 करोड़ की फौरी मदद का एलान किया। इस घोषणा को भी मोदी की ममता के प्रति हमदर्दी के रूप में देखा गया। मगर बारीकी से देखें तो ऐसा है नहीं। भाजपा की निगाहें 2021 में होने वाले विधानसभा चुनावों पर है। 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बंगाल में भाजपा मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी के रूप में उभरी थी। उसने लोकसभा चुनाव में पहली बार 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी। हालांकि इसके बाद नवम्बर 2019 में हुए तीन विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने तीनों सीटें जीत कर अपनी ताकत का अहसास करवाया था। माना जा रहा है कि पीएम मोदी ने ममता बनर्जी के सार्वजनिक रूप से सिर्फ एक बार कहने पर अम्फान तूफान से हानि के आकलन का प्रस्ताव इसलिए नहीं मान लिया कि उनकी ममता से दोस्ती है बल्कि यह तो राहत के बहाने बंगाल की जनता तक सीधे पहुंच बनाने की कवायद थी। दोनों नेता के अंदाज में इस तथ्य को साफ साफ देखा जा सकता है।