कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी या आंवला नवमी या अक्षय नवमी का पर्व मनाया जाता है। इस साल यह 12 नवंबर, शुक्रवार को है। वैदिक ग्रंथों में कहा गया है कि इस दिन से त्रेतायुग का आरंभ हुआ था। अक्षय नवमी की महत्व अक्षय तृतिया के समान होता है। इस दिन किया गया दानपुण्य अक्षुण रहता है। आंवला नवमी के मौके पर आंवले के पेड़ की विधि-विधान से पूजा अर्चना करने का विधान है। माना जाता है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से आरंभ किया गया शुभ कार्य अक्षय फल देता है।

आंवले की पूजा सूर्योदय से पहले स्नान करके की जाती है। आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध, जल चढ़ाएं। रोली, अक्षत, फूल से पूजन करें। पेड़ की सात परिक्रमाएं करें, दीपक जलाएं। इस दिन से आंवला खाना शुरु किया जाता है। इसलिए नवमी पर आंवला जरूर चखना चाहिए। वहीं इस दिन के बारे में मान्यता है कि नवमी के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने कंस के विरुद्ध वृंदावन में घूमकर जनमत तैयार किया था। इस दिन वृंदावन की परिक्रमा करने का विधान है। इससे कष्टों से मुक्ति मिलती है।

अक्षय नवमी को पूजा के बाद आंवले के पेड़ के नीचे खाना खाने से परिवार को आरोग्य की प्राप्ति होती है। जीवन में खुशहाली और सुख-समृद्धि आती है। आंवले में साक्षात भगवान विष्णु और शिव का वास माना गया है। उनकी पूजा से माता लक्ष्मी और पार्वती का भी आशीर्वाद मिलता है। इस दिन गरीबों को अन्न और वस्त्र दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।