विश्व में जितने भी धर्म हैं, सम्प्रदाय हैं, जो ईश्वर और धर्म पर विश्वास रखते हैं। उनमें जो परस्पर मतभेद है, वो संघर्ष का बीज बपन करते हैं। इससे समाज में विघटन होता है। जैसे स्टेशन पर रिक्शे वाले और टैक्सी वाले आपस में लड़ते हैं और कहते हैं कि हमारी टैक्सी में बैठो, वैसे ही ये लोग अपने-अपने अनुयायियों को बढ़ाने का प्रयत्न कर रहे हैं। किंतु प्रश्न ये उठता है कि यदि ईश्वर ने सृष्टि की रचना की है और मनुष्य की रचना भी ईश्वर ने ही की है तो मनुष्य के लोक परलोक के कल्याणार्थ किसी धर्म का उपदेश भी अवश्य ही किया होगा।

वो धर्म कौन सा है? जो सर्व प्रथम ईश्वर के द्वारा प्रदत्त है वही ईश्वरीय धर्म है। ये मानना होगा कि जो सनातन धर्म है वह किसी व्यक्ति के द्वारा चलाया गया नहीं है। ये परम्परा से चला आ रहा है। भगवान भी जब अवतार ग्रहण करके इस धराधाम पर आते हैं तो धर्म का प्रवर्तन नहीं करते हैं वो धर्म की रक्षा ही करते हैं। अत: सनातन धर्म अनादि है। 

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ऐसा कोई सनातन धर्मी नहीं होगा जिसके माता पिता सनातन धर्मी न हों। इसका कोई प्रवर्तक नहीं है, इसलिए यह सनातन है। सना का अर्थ सदा और तन का अर्थ रहने वाला है। अर्थात् जो सदा रहने वाला है वही सनातन धर्म है। सनातन परमात्मा ने सनातन जीवों के लिए सनातन वेद शास्त्रों के द्वारा जो प्राणियों के सनातन अभ्युदय नि:श्रेयस के लिए मार्ग बताया वह सनातन धर्म है। और वही ईश्वरीय धर्म है।