सृष्टि क्या है, यह कितने प्रकार की होती है

सृष्टि दो प्रकार की होती है, एक ईश्वर की और दूसरी हमारी सृष्टि, ईश्वर की नहीं बल्कि हमारे लिए हमारी ही सृष्टि दुखद है, अत: मैं और मेरा से दूर रहकर भगवद्समर्पण बुद्धि से कर्म करना ही श्रेयस्कर है

Updated: Dec 30, 2020, 05:51 AM IST

Photo Courtesy: unsplash
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संसार में अधिकांश लोगों का यह मत है कि सृष्टि दु:ख स्वरुप है। सृष्टि दो प्रकार की है। एक ईश्वर की सृष्टि है और दूसरी हमारी सृष्टि है। जिसको जीव सृष्टि कहते हैं। हम स्वयं अपना संसार बना लेते हैं। कहीं का वर और कहीं की वधू। दोनों का विवाह हुआ आपस में संबंध हो गया। फिर तो एक दूसरे के सुख में सुखी, और दुख में दुखी होने लगे। परिवार बढ़ने लगा फिर उनके लिए सुखी दुखी होने लग गए। इसी को कहते हैं अहंता (मैं) और ममता (मेरा)। शरीर के प्रति जब हमारा "अहं" भाव होता है, तो शरीर के संबंधियों के प्रति "मम" भाव होता है। तो अपने संबंध में तो चिंता होती ही है, उनके संबंध में भी चिंता होती है। यही जीव सृष्टि है।

इस संबंध में हमारे गुरुदेव एक बड़ा ही सुंदर उदाहरण देते हैं, कि एक गांव से दो व्यक्ति धनार्जन के लिए परदेस गए। कुछ दिन के पश्चात गांव की ओर लौटने का कार्यक्रम बना ही रहे थे कि उसमें से एक की मृत्यु हो गई। तो दूसरे मित्र ने एक व्यक्ति के द्वारा गांव में खबर भेजी कि उसके घर जाकर सूचना दे देना कि उसकी मृत्यु हो गई है, और हमारे घर में सूचना दे देना कि हम शीघ्र ही घर लौट रहे हैं। लेकिन सूचना देने वाले ने खबर पलट दी, जिसकी मृत्यु हो गई थी उसके घर कह दिया कि वह शीघ्र ही आने वाला है। और जो शीघ्र घर लौटने वाला था उसके घर खबर दे दी कि उसकी तो मृत्यु हो गई।

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परिणाम ये हुआ मृतक के घर बाजे बजने लगे और जीवित का परिवार शोक मग्न हो गया। जिसके घर में उत्सव हो रहा था वह ईश्वर की सृष्टि में मर चुका था, लेकिन जीव की सृष्टि में जीवित था और जिसका परिवार शोकाकुल हो रहा था, वह ईश्वर की सृष्टि में जीवित था, लेकिन जीव की सृष्टि में उसकी मृत्यु हो गई थी। अभिप्राय यह है ईश्वर की सृष्टि हमारे लिए दुखद नहीं है। हमारे लिए हमारी ही सृष्टि दुखद है। इसलिए "अहंता" और "ममता" से दूर रहकर भगवद्समर्पण बुद्धि से कर्म करना ही हम सभी के लिए श्रेयस्कर है।