नई दिल्ली। भारत की टेनिस स्टार सानिया मिर्ज़ा का बीस साल लंबा टेनिस करियर और 16 साल का टेनिस करियर मंगलवार को समाप्त हो गया। भले ही सानिया मिर्ज़ा के लिए उनका आख़िरी मुक़ाबला अच्छा नहीं रहा, कोर्ट से उन्होंने नम आंखों से विदाई ली। लेकिन सानिया मौजूदा पीढ़ी की महिलाओं की आंखों में कामयाबी का सपना बुनकर गईं। 

दुबई ड्यूटी फ्री चैंपियनशिप सानिया मिर्ज़ा का आखिरी टेनिस टूर्नामेंट था। यूएस की मेडिसन कीज इस टूर्नामेंट में उनकी जोड़ीदार थीं। लेकिन टूर्नामेंट के पहले ही राउंड में उन्हें कुदरमेतोवा और सैमसोनोवा के हाथों उन्हें 6-4, 6-0 की हार झेलनी पड़ी। 

हार ने सानिया के करियर पर विराम ज़रूर लगा दिया लेकिन आने वाली पीढ़ियों के लिए उनकी कामयाबी हमेशा एक मिसाल के तौर पर पेश की जाएगी। कोर्ट से जाते समय सानिया की आंखें नम थीं तो वहीं सानिया को आखिरी बार खेलता देख रहे दर्शक तालियों से उनका अभिवादन कर रहे थे। 

सानिया के लिए टेनिस की शुरुआत वर्ष 1999 में हुई थी। हालांकि 1986 में जन्मी सानिया के लिए खेल जगत का रुख़ करना एक हैरान करने योग्य घटना नहीं थी। उनके पिता इमरान मिर्ज़ा ख़ुद एक स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट थे जबकि उनकी मां किसी प्रिंटिंग कम्पनी में कार्यरत थीं। एक शिक्षित और आर्थिक तौर पर मजबूत परिवार से आने वाली सानिया के लिए खेल की दुनिया में कदम रखना उतना मुश्किल नहीं थी। लेकिन किसे पता था कि आगे जाकर यही सानिया अपने खेल से देश की लाखों करोड़ों लड़कियों के मन में घर की चार दिवारी से बाहर निकल कर कुछ बड़े करने की संभावनाओं के दरवाज़े खोल देंगी। 

सानिया के अंतर्राष्ट्रीय टेनिस करियर की शुरुआत 2006 में ऑस्ट्रेलियन ओपन से हुई। इससे पहले सानिया जूनियर सर्किट और देश में कई टेनिस टूर्नामेंट में न सिर्फ हिस्सा लेकर बल्कि अपने कौशल का लोहा मनवा चुकी थीं। जल्द ही सानिया ने सफलता की सीढियां चढ़ना शुरू कर दिया। लिएंडर पेस और महेश भूपति जैसे टेनिस स्टार्स के साथ उनका नाम भी टेनिस की दुनिया में शुमार हो गया।

सफलता और शोहरत की सीढियां चढ़ने के बाद सानिया मिर्ज़ा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। सानिया ने अपने करियर में कुल छह ग्रैंड स्लैम खिताब जीते, जिनमें तीन डबल्स और तीन मिक्स्ड डबल्स के खिताब थे। सानिया को 19 वर्ष की उम्र में जब पद्म श्री का पुरस्कार दिया गया तब वह इसे प्राप्त करने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ी थीं। वर्ष 2003 से लेकर 2013 तक वह महिला टेनिस संघ में वह शीर्ष टेनिस खिलाड़ी के तौर पर स्थापित रहीं। 2013 में उनके सिंगल्स से संन्यास के बाद शीर्ष स्थान पर उनकी जगह अंकिता रैना ने ली। 

सफलता और शोहरत की बुलंदियों को छूने वाली सानिया विवादों से भी अछूती नहीं रहीं। हालांकि अधिकतर विवाद उनके निजी जीवन और राजनीति से ही जुड़े रहे। खेल की दुनिया में सानिया का कद हमेशा ही बड़ा बना रहा। खेल की दुनिया में सानिया कितनी बड़ी सशक्त हस्ताक्षर हैं उसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मार्च महीने में पहली बार शुरू होने जा रहे महिला प्रीमियर लीग में उन्हें आरसीबी फ्रेंचाइजी का मेंटोर बनाया गया है। सानिया टेनिस की खिलाड़ी ज़रूर रही हैं लेकिन खेल की संपूर्ण दुनिया में सबसे बड़े सितारों में एक हैं।