विकास के पर्दे में बीजेपी का सांप्रदायिक खेल
Publish: Jan 14, 2019 06:47 PM IST
- span style= color: #ff0000 font-size: large विवेकानंद- /span
p style= text-align: justify strong क /strong हा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी का घोषणा पत्र इसलिए देरी से जारी हो सका क्योंकि नरेंद्र मोदी को मुरलीमनोहर जोशी के बनाए घोषणा पत्र को लेकर कुछ आपत्ति थी। चर्चाएं ऐसी भी रहीं कि दोनों के बीच राम मंदिर मसले को लेकर मतभेद थे लेकिन घोषणा पत्र जारी करने के बाद खुद जोशी ने कहा कि दोनों के बीच मतभेद नहीं थे। यूं तो मतभेदों की खबरों के बाद इस तरह के खंडन आम बात हैं लेकिन इस बार जाने क्यों लगता है कि जोशी ठीक बोल रहे हैं और घोषणा पत्र को ऐन पहले चरण की वोटिंग के दिन घोषित करना पड़ा इसके पीछे पार्टी के भीतर कोई मतभेद नहीं थे बल्कि यह एक एक चालाकी भरी चाल थी। इसके पीछे यह चाल हो सकती है कि ऐन चुनाव के वक्त घोषणा पत्र जारी किया जाए ताकि शुरूआती हल्ले में इसका लाभ लिया जा सके। चूंकि इसमें अयोध्या मंदिर और धारा 370 का जिक्र है इसलिए लोग भ्रम में पड़े रहें और धु्रवीकरण हो सके। क्योंकि इन दो मुद्दों के अलावा कुछ भी इस घोषणापत्र में ऐसा नहीं है जो उल्लेखनीय हो या जिस पर चर्चा की जा सके। इसलिए बड़े शातिर तरीके से इसमें मंदिर और धारा 370 को शामिल किया गया हो ताकि यह चर्चा में रहें और सांप्रदायिकता की हवा थोड़ा तेज हो। /p
p style= text-align: justify पूरे घोषणा पत्र पर नजर डालें तो यह कहीं परिलक्षित नहीं होता कि बीजेपी में कोई मतभेद रहे होंगे। पूरा का पूरा घोषणा पत्र गोलमोल है। देश के असल मुद्दों से लेकर राम मंदिर और धारा 370 तक बीजेपी ने किसी भी मामले में स्पष्टता नहीं दिखाई है। महंगाई भ्रष्टाचार और कालेधन को लेकर बस कुछ विशेष करने की बात है लेकिन वह क्या विशेष है और कैसे होगा इसकी कोई झलक देखने को नहीं मिलती। इससे पहले हर मंच से बीजेपी यह बोलकर कांग्रेस को कोसती रही कि यूपीए सरकार ने विदेशा में जमा कालेधन को वापस लाने का प्रयास नहीं किया। इस मुद्दे को लेकर बीजेपी के बाबा तो कई बार सड़कछाप होने का प्रमाण दे चुके हैं। महंगाई को लेकर भी बीजेपी के निशाने पर सबसे अधिक रसोई गैस सिलेंडर और पेट्रोल-डीजल की कीमतें रहीं हैं लेकिन घोषणा पत्र में कहीं जिक्र नहीं है कि वह मौजूदा 12 सब्सिडी वाले सिलेंडरों की जगह कितने सिलेंडर देकर जनता को राहत देगी। पेट्रोल की कीमतें पैट्रोलियम कंपनियां तय करती हैं इसका भी कोई उल्लेख नहीं कि सरकार बनी तो बीजेपी इन बढ़ती कीमतों पर कैसे लगाम लगाएगी। एफडीआई को लेकर भी सब गड्मगड्डा है। बीजेपी ने रिटेल में एफडीआई नहीं लाने की बात कही लेकिन यह साफ नहीं है कि जो राय इसे मंजूरी दे चुके हैं उनको लेकर क्या रुख रहेगा। बेरोजगारी को लेकर कांग्रेस ने 10 करोड़ रोजगार देने का वादा किया है लेकिन बीजेपी के पास ऐसा कोई लक्ष्य नहीं है। क्या बीजेपी पूरे देश के बेरोजगारों को रोजगार देगी या फिर जितने मिल जाएं ठीक है न मिल जाएं तो ठीक है। इन पर कोई चर्चा न हो और जनता को भ्रमित किया जाए इसके लिए बीजेपी ने राम मंदिर और धारा 370 को मैनिफेस्टो में शामिल कर दिया। /p
p style= text-align: justify बहरहाल! जनता को भ्रमित करने और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की बीजेपी की कोशिश केवल घोषणा पत्र तक सीमित नहीं लगती बल्कि वसुंधरा राजे और अमित शाह के ऐन चुनाव के पहले दिए गए बयानों में भी देखी जा सकती है। वसुंधरा राजे साफ कहती हैं कि कौन कटेगा यह चुनाव बाद देखेंगे। इसका क्या मतलब निकाला जाए? क्या चुनाव बाद यदि आवाज उठाई जाती है तो उसे काट दिया जाएगा? चुनाव बाद हर आदमी को गुलामों की तरह जीवन जीना होगा। जो भी मोदी के खिलाफ या बीजेपी के खिलाफ बोलेगा उसे मिटा दिया जाएगा? यह आसान नहीं है लेकिन वे संकेत दे रही हैं कि बीजेपी हिंदुओं की पार्टी है आप भरोसा रखिए। अमित शाह की भाषा भी ऐसी ही है। बल्कि अमित शाह तो वसुंधरा से भी दो कदम आगे हैं। वे आम आदमी के साथ-साथ संवैधानिक तरीके से चुनी गई गैर कांग्रेसी सरकार को ही बर्खास्त करने की धमकी दे रहे हैं। और हैरत की बात यह है कि बीजेपी ने उनके बयान को सही ठहराया है। यानि यदि बीजेपी सरकार बनी तो चुनी हुई सरकारों को बर्खास्त कर दिया जाएगा और उन लोगों से कोई बातचीत नहीं होगी जो झुककर नहीं चलेंगे। यह दोनों बयान बीजेपी की रणनीति का हिस्सा हैं जो हिंदू और मुसलमानों में परस्पर भय का वातावरण निर्मित करके धु्रवीकरण किया जा सकता है। /p
p style= text-align: justify यह पहला मौका नहीं है जब बीजेपी नेता अल्पसंख्यकों के प्रति ऐसी आग उगल रहे हैं। पिछले चुनाव में वरुण गांधी का हाथ काट देने वाला बयान अभी लोगों को याद होगा। जिस तरह बीजेपी अभी अमित शाह के पक्ष में डटकर खड़ी है उस वक्त वरुण गांधी के पक्ष में खड़ी थी। और वरुण गांधी को बचाने के लिए किस तरह मामले के गवाहों को डराया-धमकाया गया यह भी सामने आ चुका है। फिलहाल वरुण गांधी आजाद हैं और दूसरी बार चुनाव मैदान में हैं। इस बार फिर वैसी ही धमकियां दी जा रही हैं। लेकिन बीजेपी यह भूल रही है कि इस तरह के बयानों के अल्पसंख्यक कम बल्कि बहुसंख्यक अधिक मतलब निकाल रहे हैं जो कुछ इस तरह से भी हैं कि क्या बीजेपी की सरकार बनने पर देशभर में गुजरात की तरह दंगे कराए जाएंगे सिर्फ इस थोथी उम्मीद से कि यदि देश में दंगे हो गए तो गुजरात की तरह देश में बार-बार बीजेपी की सरकार बनती रहेगी? उनके मन में उठ रही इस तरह की शंकाओं को तब और बल मिल गया जब मोदी ने खुद कहा कि यदि वे प्रधानमंत्री बनते हैं तो बद इरादे से काम नहीं करेंगे। मोदी ने यह बात घोषणा पत्र जारी करते वक्त कही। अब इसका क्या आशय निकाला जाए? यदि बुरी नीयत से कुछ करना नहीं है तो फिर कहने की जरूरत क्या है? मोदी यह वादा किससे कर रहे हैं? मोदी को ऐसा क्यों लगता है कि देश उन पर संदेह कर रहा है? मोदी का यह अहसास ही इस बात का संदेह पैदा करता है कि दाल में कुछ काला है। हो सकता है वह सांप्रदायिक हो राजनीतिक हो या फिर अपने ही साथी नेताओं को लेकर हो। क्योंकि नरेंद्र मोदी अपनी आकांक्षा पूर्ति के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं हय किसी से छिपा नहीं है। पार्टी के भीतर भी और बाहर भी। इसके चलते उनके जितने विरोधी बाहर हैं उतने ही बीजेपी के भीतर भी। तो क्या मोदी उन्हें ही संदेश दे रहे हों कि आपने मेरे प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने का चाहे जितना विरोध किया हो लेकिन मैं पहले की तरह अपने विरोधियों को अपने रास्ते से नहीं हटाऊंगा। क्या वे यह संदेश राजनीतिक दलों को देना चाहते हों ताकि अल्पमत में रहने के बाद उनकी ओर हाथ बढ़ाया जा सके। उन्हें यह बताने की कोशिश की जा रही हो कि यदि वे प्रधानमंत्री बने तो उनके खिलाफ किसी तरह की राजनीतिक साजिश नहीं की जाएगी। मोदी को लेकर यह आशंका इसलिए बढ़ी है क्योंकि मोदी अपने विरोधियों को बर्दास्त नहीं करते। यहां तक कि उन्हें अपनी आलोचना तक पसंद नहीं है। आलोचना करने वाला चाहे कोई भी क्यों न हो। गुजरात में ऐसे कई उदाहरण हैं जिनसे न केवल उनकी पार्टी के नेता बल्कि पूरा देश परिचित है। /p