नई दिल्ली। देश ने आज यानी गुरुवार 4 दिसंबर को एक प्रखर विधिवेत्ता, कुशल प्रशासक और अनुभवी जनसेवक को खो दिया। मिजोरम के पूर्व राज्यपाल, सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट और नई दिल्ली से भाजपा सांसद बांसुरी स्वराज के पिता स्वराज कौशल का 73 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। दिल्ली भाजपा ने उनके निधन की पुष्टि की। उनका अंतिम संस्कार शाम 4:30 बजे लोधी रोड श्मशान घाट पर किया जाएगा। राजनीतिक और न्यायिक जगत में उनकी मौत को एक बड़ी क्षति माना जा रहा है।

स्वराज कौशल हिमाचल प्रदेश के सोलन में 12 जुलाई 1952 को जन्मे थे। देश के प्रतिष्ठित वरिष्ठ अधिवक्ताओं में उनकी गिनती होती थी। कानून के प्रखर जानकार, दृढ़ निर्णय क्षमता वाले प्रशासक और पूर्वोत्तर में शांति बहाल करवाने वाले दूत के रूप में वे एक मजबूत पहचान रखते थे। अक्सर लोग उन्हें पूर्व विदेश मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज के पति के रूप में जानते थे लेकिन उनका व्यक्तिगत कद उससे कहीं बड़ा और विशिष्ट था।

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सिर्फ 37 वर्ष की उम्र में उन्होंने वह उपलब्धि हासिल की जो बहुत कम नेताओं को मिलती है। साल 1990 में उन्हें मिजोरम का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। जिससे वे देश के इतिहास में सबसे कम उम्र में राज्यपाल बनने वाले नेताओं में शामिल हो गए थे। वे 1990 से 1993 तक इस पद पर रहे थे। इसके बाद साल 1998 से 2004 तक वे हरियाणा से राज्यसभा सदस्य भी रहे थे। सुप्रीम कोर्ट में उनकी पहचान एक प्रभावशाली और तेज-तर्रार सीनियर एडवोकेट के रूप में थी। उन्होंने कई हाई-प्रोफाइल मुकदमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

स्वराज कौशल को उनके पदों से ज्यादा उनके योगदान के लिए याद किया जाता है। मिजो विद्रोह के गहरे संकट के समय वे उस टीम के मुख्य चेहरा थे जिसने मिजो नेशनल फ्रंट के नेता लालडेंगा के साथ संवाद स्थापित किया था। उनकी कूटनीतिक समझ और संवेदनशीलता ने बातचीत को सफल बनाया था जिससे वर्षों से जारी संघर्ष खत्म हो सका था। मिजो पीस एकॉर्ड को आकार देने में उनका योगदान ऐतिहासिक माना जाता है। पूर्वोत्तर में शांति बहाली के हीरो के रूप में उन्हें आज भी सम्मान मिलता है।

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सुषमा स्वराज और स्वराज कौशल का मिलन भी उनके जीवन की एक उल्लेखनीय कहानी है। दोनों की मुलाकात साल 1975 में आपातकाल के दौरान कोर्टरूम में हुई थी जब वे युवा वकील के रूप में जॉर्ज फर्नांडिस की लीगल डिफेंस टीम का हिस्सा थे। उस दौरान दोनों की विचारधाराएं अलग थी। सुषमा जनसंघ की विचारधारा से जुड़ी थी जबकि स्वराज कौशल समाजवादी पृष्ठभूमि से आते थे। लेकिन इसके बावजूद भी दोनों के विचार और संघर्ष का मंच उन्हें करीब ले आया।

कुछ महीनों बाद सभी सामाजिक और राजनीतिक बाधाओं को पीछे छोड़ते हुए उन्होंने 13 जुलाई 1975 को विवाह कर लिया। उन्हें जयप्रकाश नारायण से आशीर्वाद मिला। सुषमा स्वराज हमेशा कहती थीं कि उनकी सफलता के पीछे स्वराज कौशल का अटूट समर्थन और मार्गदर्शन था। 

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उनके निधन की खबर फैलते ही राजनीतिक गलियारों में गहरा दर्द छा गया। भाजपा नेता और मालवीय नगर विधायक सतीश उपाध्याय ने एक्स पर लिखा कि स्वराज कौशल ने ईमानदारी, समझदारी और बेहतरीन समर्पण के साथ देश की सेवा की। उन्होंने उनके परिवार, विशेषकर बांसुरी स्वराज के प्रति संवेदना प्रकट की। स्वराज कौशल के जाने से न सिर्फ सुषमा स्वराज की स्मृतियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बल्कि देश का एक अनुभवी, सधे हुए निर्णय लेने वाला और संवेदनशील नेतृत्व भी इस दुनिया से चला गया।