नई दिल्ली। दूध के बढ़ते दामों से त्रस्त जनता को आनेवाले दिनों में भी राहत के कोई संकेत नहीं हैं। दूध पर मलाई नहीं महंगाई बढ़ने के संकेत हैं। खबर है कि ख़राब मौसम और गेहूं की फसल पर उसके असर से चारा की कमी होने जा रही है। जिसका सीधा असर पशु आहार पर पड़ेगा। जानकार इसे अच्छा संकेत नहीं मान रहे। 


दूध की कीमतों में बढ़ोतरी के पीछे चारा की किल्लत और इससे मवेशियों की दूध देने की क्षमता पर असर का हवाला दिया जा रहा है। यह भी माना जा रहा है कि किसानों द्वारा पिछले दो वर्षों में हुए नुकसान को पाटने के लिए बढ़ाए गए दाम से भी राहत नहीं है। इसलिए दाम थमने की बजाय बढ़ने के संकेत ज़्यादा है।  मवेशियों के चारे के तौर पर उपयोग किए जाने वाले गेहूं के निर्यात में बढ़ोतरी है। गर्म हवाओं और भारी बारिश भी चारा की कमी होने का बड़ा कारण है। 

भारतीय डेयरी संघ के अध्यक्ष और अमूल के पूर्व प्रबंध निदेशक आरएस सोढ़ी ने अंग्रेज़ी अख़बार बताया कि गुजरात के इतर कई राज्यों में किसानों को उपज की लागत से कम भुगतान किया गया। किसानों ने अपने नुकसान से निपटने के लिए मवेशियों को कम खिलाया है। जिससे दूध के उत्पादन में कमी दर्ज की गई है। 

सोढ़ी के मुताबिक दिसंबर महीने में दूध की थोक बिक्री मूल्य मुद्रास्फीति 6.99 फीसदी थी जबकि जनवरी महीने में यह 8.96 फीसदी हो गई। सोढ़ी के अनुसार, दुनिया भर में अनाज की कीमतों में वृद्धि के बीच पिछले 15 महीनों में खुदरा दूध की कीमतों में 13-15% की वृद्धि हुई है, जो अब स्थिर होने लगी है।जबकि महामारी के प्रतिबंधों में ढील के बाद से मांग में सुधार हुआ है, उत्पादन बाधाओं के कारण आपूर्ति में कमी आई है।

अप्रैल-जून 2020 में भारत में कोरोना के प्रकोप और 2021 के मध्य में संक्रमण के मामलों के विस्फोट ने गतिशीलता पर अंकुश लगा दिया। इसने कृत्रिम गर्भाधान सेवाओं को बाधित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 2021 और 2022 में कम बछड़ों का जन्म कम हुआ।