दुनिया में जब-जब विश्व शांति के लिए प्रयास किए गए हैं वे लगभग असफल हुए हैं। प्रथम विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद अमरीका की पहल पर लीग ऑफ नेशन्स बना था। परंतु हुआ कुछ यूं कि जब अमरीकी राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन लीग ऑफ नेशन्स की स्थापना के बाद अमरीका पहुंचे तो देश की संसद ने उनके निर्णय को उचित नहीं माना और लीग ऑफ नेशन्स में शामिल होने से इंकार कर दिया।
लीग ऑफ नेशन्स की असफलता के बाद दुनिया में फिर अशांति फैल गई और द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ हो गया। द्वितीय विश्व युद्ध यूरोपियन प्रजातांत्रिक राष्ट्रों और जर्मनी के हिटलर के बीच हुआ। हिटलर का इरादा पूरे यूरोप पर कब्जा करने का था। जैसे एक समय नेपोलियन बोनापार्ट पूरी दुनिया पर राज करना चाहता था। जब नेपोलियन के भाई ने उनसे कहा कि चीन पर तो हमला करो तो नेपोलियन का जवाब था 'लेट द स्लीपिंग डॉग लाई'। परंतु हिटलर ने एक भी देश को नहीं छोड़ा। यूरोप के सभी देशों पर हमला किया। केवल इटली हिटलर के हमले से बचा रहा।
इसका कारण यह था कि इटली के तानाशाह मुसोलिनी ने हिटलर का साथ दिया था। द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर के विरोधियों के नेतृत्व का सच पूछा जाए तो इंग्लैंड के प्रधानमंत्री विन्सटन चर्चिल के हाथ में था। एक समय ऐसा था कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चेम्बरलेन के बारे में कहा जाता था कि वे हिटलर की चापलूसी कर रहे हैं। वे हिटलर से झगड़ा मोल नहीं लेना चाहते थे। इस भावना के चलते चेम्बरलेन को हटा दिया गया और ब्रिटेन का नेतृत्व विन्सटन चर्चिल के हाथ में सौंपा गया।
चर्चिल ने अपने देश के लोगों में उत्साह भरा। उन्होंने अपने एक भाषण में कहा "वी शैल फाइट ऑन द बीचेज, वी शैल फाइट ऑन द लैंडिंग ग्राउण्ड, वी शैल फाइट इन द फील्ड एंड द स्ट्रीट्स, वी शैल फाइट इन द हिल्स, वी शैल नेवर सरेंडर"। विन्सटन चर्चिल का नेतृत्व सफल रहा और अंततः हिटलर की हार हुई। हिटलर ने पूरी दुनिया में तबाही मचा दी थी।
मेरी राय में यदि हिटलर सोवियत यूनियन पर हमला नहीं करता तो उसे हराना बहुत मुश्किल होता। जब नेपोलियन रूस से हार कर आया तब मीडिया ने उससे पूछा कि आपकी हार का कारण क्या है? उसका जवाब था मेजर जनरल फ्रॉस्ट । फ्रॉस्ट बाईट एक बीमारी होती है जो ठंडे इलाकों में पैरों को कमजोर कर देती है और व्यक्ति अशक्त हो जाता है। रूस के नागरिकों की अपने आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता ने हिटलर को मुंह की खाने के लिए मजबूर किया।
हिटलर हार गया। अब दुनिया में शांति कैसे रहे इसकी तलाश होने लगी और लंबे चिंतन के बाद यूनाईटेड नेशन्स अर्थात संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई। लीग ऑफ नेशन्स का मुख्यालय जिनेवा में था। यूनाईटेड नेशन्स का मुख्यालय अमरीका के न्यूयार्क में है। अमरीका ने यूनाईटेड नेशन्स को पूरा समर्थन दिया। उसे सफल बनाने में अपनी पूरी शक्ति लगा दी। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र संघ का 70 प्रतिशत खर्च अमरीका करता था। कुछ दिनों तक यूनाईटेड नेशन्स ने दुनिया में शांति कायम करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की परंतु पर धीरे-धीरे संयुक्त राष्ट्र संघ कमजोर होता गया।
संयुक्त राष्ट्र संघ का ढांचा बहुत ही अच्छा था। संयुक्त राष्ट्र संघ ने सिक्युरिटी कांउसिल (सुरक्षा परिषद) का निर्माण किया। परिषद के संबंध में यह ऐलान किया गया कि वो 24 घंटे सेशन में रहेगी। दुनिया में कहीं भी यदि अशांति के लक्षण नज़र आएंगे तो सिक्युरिटी काउंसिल अपनी बैठक कर समस्या से निपटने के लिए उपाय कर सकती है। एक और फैसला किया गया कि सिक्युरिटी काउंसिल के जो सदस्य होंगे उनमें से 5 स्थायी होंगे। ये पांच स्थायी सदस्य थे रूस, ब्रिटेन, अमरीका, फ्रांस और चीन। उस समय चीन पर चियांग काई-शेक का राज था। इसलिए चीन को सदस्य बनाया गया। कुछ दिन बाद चियांग काई-शेक का तख्ता पलट गया और बाद में कम्युनिस्ट चीन को इसका सदस्य बनाया गया।
इस समय संयुक्त राष्ट्र संघ पूरी तरह से कमजोर हो गया है। सुरक्षा परिषद अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पा रही है। इस समय अनेक देश अपने छोटे-छोटे हितों के लिए युद्ध पर आमादा हैं। इज़रायल ने अनेक मोर्चे खोल रखे हैं। फिलिस्तीन के लाखों नागरिक भुखमरी की कगार पर हैं। एक समय ऐसा था जब सेनाओं द्वारा स्कूलों और अस्पतालों को निशाना नहीं बनाया जाता था। इस सिद्धांत का उल्लंघन हो रहा है। यहां तक कि इजरायल राहत सामग्री भी गाजा पट्टी तक पहुंचने नहीं दे रहा है। अमरीका का क्या रवैया है, यह समझना बहुत मुश्किल है। मगर यह अफसोसनाक है कि जिस संस्था को विश्व में शांति की स्थापना के लिए बनाया गया था वह पूरी तरह कमज़ोर नजर आ रही है।