भोपाल। मध्यप्रदेश में इस वर्ष अबतक सामान्य से 6.8% अधिक बारिश हुई है वहीं किसानों ने भी पिछले वर्ष की तुलना में 6.3% अधिक खरीफ फसल बोई है। इस वर्ष प्रदेश के किसानों द्वारा रिकॉर्ड 1,095.38 लाख हेक्टेयर में बंपर खरीफ फसलों की बुवाई की है। बावजूद इसके इस बार खरीफ अनाजों की उत्पादन में पिछले वर्ष की तुलना में भयंकर गिरावट दर्ज होने की आशंका है। 

भारत के सबसे बड़े सोयाबीन और उड़द उत्पादक राज्य मध्यप्रदेश के किसान इस बार भयंकर मुसीबत में फंस गए हैं। दरअसल, मध्यप्रदेश के किसान आमतौर पर जून के अंतिम सप्ताह अथवा जुलाई के पहले सप्ताह में खरीफ फसल की बुआई करते हैं। इस वर्ष चक्रवाती तूफान निसर्ग के कारण जून के शुरुआती पखवाड़े में ही जमकर बारिश हुई। इस वजह से प्रदेश के ज्यादातर किसानों ने 15 जून तक फसल की बुआई कर दी थी।

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इस दौरान शुरुआती फसल तो नुकसान होने से बच गई लेकिन जुलाई का महीना किसानों के लिए बुरा रहा। जुलाई में लगातार एक महीने बारिश न होने की वजह से प्रदेश में सूखे सा हालात उत्पन्न हो गई। 10 जुलाई के बाद प्रदेश में सोयाबीन का फसल बुरी तरह सूखे के चपेट में आ गया। इसके बाद अगले महीने यानी अगस्त के अंत में प्रदेश में भयंकर बाढ़ ने किसानों की बची-खुची उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया। हालात यह है कि अब झाड़ी और फली दोनों सड़ गई है। बता दें कि उड़द की फसल अमूनन 70-75 दिन वहीं सोयाबीन 100 दिनों में परिपक्व होती है। ऐसे में आखिरी बारिश ने लगभग तैयार हो चुके फसलों को बर्बाद कर दिया है।

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बाढ़ से नुकसान का आंकलन करने पहुंचा केंद्रीय दल

इसी बीच गुरुवार (10 सितंबर) को बाढ़ से प्रदेश में हुए नुकसानों का आकलन करने के लिए केंद्रीय अध्ययन दल आया है। यह दल 3 दिनों तक मध्यप्रदेश में रहेगा और पूरे प्रदेश के बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा कर 12 सितंबर को वापस दिल्ली लौट जाएगा। इस दल में कृषि समेत वित्त, जल-संसाधन, सड़क परिवहन और ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधिकारी शामिल हैं जो क्षति का आंकलन रिपोर्ट तैयार कर केंद्र को देंगे। अब देखना यह होगा कि क्षति के आंकलन के बाद सरकार अब किसानों के जख्मों पर किस हद तक मरहम लगाने का काम करती है।