नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार ने किसानों और तमाम राजनीतिक दलों के विरोध को नजर अंदाज करते हुए कृषि विधेयकों को पारित करवा लिया है। आरोप है कि केंद्र सरकार ने बड़े उद्योगपतियों को फ़ायदा पहुंचाने के लिए किसानों के हितों को दांव पर लगा दिया है। कृषि को ताकत देने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य को खत्म किया जा रहा है। कृषि राज्य का विषय है और इन विधेयकों के जरिए केंद्र सरकार ने राज्य के संवैधानिक अधिकारों का हनन किया है। इन तमाम आरोपों के बाद भी मोदी सरकार ने न किसानों से बात की और न ही राज्य सरकारों से विमर्श किया है। राज्यसभा में भी बिल को कमेटी के पास भेज देने की विपक्ष के सांसदों की मांग को अनसुना किया गया। केंद्र के इस रवैए के ख़िलाफ पंजाब के बाद अब केरल सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है। छत्तीसगढ़ भी कोर्ट जाने की तैयारी में है। 



मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कानूनी राय लेने के बाद कैबिनेट बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा की गई। बैठक में कहा गया कि केंद्र सरकार का यह फैसला संघीय ढांचे के खिलाफ है। 'कृषि संविधान की सातवीं अनुसूची में हैं। इन विधेयकों को लाने से पहले एक भी राज्य से संपर्क नहीं किया गया। किसान संगठनों को भी अंधेरे में रखा गया



केरल के कृषि मंत्री वीसी सुनील कुमार ने कहा है कि देश भर में लाखों किसान दयनीय जीवन जी रहे हैं और कई आत्महत्या कर चुके हैं। महामारी की चपेट में अब मोदी सरकार सुधारों के नाम पर कई नीतियां लेकर आई है। ये केवल बड़े फार्मिंग कॉर्पोरेट्स की मदद करेंगे। इसलिए पिनरई विजयन के नेतृत्व वाली केरल सरकार भी विधान सभा का एक विशेष सत्र बुला कर, विपक्षी कांग्रेस पार्टी के सहयोग से सर्वानुमति से तीनों विधेयकों के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित करने की तैयारी में है। 



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पंजाब सरकार पहले ही कोर्ट जाने का निर्णय कर चुकी है। कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार में वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने कृषि बिल को लेकर मीडिया से चर्चा में कहा है कि कि संसद में पास किये गए ऑर्डिनेंस का मुख्य मकसद किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के सुरक्षा कवच से वंचित करना है। यह कानून देश के अन्नदाता को बर्बाद कर देगा। इस बिल के खिलाफ पंजाब सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी।



छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी विधेयकों को किसान विरोधी बताया है। सीएम बघेल ने कहा है कि इससे मंडी का ढांचा खत्म होगा, जो किसानों और व्यापारियों दोनों के लिए फायदेमंद नहीं है। अधिकांश कृषक लघु सीमांत है, इससे उनका शोषण बढ़ेगा, उनमें इतनी क्षमता नहीं कि राज्य के बाहर जाकर उपज बेच सके, किसानों को उनकी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा। कुछ राज्य इस बिल के खिलाफ कोर्ट जाने की तैयारी में है। छत्तीसगढ़ सरकार भी इस बारे में विधि विशेषज्ञों से राय ले कर कदम उठाया है। 





इतना विरोध फिर भी किसानों से बात नहीं 



सबसे अचरज की बात यह है कि 25 सितंबर को देश भर के किसानों ने सड़क पर उतर कर प्रदर्शन किया है। पंजाब हरियाणा के किसानों सहित देश बाहर के किसान लगभग छह माह से इन अध्यादेशों और विधेयकों का विरोध कर रहे हैं मगर केंद्र सरकार ने किसानों से बात तक नहीं की। न ही उनकी शंकाओं का समाधान करने का प्रयास किया। यह केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाता है। कृषि मामलों के जानकार रमनदीप सिंह मान ने ट्वीट किया है कि पंजाब के बाद अब केरल सरकार भी कृषि विधेयकों के विरोध में कोर्ट में जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार भी हाई कोर्ट जा चुकी है। मुझे यह समझ नहीं आता है कि ऐसा क्या है जो केंद्र सरकार को किसानों से बात करने से रोक रहा है?