कृषि बिल का विरोध:  5 सवालों में जानिए क्या है पूरा मामला

Agriculture Reform Ordinances: मोदी सरकार चौतरफा विरोध को दरकिनार कर तीनों कृषि विधेयक संसद से पारित करवा चुकी है। जानिए क्या है विधेयक और क्यों हो रहा है उनका विरोध

Updated: Sep 28, 2020, 02:29 AM IST

Photo Courtesy: Indian Express
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मोदी सरकार ने कृषि से जुड़े तीन विधेयक लोकसभा में पारित करवा लिए हैं। लेकिन देश भर में किसान और विपक्षी दल इनका विरोध कर रहे हैं। सरकार की सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल भी बिल के खिलाफ मोदी सरकार से इस्तीफा दे चुकी है। जानिए क्या है इन बिलों से जुड़ा पूरा विवाद :

सवाल 1 – मोदी सरकार के किन कृषि विधेयकों का विरोध हो रहा है? 

पूरा विवाद मोदी सरकार के लाए 3 नए कृषि विधेयकों की वजह से हो रहा है। कृषि क्षेत्र से संबंधित ये तीन विधेयक हैं – 1. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक और 3. कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक। मोदी सरकार ने संसद में पेश करने से पहले इन विधेयकों को अध्यादेश लाकर जून 2020 में ही लागू कर दिया था। इन्हीं अध्यादेशों को मोदी सरकार ने संसद के मानसून सत्र में विधेयक के रूप में पारित करवा लिया।

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सवाल 2 – कृषि विधेयकों के बारे में सरकार का क्या कहना है? 

सरकार का दावा है कि तीनों विधेयक दरअसल किसानों के हक में हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर लिखा है कि संसद में ऐतिहासिक कृषि सुधार विधेयकों का पारित होना देश के किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है। ये विधेयक सही मायने में किसानों को बिचौलियों और तमाम अवरोधों से मुक्त करेंगे। इससे किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए नए-नए अवसर मिलेंगे, जिससे उनका मुनाफा बढ़ेगा। इससे हमारे कृषि क्षेत्र को जहां आधुनिक टेक्नोलॉजी का लाभ मिलेगा, वहीं अन्नदाता सशक्त होंगे। पीएम मोदी ने ट्विटर पर ये भी लिखा है कि किसानों को भ्रमित करने में बहुत सारी शक्तियां लगी हुई हैं। मैं अपने किसान भाइयों और बहनों को आश्वस्त करता हूं कि MSP और सरकारी खरीद की व्यवस्था बनी रहेगी। ये विधेयक वास्तव में किसानों को कई और विकल्प प्रदान कर उन्हें सही मायने में सशक्त करने वाले हैं।

सवाल 3 – केंद्र सरकार के कृषि विधेयकों का विरोध कौन-कौन कर रहा है? 

सरकार की सफाई से विपक्ष और देश भर के ज्यादातर किसान संगठन सहमत नहीं है। ये सभी विधेयकों का कड़ा विरोध कर रहे हैं। राज्यसभा में तो इन बिलों के खिलाफ हुए हंगामे के दौरान विपक्ष के 8 सांसदों को निलंबित तक कर दिया गया। जिसके बाद पूरे विपक्ष ने संसद के मानसूत्र सत्र की बाकी बची कार्यवाही का बहिष्कार कर दिया। विपक्ष ही नहीं, सरकार का सहयोगी शिरोमणि अकाली दल  और संघ परिवार से जुड़े किसान संगठन भी इन बिलों का विरोध कर रहे हैं। शिरोमणि अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर बादल कृषि बिल के विरोध में सरकार से इस्तीफा दे चुकी हैं। हालांकि शिरोमणि अकाली दल अब भी मोदी सरकार को बाहर से समर्थन दे रहा है। संसद में बिल का समर्थन कर चुका जनता दल यूनाइटेड भी अब कह रहा है कि केंद्र सरकार को किसानों की मांग मान लेनी चाहिए और एमएसपी से कम कीमत देने को दंडनीय अपराध करार देने के लिए कानून बनाना चाहिए।

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सवाल 4 – कृषि विधेयकों के विरोधी क्या आरोप लगा रहे हैं? 

कृषि विधेयकों का विरोध कर रहे जानकारों की राय में तीनों विधेयक देश की खाद्य सुरक्षा प्रणाली के तीन महत्वपूर्ण स्तंभों को चुनौती देते हैं। ये तीन स्तंभ हैं – 1. न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी, 2. सार्वजनिक खरीद और 3. सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस। किसान संगठनों और राजनीतिक दलों का आरोप है कि इन विधेयकों के कानून बन जाने पर किसानों को MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ नहीं मिल पाएगा। क्योंकि इन विधेयकों में कहीं भी इस बात की गारंटी नहीं दी गई है कि किसानों को जो कीमत मिलेगी वो MSP से कम नहीं होगी। 

आरोप यह भी है कि नए विधेयकों के लागू हो जाने पर मौजूदा मंडी व्यवस्था का खात्मा हो जाएगा, जिससे न सिर्फ आम किसानों की मुश्किलें बढ़ेंगी, बल्कि मंडियों के आढ़ती और ढुलाई के काम में लगे मज़दूर भी तबाह हो जाएंगे। साथ ही कृषि उत्पादों के भंडारण की अधिकतम सीमा समाप्त होने से जमाखोरी को बढ़ावा मिलेगा। कुछ बड़ी कंपनियां अपने मुनाफे के लिए फसलों की कीमतों से मनमाना खिलवाड़ करके मालामाल हो जाएंगी और किसानों को कंगाल कर देंगी।

सवाल 5 – कृषि विधेयकों को संघीय ढांचे के खिलाफ क्यों बताया जा रहा है? 

विपक्ष का आरोप है कि मोदी सरकार ने तीनों विधेयकों को पास कराने से पहले इस बारे में राज्यों के साथ कोई विचार-विमर्श नहीं किया। जबकि हमारे संवैधानिक ढांचे में कृषि को स्टेट लिस्ट में रखा गया है, यानी यह राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आने वाला विषय है। ऐसे में राज्यों की सहमति के बिना केंद्र सरकार का इस बारे में विधेयक पारित कराना राज्यों के अधिकार क्षेत्र में गैर-वाजिब हस्तक्षेप और देश के संघीय ढांचे के लिए बड़ा झटका है।

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