एक ओर जहां कोरोना वायरस महामारी ने सारी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है, तो वही दूसरी ओर इस महामारी ने भारतीय छात्रों के विदेश में पढ़ाई के सपने के ऊपर अनिश्चितता की चादर बिखेर दी है। लगभग 7.5 लाख से ऊपर छात्रों के साथ विश्वभर के कॉलेज, यूनिवर्सिटीज में भारतीयों की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है। यदि कोरोना महामारी से दुनिया जूझ नहीं रही होती तो इस वर्ष भी लाखों भारतीय छात्र पढ़ाई के लिए विदेश रवाना हो रहे होते। काकारेली साइमंड्स की एक रिपोर्ट के अनुसार महामारी ने 48.46 प्रतिशत छात्रों के विदेश में पढ़ाई के फैसले पर प्रहार किया है।

सितंबर में शुरू होने वाला नया सत्र सामने खड़ा है और छात्र अबतक कोई फैसला नहीं ले पाए हैं। बढ़ी हुई फीसों, महामारी की वजह से घटती हुई उनके मां–बाप की आमदनी, सेहत का ख्याल और अन्य देशों की सतर्कता ने इन्हें असमंजस में डाल रखा है। विश्वविद्यालयों ने भी महामारी से उपजे खतरों का आंकलन और बाहरी छात्रों के लिए पढ़ाई की व्यवस्था को लेकर विचार करना शुरू कर दिया है।

यूनाइटेड किंगडम के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने 2021 तक सभी कक्षाएं ऑनलाइन चलाने का फैसला लिया है। कनाडा की ब्रिटिश कोलंबिया और मैकगिल विश्वविद्यालयों ने भी अगला सत्र ऑनलाइन कर दिया है। अमरीका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने तो अपने यहां छात्रों को एडमिशन स्थगित तक करने का विकल्प दे दिया है। वर्जीनिया विश्वविद्यालय का डारडन बिजनेस स्कूल अंतरराष्ट्रीय छात्रों को एडमिशन के लिए जनवरी तक की मोहलत दे रहा है। वहीं कई अन्य विश्वविद्यालय लाइव और ऑनलाइन कक्षाओं को मिश्रित कर के चलाने की तैयारियां कर रहे हैं।

दक्षिण भारत के लिए ब्रिटिश काउंसिल की डायरेक्टर जनक पुष्पनाथन कहती हैं कि ब्रिटेन फिलहाल संभावनाओं और हालातों का आकलन कर रहा है। तकनीक ने दुनिया को स्क्रीन के पीछे से की जाने वाली बातचीत के बराबर लाकर खड़ा कर दिया है। स्थितियां सुधारने तक शिक्षा उद्योग भी इसका भरपूर उपयोग करना चाह रहा है।

ऑनलाइन कक्षाओं से ज़्यादातर भारतीय छात्र खुश नहीं

हालांकि ऑनलाइन कक्षाओं से ज़्यादातर भारतीय छात्र खुश नहीं दिखाई दे रहे। यूके विश्वविद्यालय में मीडिया की पढ़ाई के लिए सेलेक्ट होने वाली एक छात्रा का कहना है कि विदेश में पढ़ाई केवल ऑनलाइन लेक्चर के बारे में नहीं होती। वह एक पुष्टिकारक अनुभव चाहती है जो कैंपस में ही मिल सकता है। उनका कहना है कि वो 2–3 साल का ब्रेक लेकर परिस्थितियां सुधरने का इंतज़ार करेंगी।

ज़्यादातर छात्रा विदेश में पढ़ाई कर वही नौकरियों की संभावनाएं तलाशते है। छात्र वीजा उन्हें इस चीज़ के लिए प्रमुख्य प्रदान करता है। इसी वजह से ज़्यादातर भारतीय छात्र विदेश में पढ़ाई के लिए STEM (Science, Technology, Engineering, Mathematics) विषयों का चुनाव करता है क्योंकि इन विषयों के साथ विदेश में नौकरी का वीसा मिलना आसान हो जाता है। अमरीका में साल 2011 में 90 प्रतिशत वीसा का आवेदन इन्हीं विषयों की नौकरी के लिए रहा है।

ऐसी स्थितियों के बावजूद कई छात्रा अपना साल बर्बाद करने के पक्ष में नहीं है। मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रहे एक पिता ने बताया कि उनकी बेटी ने टेक्सास विश्वविद्यालय में जाने का फैसला किया है और उनका पूरा परिवार यूएस शिफ्ट हो रहा है। उन्होंने बताया कि महामारी से पहले उनका अनुमानित लागत बेहद काम था, लेकिन इसके मार की वजह से बजट बिगड़ जाएगा। बावजूद इसके वो अपनी बेटी के साल बर्बाद करने के सख्त खिलाफ हैं।

हालांकि ज़्यादातर अन्य छात्र अब भारत की ही प्राइवेट कॉलेजों में पढ़ाई की संभावनाएं तलाश रहे हैं। ऐसे वक़्त में फंड्स विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करने के सपने का सबसे बड़ा खलनायक बन कर रह गया है।