नई दिल्ली। गहराते आर्थिक संकट और हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने शुक्रवार देर रात देश में सार्वजनिक आपातकाल की घोषणा की है। 2.2 करोड़ लोगों की आबादी वाले इस द्वीपीय देश में आर्थिक संकट से जिस तरह से राष्ट्रपति राजपक्षे निपट रहे थे, उससे लोगों में गुस्सा बढ़ रहा था और पूरे देश में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। गुरुवार देर रात लोगों का विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया। सैकड़ों प्रदर्शनकारी कई घंटों तक पुलिस से भिड़ते रहे। 

ईंधन और खाद्य वस्तुओं की किल्ल्त ने लोगों को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया। विदेशी मुद्रा की भारी कमी के कारण सरकार ईंधन और अन्य जरूरी वस्तुओं का आयात नहीं कर पा रही है। ईंधन की कमी के कारण श्रीलंका में 13-13 घंटे तक बिजली की कटौती हो रही है। इसके चलते देश में विरोध प्रदर्शन पिछले दो दिनों से तेज हो गए थे। अब तक की हिंसा में श्रीलंका में 10 लोग घायल हुए हैं। देश में हालात इतने बिगड़ गए हैं कि हिंसा पर काबू पाने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स को बुलाना पड़ा। 
गुरुवार को सैकड़ों की संख्या में लोगों ने राष्ट्रपति के आवास के बाहर प्रदर्शन कर उनके इस्तीफे की मांग की थी। श्रीलंका के राष्ट्रपति के आवास के

बाहर विरोध प्रदर्शन के हिंसक होने के मामले में 54 लोगों को हिरासत में लिया गया है। इस प्रदर्शन के एक दिन बाद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने देश में इमरजेंसी की घोषणा की है। शुक्रवार देर रात राष्ट्रपति राजपक्षे ने सार्वजनिक सुरक्षा अध्यादेश की धाराएं देश में लागू की हैं, जिसके तहत उन्हें देश में कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए असीमित अधिकार मिल गए हैं।  आपातकालीन नियमों के तहत, राष्ट्रपति किसी भी व्यक्ति की हिरासत को अधिकृत कर सकता है, किसी भी संपत्ति पर कब्जा कर सकता है और किसी भी परिसर की तलाशी लेने की अनुमति दे सकता है। यही नहीं देश में इमरजेंसी लागू रहने के दौरान वह किसी भी कानून को बदल या निलंबित भी कर सकता है।