मॉस्को। भारत और चीन सीमा पर लंबे समय से चल रहे गतिरोध के बीच रूस के विदेश मंत्री सेर्गई लावरोव ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने दावा किया है कि पश्चिमी देश भारत को चीन के खिलाफ अपने गेम में फंसाने की साजिश रच रहे हैं। लावरोव ने पश्चिमी देशों पर यह आरोप भी लगाया कि वे दशकों से रूस और भारत के करीबी रिश्तों को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।

रूसी विदेश मंत्री ने यह बयान रूस के सरकारी थिंक टैंक रशियन अफेयर्स काउंसिल की बैठक के दौरान दिया। उन्होंने ने चीन के बढ़ते प्रभाव को काउंटर करने की अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति को भी निशाने पर लिया। अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति में जापान, ऑस्ट्रेलिया के अलावा भारत की भी अहम भूमिका है। ट्रंप प्रशासन ने लद्दाख में हुए सैन्य संघर्ष के बाद कई बार चीन के 'विस्तारवादी रुख' की आलोचना की है और भारत के साथ मजबूत साझेदारी पर ज़ोर दिया है।

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रूस के विदेश मंत्री ने पश्चिमी ताकतों की आलोचना करते हुए कहा कि पश्चिमी देशों को लगता है सिर्फ उनकी स्थिति और उनकी कोशिशें ही सही हो सकती हैं। उन्होंने कहा, 'रूस तमाम मतभेदों के बावजूद वैश्विक संगठनों के दायरे में रहकर काम करना चाहता है। पश्चिमी देश एकध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था कायम करना चाहते हैं लेकिन रूस और चीन जैसे देश कभी भी उसके पिछलग्गू नहीं बनेंगे।

लावरोव ने आगे कहा, 'भारत इस वक्त पश्चिमी देशों की निरंतर आक्रामकता और कुटिल नीति का एक जरिया  बन गया है क्योंकि वो उसे अपने चीन विरोधी खेल में शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं। कथित क्वाड के जरिए हिंद-प्रशांत रणनीति को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके साथ ही पश्चिम भारत के साथ हमारे करीबी रिश्तों को  कम करके आंकने का प्रयास भी कर रहा है।' 

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उन्होंने दावा किया कि मिसाइल टेक्नॉलजी कंट्रोल को लेकर भारत पर अमेरिका के दबाव का भी यही मकसद है। लावरोव के इस बयान को एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की खरीद के लिए भारत-रूस के बीच हुई 5.4 अरब डॉलर की डील से जोड़कर देखा जा रहा है। अमेरिका इस डील का हमेशा से विरोध करता रहा है और ट्रम्प प्रशासन ने इस डील को रद्द न करने पर भारत के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की धमकी तक दे डाली थी।

खबर लिखे जाने तक लावरोव के इस बयान पर भारत की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी। गौरतलब है कि रूस और भारत में ऐतिहासिक रूप से अच्छे संबंध रहे हैं। दोनों देशों के बीच इतने गहरे संबंध रहे हैं कि अमेरिका तक को आपत्ति रही है। भारत की आजादी के बाद प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी विदेश नीति में रूस को अहम जगह दी थी जिसका फायदा भारत को कई मौकों पर मिला। भारत के औद्योगिक और तकनीकी विकास में रूस हमेशा से एक बेहद अहम सहयोगी और मददगार रहा है।

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सोवियत संघ के दौर में तो दोनों देशों के बेहद करीबी संबंध रहे ही, उसके बाद भी भारतीय विदेश और सामरिक नीति में रूस की बेहद खास जगह रही है। विदेश मामलों के जानकारों का मानना है कि भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद इस रिश्ते में खटास आई है। अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती नज़दीकियों को भी इसकी एक वजह माना जाता है।