ऐसा हो नहीं सकता कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मध्यप्रदेश यात्रा हो और कोई राजनीतिक संदेश न मिले। इस बार भी ऐसा ही हुआ। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की ताजा ग्वालियर यात्रा से कहीं दीप जले,कहीं दिल जैसी नौबत बन गई है। गृहमंत्री अमित शाह ने मंच से सीएम डॉ. मोहन यादव के दो साल के कामकाज को श्रेष्ठ बताया। मोहन सरकार को नंबर देने के लिए उन्होंने पूर्व सरकारों से तुलना का पैमाना अपनाया। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि "मोहन यादव, शिवराज सिंह चौहान से भी ज्यादा ऊर्जा के साथ राज्य को विकसित बनाने में जुटे हैं।" इस कहे के अपने अर्थ हैं। शिवराज की ऊर्जा और उनके काम को अब तक श्रेष्ठ बताया जाता रहा है लेकिन अब जब अमित शाह कह रहे हैं कि मोहन यादव ज्यादा ऊर्जा के साथ काम कर रहे हैं तो यही पार्टी का सच है। इस एक पंक्ति से बीजेपी की दिशा और सोच साफ-साफ व्यक्त हो गई है।
गृहमंत्री अमित शाह के इस एक वाक्य ने मोहन यादव विरोधियों की बोलती बंद कर दी है तो एक और जेश्चर ने पूर्व गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के समर्थकों के चेहरे खिला दिए हैं। हुआ यूं कि ग्वालियर से जाते समय गृहमंत्री अमित शाह ने गाड़ी रूकवा कर पूर्व मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा को बुलवाया और उनसे बात की। बात क्या हुई यह तो वे दोनों नेता जाने लेकिन केंद्रीय गृहमंत्री के इस जेश्चर से नरोत्तम समर्थकों की बांछें खिल गईं। इस मुलाकात के बाद नरोत्तम मिश्रा भी अपने पुराने शायराना अंदाज में नजर आए। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में नरोत्तम मिश्रा तंज कसते हुए दिखाई दे हैं, “वो समुंदर खंगालने में लगे हुए हैं, हमारी कमियां निकालने में लगे हुए हैं। जिनकी चड्डियां तक फटी हुई हैं, वो हमारी टोपियां उछालने में लगे हुए हैं।”
गुजरे दो सालों से समर्थक इस उम्मीद में हैं कि नरोत्तम मिश्रा को जल्द ही कोई बड़ी भूमिका दी जाएगी लेकिन हर बार वे और नजरअंदाज कर दिए जाते हैं। कई बार केंद्रीय नेतृत्व के ऐसे ही जेश्चर से उम्मीद बंधी भी लेकिन प्रार्थना पूरी नहीं हुई। इस बार जब गृहमंत्री अमित शाह ने नरोत्तम मिश्रा को अलग से चिह्नित किया है तो माना जा रहा है कि वे केंद्रीय नेतृत्व की निगाह में हैं। बस, आशंका यही है कि इस बार भी बीते दिनों जैसा न हो कि पहचाना तो जाए मगर काम न दिया जाए।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की इस यात्रा के बाद एक और जिस नेता के भविष्य को लेकर चर्चाएं गर्म हैं वे हैं नगरीय विकास और प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय। अमित शाह ने के करीबी कहे जाने वाले कैलाश विजयवर्गीय बीते कुछ दिनों से अपने बयानों में आक्रामक हैं। यहां तक सरकार और पार्टी की नीतियों पर भी उन्होंने साफ-साफ बातें कही हैं। माना जा रहा है कि उनके कद को राज्य सरकार पचा नहीं पा रही है। उधर, पश्चिम बंगाल में चुनावी तैयारियों जोरों पर हैं। चर्चाएं हैं कि कैलाश विजयवर्गीय का मध्य प्रदेश से एक बार फिर बाहर जाना तय है। संभव है कि उन्हें केंद्रीय संगठन में पद दे कर फिर से पश्चिम बंगाल का प्रभार दे दिया जाए। यह संकेत कैलाश विजयवर्गीय की दिल्ली यात्रा से भी मिला। कैलाश विजयवर्गीय प्रदेश के ऐसे पहले नेताओं में शुमार है जिन्होंने बीजेपी के नवनियुक्त कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन से मुलाकात की है।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की एमपी यात्रा ने दो वरिष्ठ नेताओं के भविष्य को लेकर संकेत तो दिए हैं, अब इन संकेतों के परिणाम में बदलने का इंतजार है।
खेल के खेल में बीजेपी सांसदों को मिल रही गालियां
बीजेपी ने सांसदों को अपने क्षेत्र के युवाओं से जोड़े रखने के लिए खेल महोत्सव करवाने के निर्देश दिए लेकिन इस बार प्रदेश में अव्यवस्था और अनियमितता के आरोपों के कारण सांसद खेल महोत्सव खुद विवाद का मैदान बन गए। खरगोन, छतरपुर, राजगढ़, छिंदवाड़ा, रीवा, जबलपुर आदि जगहों से बड़े विवाद के आरोप सामने आए हैं। खिलाडि़यों का आरोप है कि जब उन्होंने विरोध किया जो बीजेपी नेताओं व कार्यकर्ताओं द्वारा मारपीट की गई।
खरगोन में सांसद खेल महोत्सव के समापन पर खिलाड़ियों ने पुरस्कार राशि न मिलने पर विरोध जताया और प्रमाण पत्र फाड़ दिए। राज्यसभा सांसद सुमेरसिंह सोलंकी को खिलाड़ियों ने घेरकर विरोध प्रदर्शन किया। खिलाड़ियों का आरोप है कि सांसद के ही क्षेत्र बड़वानी में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले खिलाड़ियों को नगद पुरस्कार दिए गए, जबकि खरगोन में ऐसा नहीं किया गया। प्रतियोगिता के दौरान खाने-पीने की समुचित व्यवस्था न होने के भी आरोप लगाए। सांसद सोलंकी ने कहा कि उनके पास नगद पुरस्कार देने के लिए कोई फंड नहीं है। इस पर खिलाडि़यों ने कहा कि जब पैसा नहीं था तो प्रतियोगिता क्यों करवाई?
राजगढ़ में सांसद खेल महोत्सव के समापन कार्यक्रम के दौरान खिलाड़ियों ने सांसद रोडमल नागर को घेरकर विरोध जताया। नरसिंहगढ़, बोड़ा, करनवास, छापीहेड़ा और ब्यावरा सहित अन्य क्षेत्रों से आए खिलाड़ियों ने आरोप लगाया कि यह खेल महोत्सव खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के बजाय केवल औपचारिकता बनकर रह गया है। उन्हें न तो खेल किट उपलब्ध कराई गई और न ही सम्मानजनक मेडल व ट्रॉफी दी गईं। वर्षों से नकद पुरस्कार भी नहीं दिए जा रहे हैं, जिससे खिलाड़ियों का मनोबल टूट रहा है। कबड्डी का 40 मिनट का मैच महज 4 मिनट में समाप्त कर दिया गया।
जबलपुर में सांसद खेल महोत्सव खत्म होते ही सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ। वीडियो में खिलाड़ी दावा कर रहे हैं कि प्रतियोगिता से पहले विजेताओं को 11 हजार और 21 हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की गई थी, लेकिन समापन समारोह में उन्हें महज 300 से 1000 रुपए के लिफाफे थमा दिए गए। खिलाड़ियों का कहना है कि जब उन्होंने इस पर आपत्ति जताई तो आयोजन से जुड़े अधिकारियों ने न केवल जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया, बल्कि करियर खराब करने की धमकी तक दे डाली।
रीवा में भी खिलाड़ियों का आरोप है कि उन्हें घोषित इनाम की राशि नहीं दी गई। गुस्साए खिलाड़ियों ने रीवा सांसद के पुत्र कबीर मिश्रा की कार रोककर विरोध किया, जिसके बाद मौके पर हंगामा और कथित मारपीट का मामला सामने आया। खिलाड़ियों का आरोप है कि इनाम की राशि मांगने पर मौके पर मौजूद कुछ अधिकारी और भाजपा कार्यकर्ता भड़क गए और उनके साथ मारपीट की गई। छतरपुर में प्राचार्य के साथ अभद्रता के आरोप में तीन बीजेपी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की गई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन 17 सितंबर से लेकर अटलजी के जन्मदिन 25 दिसंबर के बीच हुए सांसद खेल महोत्सव अनियमितता के मैदान साबित हुए हैं। यह केवल आयोजन ही नहीं बल्कि खिलाडि़यों के मान-सम्मान का मुद्दा भी बन गया है।
तकलीफ तो यही है कि सीएम बन कर गिरा दी सीढ़ी
मध्य प्रदेश में छात्र राजनीति मुख्य राजनीति की सीढ़ी मानी जाती रही है। बीजेपी सरकार के दो मुख्यमंत्री मोहन यादव और वर्तमान केंद्रीय कृषिमंत्री शिवराज सिंह चौहान छात्र राजनीति की ही देन है लेकिन बीजेपी के छात्र संगठन एबीवीपी की पीड़ा यह है कि दोनों ही नेताओं के कार्यकाल में छात्रसंघ चुनाव बंद है। बार-बार के आश्वासन के बाद भी चुनाव शुरू करवाने की घोषणा नहीं हो पा रही है।
रतलाम में हुए प्रांतीय अधिवेशन में भी यही विषय चर्चा में बना रहा। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के मालवा प्रांत मंत्री दर्शन कहार ने कहा कि प्रदेश में 2017 के बाद से कॉलेजों में छात्र संघ के चुनाव नहीं हुए हैं। हमारा मानना है कि छात्र संघ चुनाव होना चाहिए जिससे छात्र राजनीति से मध्य प्रदेश को बड़ा नेतृत्व मिल सके। मध्य प्रदेश सरकार चुनाव करवाने से डर रही है। वह नहीं चाहती है कि छात्र राजनीति से कोई बड़ा चेहरा मध्य प्रदेश में निकलकर आए। यही नहीं मध्य प्रदेश सरकार को अंदेशा भी है कि छात्र संघ चुनाव से कॉलेजों में अराजकता और हिंसा हो सकती है।
इस बयान का तो यही अर्थ है कि छात्र राजनीति से नेता बन कर वरिष्ठों ने सीढ़ी गिरा दी ताकि कोई और छात्र आगे चल कर मुखिया के पद तक न पहुंच सके। 58 वें मालवा प्रांत अधिवेशन के बाद अब फिर एबीवीपी सरकार पर दबाव डाल रही है। संगठन का कहना है कि सरकार को हमने कई बार मौखिक और लिखित में भी दिया है कि कॉलेजों में छात्र संघ कराएं। यदि जरूरत हुई तो वे इसके लिए सडक़ पर उतरकर आंदोलन भी करेंगे। अधिवेशन का उद्घाटन करने आए सीएम डॉ. मोहन यादव के सामने यह मांग दोहराई गई है। अब मांग पूरी नहीं हुई तो एबीवीपी के सामने भी किसान संघ की तरह सड़क पर उतरने का रास्त बचा है।
भाषा के मामले में खेल गए शिवराज सिंह चौहान
दक्षिण राज्यों में यात्रा करना और किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में भाषा के मुद्दे पर कुछ कहना जोखिम से कम नहीं है। लेकिन कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान भाषा के मामले पर ही खेल गए। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान तमिलनाडु में 27 दिसंबर को सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के कार्यक्रम में शामिल हुए थे। इस कार्यक्रम में शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भारत की भाषाई विविधता हमारी ताकत है और एक दूसरे की भाषाएं सीखने से राष्ट्रीय एकता और आपसी समझ मजबूत होती है। उन्होंने कहा कि हर भारतीय को कम से कम एक दक्षिण भारतीय भाषा जरूर सीखनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि वे खुद भी किसी एक दक्षिण भारतीय भाषा को सीखने की कोशिश करेंगे।
शिवराज सिंह चौहान का यह बयान दक्षिण के लिए बनी बीजेपी की रणनीति का हिस्सा है। दिसंबर में बीजेपी को दक्षिण भारत से अच्छी खबर है। केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में बीजेपी को अपना पहला मेयर मिला है। 2026 में केरल और तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होने हैं। पार्टी इन दो राज्यों में बेहतर प्रदर्शन को लेकर काम कर कर रही है। यही वजह है कि पीएम नरेंद्र मोदी मन की बात में तमिल भाषा को प्रमोट करते हैं तो शिवराज सिंह चौहान दक्षिण की एक भाषा सीखने की लालसा जताते हैं।
दक्षिण भारत में राजनीतिक जमीन तलाश कर रही बीजेपी की नीति के साथ कदमताल करने में शिवराज सिंह चौहान ने जरा चूक नहीं की और सधे अंदाज में भाषा को लेकर बेहद संवेदनशीलस्थल पर हिंदी का नाम न लेकर हिंदी भाषा की राजनीति से खुद को अलग कर लिया।