भोपाल। कांग्रेस सरकार द्वारा ओबीसी को दिए गए 27 फ़ीसदी आरक्षण मामले पर आज जबलपुर High Court में सुनवाई होनी है। इस मामले पर अब तक BJP की Shivraj Singh Chouhan सरकार बच बच कर चल रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्य सभा सदस्य दिग्विजय सिंह ने माँग की है कि इस प्रकरण में जिस प्रकार कॉंग्रेस के शासन काल में दिल्ली से प्रतिष्ठित वकील को पैरवी करने के लिए लाया जाता था उसी प्रकार शिवराज सिंह चौहान भी दमदार पैरवी करवाएँ। 



कमलनाथ सरकार ने 14 अगस्त 2019 को सरकार ने ओबीसी का आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया था। इसके पहले 2 जुलाई 2019 को एक परिपत्र जारी कर सामान्‍य ईडब्ल्यूएस को भी 10 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय लिया था। इस निर्णय के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करते हुए जबलपुर हाईकोर्ट ने 29 फरवरी को ओबीसी आरक्षण बढ़ाने पर रोक लगा दी है। तब से इस पर निर्णय बकाया है।OBC और सवर्ण वोट बैंक को साधने की राजनीतिक में BJP सरकार अब तक कोर्ट में इस मामले को लटकाए हुए है। सूत्र बताते हैं कि सरकार उप चुनाव तक किसी तरह विवाद को टालना चाहती है। इसीलिए वह कोर्ट में कमजोर पक्ष रख रही है। तभी कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने सरकार को सचेत किया है की वह कोर्ट में अच्छे और जानकार वकीलों से पक्ष रखवाए ताकि OBC आरक्षण का कांग्रेस का निर्णय रुक न जाए।





ग़ौरतलब है कि मप्र में भाजपा ने ओबीसी-आदिवासी को साथ लेकर कांग्रेस पर राजनीतिक लीड हासिल की थी। सवर्ण समाज में बेहतर आधार रखने वाली भाजपा ने यही समीकरण साध कर बीते 15 सालों तक सत्‍ता अपने हाथ में रखी थी। कांग्रेस ने इस जातीय समीकरण को विफल करने के लिए एक बड़ा फैसले लोकसभा चुनाव के पहले लिया था। यह फैसला था राज्य में ओबीसी आरक्षण को 27 प्रतिशत करना। लोकसभा चुनाव के दौरान न्‍यायालयीन प्रक्रिया में यह घोषणा रूकी भी मगर बाद में मुख्यमंत्री कमलनाथ की अध्‍यक्षता में हुई कैबिनेट ने अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण को 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने का निर्णय लिया। 



माई का लाल बयान पड़ा था भारी



ओबीसी आरक्षण पर बीजेपी सरकार फूंक फूंक कर कदम रख रही है। इसकी वजह 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले दिया गया मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का बयान है। एक सभा में चौहान ने कहा था कि कोई माई का लाल आरक्षण खत्‍म नहीं कर सकता है। इस बयान का काफी विरोध हुआ था। अब य‍दि सरकार 27 फीसदी आरक्षण स्‍वीकारती है तो सवर्ण नाराज होंगे और नकारती है तो ओबीसी वोट बैंक खतरे में पड़ेगा। इसलिए चुनाव तक असमंजस कायम रहना तय है।